ईद-उल-फ़ित्र : मानवता व प्रेम का पर्व

ईद-उल-फ़ित्र

इस्लाम धर्मावलंबी रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अलमकरम को मनाया जाता है।

ईद उल-फ़ित्र शव्वल इस्लामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है. इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।

मुसलमानों का त्योहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद-उल-जुहा या बकरीद कहलाता है)। पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।

उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी।  ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है।  सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

खुशियों को ईद कहते हैं। ईद का त्योहार हर इंसान को समान दृष्टि से देखने का नजरिया देता है। सब एक-दूसरे की खुशी में शामिल हों, इसके लिए इस्लाम में ज़कात फित्र का प्रावधान किया गया है। इसके तहत गरीबों और वंचितों को इतना दे दिया जाता है, ताकि वे ईद की खुशियों से महरूम न रह सकें। यही कारण है कि ईद के दिन हर व्यक्ति अपने-अपने तौर पर खुशियां मनाता है।

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