बापू!
आपने तो बताया ही नहीं
कि रामराज्य में
एक ऐसा भी वक्त आएगा
सत्ता रावण के हाथ होगी
प्रजा शंबूक होगी
व्यवस्था मूक होगी
ग़रीबी भूख होगी
करेजे हूक होगी
निर्बल प्रजा के
यह भी नहीं बताया आपने
कि सत्य निर्वासित होगा
श्रम अभिशापित होगा
बेशर्म विज्ञापित होगा
अधर्म स्थापित होगा
क़ायनात के कण कण में
मनुष्य की अच्छाइयों पर
आपका अखंड विश्वास
कितना खोखला साबित होगा
और आदमी कितना कमीना
इसकी तो कल्पना भी नहीं
की होगी आपने
जाति का अहंकार
कितना बढ़ेगा
जनसेवक का भाव
कितना चढ़ेगा
झूठ का कुम्हार
कितना गढ़ेगा
अकेला चना भाड़ से
कितना लड़ेगा
आपको भी पता नहीं था
एक बात बताऊं
हद दर्जे की नफ़रत करते हैं
आपके देश के कुछ लोग
पुतला बनाकर आपका
मारते हैं गोली
और पुरस्कृत होते हैं
सत्य की राह चलनेवाले
बहिष्कृत होते हैं
सत्ता के जादूगर
चमत्कृत होते हैं
यह सोचकर कि
जादू उनका बोल रहा है
सिर चढ़कर
बापू !
मैं तो हैरान हूं यह सोचकर
कि जिन रुपयों से
ख़रीदे बेचे जाते हैं
विधायक सांसद
जिन्हें देकर छूट जाते हैं
क्रूर अपराधी
जिन्हें मुट्ठी में कसे
कीचड़ में धंसे मज़दूर बच्चे
लौटते हैं अपने दर
जिन्हें पाकर बेचे जाते हैं
शरीर और उसके अंग
धरम और ईमान
कभी कभी भगवान
ख़रीददार शैतान
उन नोटों पर मुस्कुराते हुए
कितनी यातना होती होगी
जो सहते हो आप
बिल्कुल अकेले
कमबख़्तों ने बुढ़ापे में
आपकी लाठी भी छीन ली
आंखों की रौशनी बीन ली
और हांक दिया बियाबान में
आपके राम का निर्वासन तो
सिर्फ़ चौदह साल का था
आप तो बहत्तर साल से
भटक रहे हो अनाथ
असहाय अकेले
और हम रच रहे हैं नाटक
आपको पूजने का
साल में दो बार बिला नागा
आपके विचारों से
अपरिचित विद्वान उगलते हैं
शब्द निरर्थक स्तुति के
जितना पाखंड रचते हैं
आपके राम के साथ
उससे अधिक आपका
जुलूस निकलता है
बापू!
पांत का आखिरी आदमी
आज भी दो जून की रोटी
और सुरक्षित ज़िंदगी को
उतना ही तरसता है
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बहुत ही सुंदर कविता..वास्तविकता प्रकट करती हुई
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