बकरियां सख्तजान होती हैं। इन्होंने कोलंबस के साथ अटलांटिक महासागर की लंबी यात्राएं कीं और मेफ्लावर तीर्थ यात्रियों के साथ रहीं – इस दौरान सूखे और परजीवियों का सामना किया। हाल ही में एक शोध ने इनकी सहनशीलता की उत्पत्ति का खुलासा किया है। प्राचीन समय में कुछ हेराफेरी के ज़रिए इस पालतू प्रजाति (Capra aegagrus hircus) में जंगली बकरी से एक जीन आया, जो इसे कृमि संक्रमण से बचाता है। अन्य जीन्स के साथ जुड़कर इस जीन ने बकरी को सबसे पहला पालतू जानवर बनाने में मदद की। स्मिथसोनियन संस्थान के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में मानव विज्ञानी पुरातत्वविद मेलिंडा ज़ेडर का कहना है कि इस खोज से पालतूकरण के शुरुआती दिनों में जंगली प्रजातियों के साथ परस्पर प्रजनन का महत्व स्पष्ट होता है।
कई शोधकर्ता मानते हैं कि बकरियां प्रथम पालतू पशु हैं। इन्हें लगभग 11 हज़ार साल पहले फर्टाइल क्रीसेंट में पालतू बनाया गया था। माना जाता है कि तुर्की और ईरान में मनुष्य ने सबसे पहले पालतू बकरियों के जंगली वंशज बेजोर को बाड़ों में पालना शुरू किया था। लेकिन तब से लेकर अब तक क्या हुआ यह एक रहस्य ही रहा है।
नॉर्थवेस्ट ए एंड एफ युनिवर्सिटी के पशु आनुवंशिकीविद ज़ियांग यू और एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने दुनिया भर की 88 पालतू बकरियों, 6 जंगली बकरी प्रजातियों और 4 बकरी जीवाश्मों के जीनोम की तुलना 131 अन्य पालतू, जंगली और प्राचीन बकरियों की पहले से उपलब्ध जीनोमिक जानकारी के साथ की। वे यह देखना चाहते थे जीनोम के कौन-से महत्वपूर्ण हिस्से से बकरी का पालतू बनना तय हुआ था।
ज़ियांग और उनके साथियों ने साइंस एडवांसेस में बताया है कि विशेष रूप से एक जीन MU6 महत्वपूर्ण है। आज लगभग हर पालतू बकरी में इस जीन का संस्करण मौजूद है। यह वेस्ट कॉकेशियन टुर नामक जंगली बकरी से आया है। संभवत: यह जीन संस्करण संभवत: परस्पर प्रजनन के ज़रिए 7200 साल पहले पालतू बकरी में पहुंचा था।
MU6 जीन आंत के अस्तर के एक प्रोटीन का कोड है। अन्य जंतुओं में यह प्रतिरक्षा तंत्र का हिस्सा है। यह देखने के लिए कि यह परजीवियों से रक्षा कर सकता है या नहीं, शोधकर्ताओं ने जंगली टुर के जीन संस्करण वाली और इसके अन्य संस्करणों वाली पालतू बकरियों के मल का विश्लेषण किया। देखा गया कि टुर संस्करण वाली बकरियों के मल में कृमियों के अंडों की संख्या बहुत कम थी। अर्थात जीन का टुर संस्करण कुछ सुरक्षा प्रदान करता है।
ज़ियांग कहते हैं कि यह बात समझ में आती है क्योंकि टुर काले समुद्र के तट पर रहती थी जहां का मौसम उमस वाला था, यहां परजीवियों के संक्रमण का खतरा अन्य जगहों की बकरियों से ज़्यादा था। आजकल की बकरियों का मूल स्थान दक्षिण-पश्चिम एशिया का सूखा क्षेत्र था।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि पालतू बनाने के लिए सबसे मूल्यवान कारक दूध का उत्पादन या शारीरिक बनावट होते हैं। लेकिन इस अध्ययन में यह पता चलता है कि शायद ज़्यादा महत्वपूर्ण यह था कि पालतू जानवर भीड़भाड़ वाली जगहों में जीवित रह सकें, जहां पर संक्रमण का खतरा ज़्यादा होता है। ज़ियांग का कहना है कि स्वस्थ मवेशी पाने की इच्छा और टुर के इस जीन संस्करण के फायदों के चलते यह 1000 वर्षों में ही 60 प्रतिशत पालतू बकरियों में फैल गया।
टीम को पालतू बकरियों में कई और जीन्स मिले हैं, जिनका सम्बंध शायद बकरियों के दब्बू व्यवहार से हो, लेकिन और शोध के बगैर कुछ कहा नहीं जा सकता।