‘‘तुम्हारा नाम..?’’ कठघरे में खड़े फटेहाल व्यक्ति से सरकारी वकील ने पूछा।
‘‘लोग हमें ‘चिथरुआ’ कहते हैं साहब, पड़ोस के बच्चे ‘काका’ और हफ्ता वसूलने वाले दारोगाजी ‘हरामजादा’ कहकर पुकारते हैं।’’
‘‘तुम्हारे बाप का नाम?’’
‘‘खरपातू, हुजूर! मरते वक्त बुढ़िया दादी ने यही नाम बताया था बापू का।’’
‘‘तुम इस गीता पर हाथ रखकर कसम खाओ कि जो कुछ कहोगे, सब सच कहोगे, सच के सिवा कुछ नहीं कहोगे।’’
‘‘इसमें कसम खाने की का जरूरत साहब? कसम तो झुठ्ठे लोग ज्यादा खाते हैं। पूछिए, का पूछना है?’’
‘तुमसे जो कुछ पूछा जाय, उसका सीधा-सीधा जवाब दो।’ वकील ने रोबदार आवाज में लगभग उसे डाँटते हुए हिदायत दी।
‘‘ठीक हौ साहब! हम इस गीता पर हाथ रखकर कसम खाते हैं कि जो कुछ कहेंगे, सच कहेंगे, सच के सिवा कुछ्छौ नहीं बोलेंगे।’’
वकील को सन्तोष हुआ कि गवाह ने उनके हुक्म का पालन किया। उन्होंने आगे उससे सवाल किया-
‘‘तुम्हारे सामने पुलिस की गिरफ्त में जो आदमी दिखायी दे रहा है, उसे पहचानते हो..?’’
‘‘बिल्कुल नाहीं साहेब! कउन है ई आदमी?….और ईहाँ इस तरह काहे खड़ा है?’’
‘‘इसके खिलाफ गवाही देने के लिए तुम्हें यहाँ बुलाया गया है। उस शाम जब तुम कचहरी-गेट के सामने वाले फुटपाथ पर बैठकर जूते पालिश कर रहे थे तो इस आदमी ने वहीं सड़क पर एक बूढ़े आदमी का खून कर दिया था।’’
‘‘कब किया हुजूर? मैं तो उस समय पूजा कर रहा था।’’
‘देखो, झूठ मत बोलो, उस समय तुम एक लड़के के जूते की पाॅलिश कर रहे थे।’
’‘हुजूर! मैं जब किसी गरीब बेराजगार लड़के के जूते की पाॅलिश करता हूँ तो उसे पूजा समझ लेता हूँ।’’
‘‘तो उस समय तुम एक बेरोजगार लड़के के जूते की पाॅलिश कर रहे थे?’’
‘‘पूजा कर रहा था हुजूर, और पूजा के समय हमे कुछ अउर नहीं दिखायी पड़ता । कहिए तो आपकी भी…………………..’’
‘‘तुम चुप रहो।’’
‘‘लो, चुप हो गया साहब! हमरी औकात ही क्या है?’’
‘‘तो तुमने इस आदमी को किसी का खून करते हुए नहीं देखा? देखो, तुमने पवित्र धर्मग्रन्थ की कसम खायी है, झूठ मत बोलना।’’
‘‘माई-बाप! हमने इस धरमपुस्तक की कसम खायी है कि झूठ नहीं बोलूँगा। हम निरच्छर आदमी साहब, लेकिन हम सच बोल देते हैं कि इस देश-दुनिया में सच बोलने वाले बेमौत मार दिये जाते हैं। हमारे नन्हें-मुन्ने दो बच्चे हैं साहब, वे भी हमरी तरह अनाथ हो जायेंगे। हम अभी मरना नहीं चाहते हुजूर!’’
‘‘तुम्हें सरकारी प्रोटेक्शन दिया जायेगा, तुम्हें सरकार बचा लेगी।’’ सरकारी वकील ने दिलासा दिया।
चिथरू ने पलटकर जवाब दिया-‘‘इहै बात आप गीता पर हाथ रखकर कहिए तो हुजूर, कि आप सच कह रहेे हैं। जिसका परटोक्सन दिया माई-बाप ने, उसका का हुआ? टिकस कटा कि नाहीं?’’ सरकारी वकील चुप, न्यायाधीश से भी कुछ कहते नहीं बना। न्याय-अन्याय की उस रंगशाला में शरीफ पुतलों की जुटी भीड़ में एकदम सन्नाटा पसर गया।
चिथरू तो जैसे आवेश में आ गया। एक लम्बी साँस लेकर वह बोलता रहा, ‘‘आपै लोग तो माई-बाप हैं हुजूर, लेकिन इस देश का कोई भी आदमी-ई जज साहब, बड़ी-बड़ी बहस करै वाले आपौ वकील लोग, झक्क सफेद काॅलर में बड़के कुरता वाले बगुला भगत नेता-मन्त्री औ अस्पी-डीअम अउर ऊ का कहते हैं, सीअम-पीअम तक, अगर इहाँ आके गीता पे हाथ रखके बोलैं कि ऊ सच के सिवा कुछ नहीं बोलते तो हमरे जैसा मामूली मोची ‘चिथरुआ’ उर्फ ‘काका’ उर्फ ‘हरामजादा’ वल्द खरपातू बिना कसम खाये कहे देता है कि ई सबके सब निहायत झुठ्ठे हैं। अरे गिद्ध तो बदनाम है बेचारा, जो मुर्दा खाता है और इहाँ तो आदमी नोच खाता है जिन्दा साबुत इन्सान को। नियाव के नाटक में गुनहगार औ अपने कानून के बीच इस धरमपुस्तक गीता को काहे घसीटते हो साहब?’’ बोलते-बोलते चिथरू के मुँह से अचानक झाग निकलने लगा। वह तेजी से हाँफ रहा था और वहीं सबके सामने उसी कठघरे में ढेर हो गया, फिर आज तक न उठा।
लेखक परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन महाविद्यालय, बलिया(उ.प्र.)
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर
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