डाॅ. करुणाशंकर उपाध्याय तीसरी बार मुंबई विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त

Karunashankar Upadhyay

मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ.रवीन्द्र कुलकर्णी ने हिंदी विभाग के वरिष्‍ठ प्रोफेसर डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय को आगामी तीन वर्षों के लिए विभागाध्यक्ष नियुक्त किया है। डाॅ.उपाध्याय हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय के तीसरी बार अध्यक्ष बने हैं। आप हिंदी विभाग के इतिहास में वरिष्‍ठ प्रोफेसर पद पर पदोन्नत होने वाले पहले प्रोफेसर हैं। डाॅ.उपाध्याय अपने पहले कार्यकाल में 25 से अधिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन और विभाग 5 शिक्षकों की नियुक्ति करवा चुके हैं। साथ ही महाराष्ट्र शासन से हिंदी भवन के लिए 5 करोड़ रुपए स्वीकृत करवाकर उसका भूमिपूजन भी करवाया था। जबकि इनके दूसरे कार्यकाल के आरंभिक डेढ़ वर्षों में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन और छायावाद एवं जयशंकर प्रसाद पर दो अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया था। इनके शेष डेढ़ वर्ष कोविड-19 के अंतर्गत निकले। इस दौरान इन्होंने सफलतापूर्वक न केवल कक्षाओं और परीक्षाओं का संचालन किया, अपितु नैक विजिट के दौरान सबसे लंबा प्रस्तुतीकरण भी दिया।

जहां तक करुणाशंकर उपाध्याय के आलोचनात्मक लेखन का सवाल है तो 2021 में शीर्ष साहित्यकार चित्रामुद्गल ने डाॅ. उपाध्याय को आज का सबसे बड़ा आलोचक कहते हुए इन्हें आलोचकों का प्रतिमान कहा था। तदुपरांत हिंदी साहित्य भारती द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने इन्हें वर्तमान शती का आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डाॅ.अरविंद द्विवेदी ने उपाध्याय को अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा अंत: अनुशासनिक आलोचक कहा था। डाॅ. त्रिपाठी के अनुसार अपने लेखन और आलोचना दृष्टि के स्तर पर आचार्य करुणाशंकर उपाध्याय आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नवीन संस्करण हैं।

डाॅ.उपाध्याय की अब तक 20 मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकें और 14 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनके राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 400 के आस-पास आलेख व शोध-लेख प्रकाशित हुए हैं। इनके कुशल निर्देशन में अब तक 35 शोधार्थी पी.एच.डी. और 55 छात्र एम.फिल. कर चुके हैं। प्रोफेसर उपाध्याय को राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक सम्मान–पुरस्कार मिल चुके हैं। डाॅ.उपाध्याय को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान (2021) जैसा प्रतिष्ठित सम्मान भी मिला है। आप वर्तमान दौर के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले आलोचक हैं। उपाध्याय की पुस्तकों के अनेक संस्करण इनकी आलोचकीय लोकप्रियता का स्वयंसिद्ध प्रमाण है। इन्होंने अपने आलोचना ग्रंथ ‘जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम’ की प्रथम प्रति राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेंट की थी। इस ग्रंथ पर अब तक 22 संगोष्ठियां आयोजित हो चुकी हैं।

करुणाशंकर उपाध्याय को अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और रक्षा विशेषज्ञ के रूप में जी न्यूज़, इंडिया टी.वी, न्यूज़ नेशन, न्यूज़18, न्यूज़ 24,जी बिजनेस, एन.डी.टी.वी. जैसे चैनलों पर लगातार आमंत्रित भी किया जाता है। प्रोफेसर उपाध्याय हिंदी भाषा की अखंडता की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत हैं। आप हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए भारत सरकार को गंभीर प्रयास करने के लिए तैयार कर रहे हैं। आपका मानना है कि आज विश्व का हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम है। यदि हिंदी प्रतिष्ठा सहित संयुक्त राष्ट्र संघ में आसीन नहीं है, तो यह विश्व के हर छठे व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन है।इसी तरह हमारे देश की 82 प्रतिशत जनता हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम हैं। यदि हमारे न्यायालय हिंदी में बहस और निर्णय की अनुमति नहीं देते, तो यह भी देश के 82 प्रतिशत लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन है। यदि हम हिंदी के प्रश्न को मानवाधिकार से जोड़ते हैं तो उसे न्यायोचित स्थान शीघ्र दिला सकते हैं।

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