ऑस्ट्रेलिया के साथ सैन्य समझौता इतना जरूरी क्यों?

Karunashankar Upadhyay

 ● डाॅ. करुणाशंकर उपाध्याय 

आगामी 4 जून को  भारत -ऑस्ट्रेलिया के मध्य एक वर्चुअल बैठक प्रस्तावित है जिसमें दोनों देश एक दूसरे की नौसैनिक सुविधाओं के आपसी उपयोग का समझौता करेंगे। इसके अंतर्गत अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में उपलब्ध सैन्य सुविधाओं का ऑस्ट्रेलिया उपयोग कर सकेगा और इंडोनेशिया के सुन्दा जलसंधि के मुहाने पर स्थित ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीप  में उपलब्ध नौसैनिक सुविधाओं का उपयोग भारतीय नौसेना कर सकेगी। इस रणनीतिक समझौते के बाद दोनों देशों की नौसेनाएं प्रशांत महासागर से हिंद महासागर को जोड़ने वाले चारों  जलसंधियों  मलक्का, सुन्दा, लाॅम्बाक और ऑम्बई वेटर पर संयुक्त रूप से निगरानी कर सकेंगी जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में आने वाले चीन के किसी भी युद्ध पोत और पनडुब्बी की तुरंत सूचना मिल सकेगी।प्रायः देखा गया है कि चीनी नौसेना दक्षिण चीन सागर पार करके सुन्दा जलसंधि से होकर ही हिंद महासागर में प्रवेश करती है। यदि भारतीय नौसेना वहां पर तैनात होगी तो वह हिंद महासागर के प्रवेश द्वार पर ही चीनी नौसेना को उसकी नियति तक पहुंचा सकती है।

गौरतलब है कि हिंद महासागर क्षेत्र में तीन देशों- भारत, फ्रांस तथा ऑस्ट्रेलिया के द्वीप समूह हैं।भारत दक्षिण निकोबार से मलक्का जल डमरू मध्य पर पूरी निगरानी और नियंत्रण रखता है।इस कारण चीनी नौसेना इधर से हिंद महासागर में आने का दुस्साहस नहीं करती। भारत ने अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, सिंगापुर  और फ्रांस के मध्य एक दूसरे की सैनिक सुविधाओं के उपयोग का समझौता पहले से ही कर रखा है। अमेरिका लंबे समय से चाहता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी रोकने के लिए  अमेरिका-भारत-जापान ऑस्ट्रेलिया का एक सामरिक चतुर्भुज बने जिस पर भारत सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी, लेकिन चीन की सैन्य घुसपैठ और दूसरे देशों की जमीन पर कब्जा करने की प्रवृत्ति भारत को विवश कर रही है कि वह उक्त सामरिक गठजोड़ को शीघ्रतातिशीघ्र अमलीजामा पहनाए। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हिंद महासागर में पड़ने वाले ऑस्ट्रेलियाई द्वीपों का सामरिक महत्व कितना ज्यादा है। कोकोस द्वीप हिंद महासागर के हृदय-प्रदेश में स्थित है।हम अपने नौसैनिक विमानों, युद्धपोतों तथा पनडुब्बियों के लिए वहां पर स्थायी नौसैनिक सुविधा पाकर एक विमानवाहक पोत तथा एक परमाणु पनडुब्बी का खर्च बचा सकते हैं। अब ऑस्ट्रेलिया के साथ इस तरह का समझौता होने से हम युद्ध के समय चीनी नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में आने के पहले ही तबाह कर सकेंगे।यहाँ से समूचा दक्षिण चीन सागर भारतीय नौसेना की मारक क्षमता के भीतर होगा।यह चीन द्वारा भारत को घेरने के लिए बनाई गई ‘मोतियों की माला’ की वास्तविक काट होगी। कोकोस द्वीप अमेरिकी नियंत्रण वाले दिएगोगार्शिया के ठीक उत्तर में अवस्थित है। अतः इसका रणनीतिक महत्व स्वयं सिद्ध है।

आज कोरोना कहर के भयावह वैश्विक संकट के दौर में जब भारत समेत विश्व के तमाम देश अपने रक्षा बजट में कटौती कर रहे हैं और संपूर्ण विश्व आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है, तब चीन न केवल अपने रक्षा बजट में 6.6% की बढोतरी कर रहा है, अपितु उसकी आक्रामकता और भी बढ़ गई है। आज चीन का घोषित रक्षा बजट 180 अरब डॉलर का है, जबकि वैश्विक रणनीतिकारों का अनुमान है कि उसका वास्तविक रक्षा बजट इससे काफी ज्यादा है। चीन लगातार हाइपरसोनिक मिसाइल, विमानवाहक पोत तथा परमाणु पनडुब्बियों के विकास में लगा है। वह जापान, ताइवान, फिलीपीन्स, वियतनाम, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया तथा भारत के नियंत्रण वाले हिंद महासागर में लगातार घुसपैठ करके अपने विस्तारवादी मनसूबे का परिचय दे रहा है। वह दक्षिण चीन सागर की तर्ज़ पर भारत की मुख्य भूमि से 680 किलोमीटर दूर मालदीव में कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर रहा है जिससे भारत का  70 फीसदी व्यापार और महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाने खतरे में पड़ जाते हैं। वह नेपाल समेत भारत के हर पड़ोसी देश में भारत विरोधी भावनाएं पैदा कर रहा है। वह घोषित रूप से पाकिस्तान का न केवल सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी है अपितु पाकिस्तान के हर ग़लत कार्य में सहभागी भी है। वह भारत के तीखे विरोध की परवाह न करते हुए गिलगित बालटिस्तान में बांध बना रहा है और पी.ओ.के. का उपयोग अपने उपनिवेश की तरह कर रहा है। इतना ही नहीं उसने जिस ढंग से पहले सिक्किम में और फिर लद्दाख तथा गलवान घाटी में बड़े पैमाने पर घुसपैठ करके सामरिक तनाव पैदा किया है उसे देखकर यही लगता है कि वह द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले का जर्मनी बन गया है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो गया है कि संपूर्ण विश्व एकजुट होकर उसे जर्मनी की नियति तक पहुंचाए।

यह सर्वविदित है कि संपूर्ण विश्व को कोरोना संकट में डालने की जिम्मेदारी चीन की है और अब तक हुई साढ़े तीन लाख से अधिक मौतों की जिम्मेदारी भी उसपर है। अब ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में विश्व के 123 देशों ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति एवं उसके प्रसार में चीन की भूमिका की जांच करने का निर्णय कर लिया है तब चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया को दी गई खुली धमकी उसके खतरनाक इरादों का संकेत करती है। आज ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों ही देश चीन की आर्थिक तथा सैनिक गुंडागद्दी के शिकार हैं।चीन की सारी गतिविधियों के केंद्र में भारत और अमेरिका का विरोध है। हमारे प्रति उसका व्यवहार एक घोषित शत्रु जैसा है। जबकि उसकी अर्थ-व्यवस्था में हमारी एक अहम् भूमिका है। दूसरी ओर  ऑस्ट्रेलिया भलीभांति जानता है कि यदि चीन ताइवान पर कब्जा करने में कामयाब हो गया तो एक दिन वह ऑस्ट्रेलिया पर भी कब्ज़े का प्रयास कर सकता है। ऐसी स्थिति में अकेले अमेरिका द्वारा उसकी सुरक्षा संभव नहीं है। फलतः वह भारत के साथ सैन्य समझौते में विशेष रूचि ले रहा है।संगें शक्ति: कलयुगे के आधार पर हमें ऐसे सैन्य समझौते का हिस्सा बनना ही होगा।  यह समझौता दोनों देशों के लिए वरदान साबित हो सकता है। भारत सरकार को चाहिए कि वह न केवल ऑस्ट्रेलिया के साथ सैन्य समझौते को व्यावहारिक बनाए अपितु अमेरिका-भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के सामरिक चतुर्भुज( QUAD)  को यथा शीघ्र वास्तविक बनाए जिससे चीन हम पर हमला करने के पहले सौ बार सोचे। यह बदली हुई विश्व व्यवस्था की अनिवार्य मांग है। चूंकि अब हमारे पास चार-पांच दशक पुराना सोवियत संघ जैसा सैन्य सहयोगी नहीं है अतः हमें इन नए मार्गों पर चलना ही होगा। अब देखो और प्रतीक्षा करो की नीति घातक हो सकती है।

( लेखक रक्षा एवं विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैं। )

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