नई दिल्ली: भारत में भगोड़ा घोषित विजय माल्या को धोखाधड़ी के आरोपों में नयी दिल्ली के प्रत्यर्पण आग्रह पर मंगलवार (18 अप्रैल) को स्कॉटलैंड यार्ड ने लंदन में गिरफ्तार कर लिया, लेकिन चंद घंटे बाद उसे जमानत मिल गई। ब्रिटिश कानूनों को देखते हुए ऐसा लगता है कि माल्या को भारत लाना इतना आसान नहीं है। भारत ने ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि के अनुरूप आठ फरवरी को एक नोट वर्बेल के जरिए माल्या के प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक आग्रह किया था। लेकिन भारत को माल्या के प्रत्यर्पण की पूरी उम्मीद है और इसके लिए जल्द ही सीबीआई की टीम लंदन जाएगी। मामले की अगली सुनवाई 17 मई को होगी।
जानकारों के मुताबिक प्रत्यपर्ण के लिए देश में तीन तरह के रास्ते हैं और वे इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसिजर कोड और एविडेंस एक्ट के तहत हैं। लेकिन सरकार अगर जोर लगाएगी तभी प्रत्यर्पण में सफलता मिलेगी। भारत सरकार के लिए ब्रिटिश सरकार के साथ बातचीत का भी रास्ता खुला है। भारत सरकार ने ब्रिटेन को अर्जी सौंपते हुए कहा था कि माल्या के खिलाफ उसके पास एक जायज मामला है। सरकार ने उल्लेख किया था कि यदि प्रत्यर्पण आग्रह का सम्मान किया जाता है तो यह हमारी चिंताओं के प्रति ब्रिटेन की संवेदनशीलता को प्रदर्शित करेगा। इस साल के शुरू में एक सीबीआई अदालत ने 720 करोड़ रुपये के आईडीबीआई बैंक लोन डिफॉल्ट मामले में माल्या के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था।
बता दें कि विजय माल्या पर 17 बैंकों का 10 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। माल्या कई बैंकों के डिफॉल्टर हैं। माल्या यूनाइटेड ब्रेवरीज कंपनी के मालिक थे, उन्होंने 2005 में किंगफिशर एयरलाइंस की स्थापना की। 2009 में एयरलाइंस को 419 करोड़ का घाटा हुआ। 2014 में किंगफिशर की उड़ान पर ब्रेक लग गया। एयरलाइंस में घाटे से यूनाइटेड ब्रेवरीज में हिस्सेदारी बेची गई और डीयाजियो ने 2013 में कंपनी में हिस्सेदारी खरीदी। माल्या ने डीयाजियो से 510 करोड़ रुपये लेकर चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया। डिआजियो से मिलने वाली 510 करोड़ की रकम डेट रिकवरी ट्रि्ब्यूनल द्वारा फ्रीज कर दी गई। माल्या राज्यसभा सांसद भी बने फिर कर्ज पर विवाद बढ़ा तो देश छोड़ लंदन चले गए।
पिछले महीने ब्रिटिश सरकार ने माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के संबंध में भारत के आग्रह को प्रमाणित कर इसे आगे की कार्यवाही के लिए एक जिला न्यायाधीश के पास भेज दिया था। ब्रिटेन से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में न्यायाधीश द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी करने सहित कई कदम शामिल होते हैं। वारंट के मामले में व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और प्रारंभिक सुनवाई के लिए अदालत लाया जाता है। फिर विदेश मंत्री द्वारा अंतिम फैसला किए जाने से पहले एक प्रत्यर्पण सुनवाई होती है।
ब्रिटेन की जटिल कानूनी प्रणाली है। सबसे पहले जज को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि माल्या पर भारत में जो आरोप लगाए गए हैं, वे ब्रिटेन में भी आपराधिक श्रेणी में आते हैं या नहीं। लंदन कोर्ट के जज यह भी तय करेंगे कि क्या माल्या का प्रत्यर्पण उनके मानवाधिकारों के अनुरूप या असंगत तो नहीं है। यदि जज संतुष्ट हो जाते हैं, तो इस मामले को अंतिम निर्णय के लिए विदेश मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। माल्या के पास फैसले को हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का भी अधिकार है।