जहां एक ओर इस बात की उम्मीद थी कि कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया भर में ग्रीन रिकवरी होगी, वहीं REN21 की रिन्यूएबल्स 2022 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट (जीएसआर 2022) की मानें तो पता चलता है कि पृथ्वी ने यह मौका खो दिया है। यह रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक स्तर पर क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन नहीं हो रहा है, जिससे यह संभावना भी नहीं बचती है कि दुनिया इस दशक के अंत तक महत्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होगी। पिछले साल की दूसरी छमाही में आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े ऊर्जा संकट की शुरुआत देखी गई, जो 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूसी संघ के आक्रमण और अभूतपूर्व वैश्विक कमोडिटी झटके से और गंभीर हो गयी।
REN21 की कार्यकारी निदेशक राणा आदिब कहती हैं, “हालांकि कई सरकारों ने 2021 में नेट ज़ीरो एमिशन के लिए प्रतिबद्धता दिखाई मगर सच्चाई यह है कि ऊर्जा संकट के जवाब में अधिकांश देश जीवाश्म ईंधन पर वापस चले गए हैं।” यह ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट सालाना दुनिया भर में रिन्यूएबल ऊर्जा कि स्थिति का जायज़ा लेती है। इस साल की रिपोर्ट इसका 17-वां संस्करण है और इस बात का प्रमाण देती है जिसके बारे में विशेषज्ञ अक्सर चेतावनी देते रहे हैं। और वो बात ये है कि दुनिया की ऊर्जा खपत में रिन्युएब्ल एनेर्जी का कुल हिस्सा स्थिर हो गया है। जहां 2009 में यह 10.6% था, दस साल बाद 2019 में यह मामूली बढ़त के साथ 11.7% पर अटक गया।
बिजली क्षेत्र में, जहां रिन्यूएबल ऊर्जा क्षमता और उत्पादन 2020 से अधिक रहा, फिर भी वो कुल बीजली मांग, जो कि 6 फीसद बढ़ी, के सापेक्ष कम ही रहा। वहीं हीटिंग और कूलिंग में, कुल ऊर्जा खपत में रिन्यूएबल हिस्सेदारी 2009 में जहां 8.9% थी, वो 2019 में बढ़कर 11.2% हो गई। परिवहन क्षेत्र में, जहां रिन्यूएबल हिस्सेदारी 2009 में 2.4% थी, वो 2019 में बढ़कर 3.7% हो गई। परिवहन क्षेत्र की धीमी प्रगति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा खपत के लगभग एक तिहाई हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है।
नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में, रिकॉर्ड 135 देशों ने 2050 तक नेट ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस एमिशन हासिल करने का संकल्प लिया। लेकिन इनमें से केवल 84 देशों के पास रिन्यूएबल ऊर्जा के लिए अर्थव्यवस्था-व्यापी लक्ष्य थे, और केवल 36 के पास 100% रिन्यूएबल ऊर्जा का लक्ष्य था। संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के इतिहास में पहली बार, COP26 घोषणा ने कोयले के उपयोग को कम करने की आवश्यकता का उल्लेख किया, लेकिन यह कोयले या जीवाश्म ईंधन में लक्षित कटौती का आह्वान करने में विफल रहा।
जीएसआर 2022 स्पष्ट करता है कि देशों की नेट ज़ीरो प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयासों की आवश्यकता होगी, और यह कि कोविड-19 से मिला मौका गुज़र गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि जलवायु कार्रवाई के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धताओं के बावजूद सरकारों ने ऊर्जा संकट के प्रभावों को कम करने के लिए अपनी पहली पसंद के रूप में जीवाश्म ईंधन उत्पादन और इस्तेमाल के लिए सब्सिडी प्रदान करने के विकल्प को चुना। 2018 और 2020 के बीच, सरकारों ने 18 ट्रिलियन अमरीकी डालर की भरी रक़म – जो 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 7% था- जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर ख़र्च किया। भारत में तो ऐसा कुछ रिन्यूएबल के समर्थन को कम करते हुए किया गया।
यह प्रवृत्ति महत्वाकांक्षा और कार्रवाई के बीच एक चिंताजनक अंतर का खुलासा करती है। “रिन्यूएबल ऊर्जा को ठंडे बस्ते में रखने और लोगों के ऊर्जा बिलों को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर निर्भर होने के बजाय, सरकारों को कमज़ोर घर-परिवारों में रिन्यूएबल ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की स्थापना को सीधे वित्तपोषित करना चाहिए,” अदीब ने कहा