मुंबई! अक्सर हम देखते है, मौसम मे बदलाव होते ही हमारे खाने और किचन मे भी बदलाव दिखता है, मौसम के अनुकूल अगर आप भोजन करते है। परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य मे भी बदलाव दिखता है, अक्सर आप बड़े-बुजुर्गों के मुख ये शब्द जरूर सुने होंगे। चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल। सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही। अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना। जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै। अर्थात इस दोहा के माध्यम से बताया गया है कि जो आदमी इन चीजों पर अमल करेगा यानी कि नहीं खाएगा। वह इंसान कभी बीमार नहीं होगा। चिकित्सक-वैद्य के पास नहीं जाना पड़ेगा।
हिन्दू धर्मशास्त्र के जानकार आज भी कहते है कि आयुर्वेद में भोजन के संबंध में बहुत कुछ लिखा है। जैसे किस सप्ताह में क्या खाना है क्या नहीं। किस तिथि को क्या खाना चाहिए अथवा क्या नहीं। किस महीने में क्या भोजन सही है और क्या नहीं। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। प्रत्येक सप्ताह, तिथि या महीने में मौसम में बदलाव होता है। इस बदलाव को समझकर ही खाना जरूरी है।
जिस तरह पूर्वजों को बताया गया है कि चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल। कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल। माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय। इस तरह खानें के नियम बताए गए है।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू माह ही मौसम के बदलाव को प्रदर्शित करते हैं अंग्रेजी माह नहीं। अक्सर हम आप जब रात में दही की डिमांड घर में करते है तो माताएं देने से मना कर देती है। न मानने पर डांट का भी खाना पड़ता है। इसीलिए रात को दही नहीं खाना चाहिए। वहीं देखते है अज्ञान आदमी भी दूध के साथ नमक नहीं खाता है। क्योंकि उसको भी मालुम है कि दूध के साथ नमक नहीं शक्कर मिलाकर खाना चाहिए।
– वैशाख (अप्रैल): तेल व तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बेल खा सकते हैं।
– ज्येष्ठ (मई): इस माह भी बेल खाना मना है। इन महीनों में गर्मीं का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए।
-आषाढ़ (जून): आषाढ़ में पका बेल न खाना मना है। इस माह में हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें। लेकिन इस माह में खूब खेल खेलना चाहिए। कसरत करना चाहिए।
– कार्तिक (अक्टूबर): कार्तिक माह में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। इस माह में मूली खाना चाहिए।
– मार्गशीर्ष (नवम्बर): अगहन में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। तेल का उपयोग कर सकते हैं।
– फाल्गुन (फरवरी): फागुन माह में सुबह जल्दी उठना चाहिए। इस माह में में चना खाना मना।