सामाजिक न्याय के अंतर्विरोध और कहानी ‘गुलइची’ पर परिचर्चा का आयोजन

कहानी गुलइची

दि.4 फरवरी 2018, रविवार को स्थानीय प्रेस क्लब के सभागार में एक परिचर्चा ‘सामाजिक न्याय के अंतर्विरोध और कहानी गुलइची‘ नामक विषयक आयोजित की गई। इस परिचर्चा के मुख्य अतिथि वक्ता रामजी यादव संपादक ‘गांव के लोग‘ ने इस कहानी के बारे में बोलते हुए कहा कि, ‘हेमन्त कुमार की कहानी गुलइची को सामाजिक न्याय की दृष्टि से नहीं पढ़ी जानी चाहिए। अपनी भाषा और बुनावट में तो यह एक बेहतरीन कहानी की श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन विचारों के स्तर पर इसमें कई कमियां है। यह कहानी बेसिकली सामाजिक न्याय के भीतर पनपे मजबूत और रूढ़ हो चुके ‘यादव वाद‘ के खिलाफ जाती है।’

परिचर्चा को आरंभ करते हुए जन संस्कृति मंच के कल्पनाथ यादव ने कहा कि कहानीकार संवेदना के स्तर पर अपने मुख्य पात्र गुलइची के या सामंती प्रवृति के पक्ष में खड़ा है, स्पष्ट करना चाहिए। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कल्पनाथ कहते हैं कि कथाकार के पास एक समृद्ध भाषा तो है, लेकिन वैचारिकी के स्तर पर इसकी कमजोरी जाहिर है।

आलोचक और ग़ज़लकार मूलचन्द्र सोनकर ने इस कहानी पर बोलते हुए कहा कि सवर्ण वर्चस्व के तिरोहण के दंश से पीड़ित अतिवादी अभिव्यक्ति की शिकार है। निरीह दलितों और पिछड़ों के कंधों पर टिकी यह कहानी सवर्ण वर्चस्व को वापस लाने की बेचैन आत्मकथा है। यह कहानी संवैधानिक लोकतांत्रिक चेतना और दलित-बहुजनों के विरुद्ध है। गुलइची के मुँह से बहुजनों को राक्षस और कदम-कदम पर जाति सूचक गालियों का इस्तेमाल किया गया है।

जसम के अरविंद कुमार ने कहा कि इस कहानी में कुछ चीजें अतिवाद की तरफ गई हैं और बहुत कुछ छूट गया है। डॉ. आंबेडकर कहते थे, गांव शोषण का अभ्यारण्य है, जबकि कहानीकार गांव के मोह को नहीं छोड़ पाया है। सामाजिक न्याय संस्था आज़मगढ़ के रामकुमार यादव ने इस कहानी को सामाजिक न्याय के पुरोधाओं के संघर्षों के खिलाफ बताया।

कहानी गुलइची

अंत में अध्यक्षता करते हुए माले नेता जय प्रकाश नारायण ने पूरे सामाजिक न्याय के आंदोलनों और उनके नेताओ-पुरोधाओं के अंतर्विरोध को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय यदि समानता तक नहीं जाता, तो इसका कोई मतलब नहीं है। सामाजिक न्याय एक रेखीय नहीं होता। इसको लालू यादव, मुलायम, पासवान या उदितराज तक सीमित नहीं करना चाहिए। सामाजिक न्याय के इस आंदोलन में वाम पक्ष की भूमिका को याद किया जाना चाहिए। इसी सामाजिक न्याय के लिए सैकड़ो कम्युनिष्टों ने अपनी जान गवाई है। सामाजिक न्याय की बात तो वर्तमान सरकारें भी करती हैं, जबकि हम सब जानते हैं कि ये वो शक्तियां हैं, जो समाज को हजारों साल पीछे ले जाना चाहती हैं और सारी प्रगतिशीलता, वैज्ञानिक चेतना, लोकतांत्रिक मूल्यों को नष्ट कर देना इनकी प्राथमिकता है। कहानी पर बात करते हुए नारायण ने कहा कि कहानीकार को भाषा पर ध्यान देना चाहिए। अन्य वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी, जिसमे रवींद्रनाथ, रामबदन यादव आदि थे।

इस परिचर्चा में डॉ. बद्रीनाथ, रामनिवास यादव, रामअवध यादव हंसराज यादव, रमेश गौतम, माहताब आलम, इफ्तेखार खान काशीपुरी, मोतीराम यादव नरेंद्र प्रताप, यमुना प्रजापति, बृजेश राय, सुरेंद्र कुमार चांस आदि उपस्थित रहे। इस परिचर्चा का संचालन दैनिक देवव्रत के प्रधान संपादक विजय यादव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन जन संस्कृति मंच आज़मगढ़ के संयोजक रमेश मौर्य ने किया।

LEAVE A COMMENT

Please enter your comment!
Please enter your name here

seven + seven =