चिकित्सक जोशुआ डेन्सन ने आईसीयू के रोगियों में विचित्र समानता देखी। इनमें से कई रोगी श्वसन सम्बंधी परेशानी का सामना कर रहे थे और कुछ के गुर्दे तेज़ी से खराब हो रहे थे। इस दौरान जोशुआ की टीम एक युवा महिला को बचाने में भी असफल रही थी, जिसके ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया था। यह काफी आश्चर्य की बात थी कि ये सभी रोगी कोविड पॉज़िटिव थे।
अब तक विश्व भर में कोविड-19 के 25 लाख से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 2.5 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। चिकित्सक और रोग विज्ञानी इस नए कोरोनावायरस द्वारा शरीर पर होने वाले नुकसान को समझने में लगे हैं। हालांकि इस बात से तो वे अवगत हैं कि इसकी शुरुआत फेफड़ों से होती है, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी पहुंच ह्रदय, रक्त वाहिकाओं, गुर्दों, आंत और मस्तिष्क सहित कई अंगों तक हो सकती है।
वायरस के इस प्रभाव को समझकर चिकित्सक कुछ लोगों का सही दिशा में इलाज कर सकते हैं। क्या हाल ही में देखी गई रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति कुछ हल्के मामलों को जानलेवा बना सकती है? क्या मज़बूत प्रतिरक्षा प्रक्रिया सबसे खराब मामलों के लिए ज़िम्मेदार है, क्या प्रतिरक्षा को कम करके फायदा होगा? क्या ऑक्सीजन की कम मात्रा इसके लिए ज़िम्मेदार है? ऐसा क्या है जो यह वायरस पूरे शरीर की कोशिकाओं पर हमला करके विशेष रूप से 5 प्रतिशत रोगियों को गंभीर रूप से बीमार कर देता है। इस विषय में 1000 से अधिक पेपर प्रकाशित होने के बाद भी कोई स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं है।
संक्रमित व्यक्ति छींकने पर वायरस की फुहार हवा में छोड़ता है और अन्य व्यक्ति की सांस के साथ वे नाक और गले में प्रवेश करते हैं जहां इस वायरस को पनपने के लिए एक अनुकूल माहौल मिलता है। श्वसन मार्ग में उपस्थित कोशिकाओं में ACE-2 ग्राही होते हैं। जो वायरस को कोशिका में घुसने में मदद करते हैं। वैसे तो ACE-2 शरीर में रक्तचाप को नियमित करता है लेकिन साथ ही इसकी उपस्थिति उन ऊतकों को चिन्हित करती है जो वायरस की घुसपैठ के प्रति कमज़ोर हैं। अंदर घुसकर वायरस कोशिका को वश में करके अपनी प्रतिलिपियां बनाकर अन्य कोशिकाओं में घुसने को तैयार हो जाता है।
जैसे-जैसे वायरस की संख्या बढ़ती है, संक्रमित व्यक्ति काफी मात्रा में वायरस छोड़ता है। इस दौरान रोग के लक्षण नहीं होते या बुखार, सूखी खांसी, गले में खराश, गंध और स्वाद का खत्म होना, सिरदर्द और बदनदर्द जैसे लक्षण हो सकते हैं। इस दौरान यदि प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस पर काबू नहीं पाती है तो यह श्वसन मार्ग से बढ़कर फेफड़ों तक पहुंच जाता है जहां यह जानलेवा हो सकता है। फेफड़ों में प्रत्येक कोशिका की सतह पर भी ACE-2 ग्राही पाए जाते हैं।
आम तौर पर ऑक्सीजन फेफड़ों की कोशिकाओं की परत को पार करके रक्त वाहिकाओं में और फिर पूरे शरीर में पहुंचती है। लेकिन प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा इस वायरस से लड़ते हुए ऑक्सीजन का यह स्वस्थ स्थानांतरण बाधित हो जाता है। ऐसे में श्वेत रक्त कोशिकाएं केमोकाइन्स नामक अणु छोड़ती हैं जो फिर और अधिक प्रतिरक्षी कोशिकाओं को वहां आकर्षित करता है ताकि वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को खत्म किया जा सके। इस प्रक्रिया में मवाद बनता है जो निमोनिया का कारण बनता है। कुछ रोगी केवल ऑक्सीजन की सहायता से ठीक हो जाते हैं, लेकिन कई अन्य लोगों में यह गंभीर रूप ले लेती है। ऐसे में रक्त नलिकाओं में ऑक्सीजन का स्तर अचानक से गिरने लगता है और सांस लेने में परेशानी होने लगती है। आम तौर पर ऐसे रोगियों को वेंटीलेटर की ज़रूरत पड़ती है और कई तो ऐसी स्थिति में पहुंचकर दम तोड़ देते हैं।