कबीर और उनका लोकोन्मुखी चिन्तन
“मनुष्योचित सभ्य समाज की आकांक्षा का पूरक है – प्रेम और ज्ञान, भक्ति और अध्यात्म का सुमधुर रसायन और विज्ञान बुद्धि की तर्कणा के साथ जीवन-दर्शन की व्याख्या। कबीर के जीवन तथा काव्य में मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव का सर्वथा अस्वीकार जितना प्रचण्ड है, सर्वातिशायी विराट सत्ता के प्रति निष्काम समर्पण के साथ प्रेम और निर्व्याज भक्ति का स्वीकार उतना ही प्रबल। किसी नन्हीं कलम से कबीर को सम्पूर्णता के साथ व्याख्यायित करना सम्भव नहीं। कबीर को जितना समझ पाया हूँ, वह मेरे इन दोहों में व्यक्त हुआ है। ये दोहे “नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव” के तृतीय हिल्लोल में संगृहीत हैं।” – अमलदार नीहार
(क्रान्तिचेता संत कवि कबीर की याद में अर्पित शब्द-सुमन)
ज्ञानी, मानी, ध्यानरत, सन्त और श्रमशील।
भक्ति-शक्ति अभिव्यक्तिमय दृग में करुणा-झील।। 1468।।
आखर मोती बन गये, साखी-सबद अमोल।
रचे रमैनी, बैन में रसे सरस हिल्लोल।। 1469।।
कस्तूरी की गन्ध-ज्यों घट-घट व्यापक राम।
जिससे मिलना रोज का प्राण-पलक अविराम।। 1470।।
ताने-बाने में वही, करघा, सूत कपास।
धड़कन दिल की, प्राण-लय, है वो साँस सुवास ।। 1471।
उसका निर्गुण राम वह व्यापक पिण्ड अरूप।
वही विपुल ब्रह्माण्ड में छाया-लिपटी धूप।। 1472।।
जड़-चेतन में व्याप्त जो तृन-तरु, लता-वितान।
वही बीज में अंकुरित, रस-मज्जा, मन-प्रान।। 1473।।
कारण-कार्य, निमित्त वह, कर्त्ता, आगम-हेतु।
सृजन-प्रलय-पोषण करे, संगम-नियमन-सेतु।। 1474।।
चले धार तलवार सच, नंगे पाँव सधीर।
घर फूँके, निर्भय रहे, दिल ‘नीहार’ कबीर।। 1475।।
‘खाला का घर ये नहीं’, मुक्ति कठिन कर्तव्य।
सधे क्षमा से क्षेम नित, करो सीस निज हव्य।। 1476।।
क्या शूद्रा, क्या ब्राह्मणी—एक मार्ग, गंतव्य।
सबका है करतार इक, भूत और भवितव्य।। 1477।।
गंग-स्नान दे मुक्ति जो, मिटे पाप, सब दोष।
मच्छ-कच्छ-कुम्भील को मिले स्वर्ग जल-पोष।। 1478।।
‘अनभै साँचा’ माँजते मन में आत्म-प्रकाश।
जीते जीवन-मुक्त जो, चढ़े सिद्धि-आकाश।। 1479।।
दर्शन-भेद रहस्यमय उलटबाँसियाँ खूब।
‘समँद अकासा’ धाय मन जाये उसमें डूब।। 1480।।
‘काम मिलावे राम कूँ’ है कबीर-सिद्धान्त।
नारी-सुलभ स्वभाव से उबरे माया-ध्वान्त।। 1481।।
‘नारी के झाँईं परे अन्धा होत भुजंग’।
जी हाँ, कहा कबीर ने लम्पट-चरित अनंग।। 1482।।
है कबीर में बाज भी, चातक और कपोत।
प्राण-सुआ की पीर में भक्ति परम उद्योत।। 1483।।
वयन करे, कवयन करे, दे काशी भी छोड़।
मन तो केवल ‘राम’ में बाकी रिश्ते तोड़।। 1484।।
राम यार, दूल्हा वही, फेरे पिय सँग सात।
पंचतत्त्व, अन्तःकरण, विषयेन्द्रिय-बारात।। 1485।।
है जो ‘कूता राम का’, ‘मुतिया’ उसका नाम।
‘राम नाम की जेवरी’, झुक-झुक करे सलाम।। 1486।।
ख़ालिक मालिक राम ही, जननी-हृदय दुलार।
आँचल धूल बुहार दे, सब अपराध बिसार।। 1487।।
‘आँखिन देखी’ ही कहे, अनुभव-सीझी बात।
सच के आँवे में पकी जीवन की सौगात।। 1488।।
जल के भीतर कुम्भ, जल घट-नलिनी में वास।
आत्म-ब्रह्म, दोनों मिले, झिलमिल दिव्य प्रकाश।। 1489।।
जीवन भर लड़ता रहा चेतस् क्रान्ति कबीर।
भेदे अन्तस्-बाह्य तम, तर्क-ज्ञान के तीर।। 1490।।
सच को साबित वो करे, काशी-मगहर एक।
रूढि-अन्धविश्वास को मेटे सहित विवेक।। 1491।।
चादर मैली सब करें, बिना जतन के पोढ़।
जाने जतन कबीर ही,सौंपे निर्मल ओढ़।। 1492।।
बाले दीपक ज्ञान गुरु, मेटे घन अँधियार।
बाहर-भीतर हो गया जीवन में उजियार।। 1493।।
शून्य सिषिर गढ़ जा बसा अपना प्यारा पीव।
समझो वही मवास है संगम दुलहिन जीव।। 1494।।
हिन्दू भी अपने सगे, मगर झूठ के फेर।
‘पाथर पूजे हरि मिले’! माधव माटी शेर।। 1495।।
वेद-शास्त्र, पूजा-धरम, सबमें संशय-मेल।
परस पिया-बिन जानिए गुड्डा-गुड़िया-खेल।। 1496।।
“पाँड़े के पाखण्ड’ सब ‘निपुन कसाई’-मार।
‘बूझि पियहु पानी’ कहे सम्मुख ही ललकार।। 1497।।
मुसलमान ईमान से जाये जब भी चूक।
जा मस्जिद में बाग दे, सुने खुदा कब हूक।। 1498।।
मुल्ला-पण्डित बोझ से दबे ज्ञान-अभिमान।
चन्दन लकड़ी पीठ पर गदहा निर्बल प्रान।। 1499।।
‘ढाई आखर प्रेम के’ पढ़े न कीड़ा- काठ।
अपनी धुन में खा गया सबका हक़ खुर्राट।। 1500।।
बरस हजार-हजार में पैदा बुद्ध-कबीर।
बतलाये वो मंत्र जो हर ले जन-मन-पीर।। 1501।।
भटकाये मन मोहिनी, मर्कट हँड़िया-बुद्धि।
तपे ताप पावक तभी, कंचन जैसी शुद्धि।। 1502।।
सत्य-सुपथ ‘नीहार’ चल बनकर नया कबीर।
चले बला की आँधियाँ, कोई आलमगीर।। 1503।।
आदिल सबका एक है राम कहो, अल्लाह।
जो भी उसकी राह पर, कौन करे ग़ुमराह।। 1504।।
[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव(तृतीय हिल्लोल) अमलदार नीहार]
परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर