मुंबई: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में 5 दिसम्बर 2019 को जलाकर मारी गई देश की बेटी मोहिनी को न्याय दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश के अलावा पूरे देश में जगह-जगह से न्याय की मांग उठाई जा रही है। इसी क्रम में मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र के विश्वकर्मा वंशीय समाज ने 7 जनवरी 2020 को मुंबई के आजाद मैदान में धरना प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। ज्ञातव्य है कि उन्नाव निवासी देश की बेटी मोहिनी के साथ दरिंदों ने पहले सामूहिक बलात्कार किया और कोर्ट में मुकदमा हो जाने से नाराज उस बेटी को पेट्रोल डालकर जलाकर मार दिया।
इस घटना ने पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया। धरना आयोजकों ने बताया कि आये दिन विश्वकर्मा समाज के लोग उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं और बहन बेटियों की आबरू सरेआम नीलाम हो रही है। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण विश्वकर्मा वंशीय समाज अपने स्वाभिमान और सम्मान को बचाने के लिए एकजुट हो रहा है। देश के कोने-कोने में धरना-प्रदर्शन कर आवाज उठाई जा रही है। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र कैसे पीछे रह सकता है।
मुंबई एक ऐसा शहर है, जहां सभी प्रदेशों के लोग रहते हैं। इस दृष्टिकोण से मुंबई का यह धरना बहुत मायने रखता है। यहां के धरने में सभी प्रदेशों के विश्वकर्मा वंशीय समाज का प्रतिनिधित्व होगा। मुंबई सहित सम्पूर्ण महाराष्ट्र का विश्वकर्मा वंशीय समाज एकजुट हो आज के इस धरना-प्रदर्शन में पहुँच रहा है। इस धरने में विश्वकर्मा वंशीय समाज के 70 से ज्यादा संगठनों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समर्थन दे दिया है। समाज के लोग धरना-प्रदर्शन के माध्यम से मारी गई बेटी के परिजनों की सुरक्षा के साथ ही फास्टट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाकर यथाशीघ्र हत्यारोपियों को फांसी की सजा दिये जाने की मांग करेंगे।
लचर व्यवस्था की शिकार हो गई ज्योति, उन्नति और मोहिनी विश्वकर्मा-
घटनाएं तो बहुत हो रही हैं, इन घटनाओं में कुछ झकझोर देने वाली भी घटनाएं शामिल हैं। बीते साढ़े चार साल के अन्दर विश्वकर्मा समाज ने संघर्षरत तीन बेटियों को खो दिया। इन तीनों की मौत का कारण सरकारी मशीनरी रही है। यदि व्यवस्था लचर न होती तो यह बेटियां अपनों के बीच हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही होती। प्रतापगढ़ जिले की ज्योति विश्वकर्मा, लखनऊ जिले की उन्नति विश्वकर्मा और अब उन्नाव जिले की मोहिनी मानव रूपी दानवों की शिकार हो गई। ज्योति अपनी जमीन बचाने में जान गंवा दी तो उन्नति और मोहिनी दरिन्दगी की भेंट चढ़ गई।
प्रतापगढ़ जिले के थाना जेठवारा अन्तर्गत श्रीपुर गांव निवासी ज्योति विश्वकर्मा अपने परिवार में पढ़ी-लिखी लड़की थी। पड़ोसी से जमीनी विवाद के चलते खुद पैरवी करने कचहरी और तहसील जाती थी। यह बात विरोधियों को नागवार गुजर रही थी। एक दिन मौका पाकर घर के पिछले हिस्से में ही विरोधियों ने उसके ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दिया। तीन दिन अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष करती रही और अन्ततः मौत से हार गई। साल 2015 की यह एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश के विश्वकर्मा वंशियों के दिल में आग लगा दिया था। लोगों ने आन्दोलन की राह पकड़ श्रीपुर से लेकर दिल्ली तक एक कर दिया। तत्कालीन अखिलेश यादव की सपा सरकार में हुई इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिये थे। विश्वकर्मा समाज के लोगों ने ज्योति को न्याय दिलाने के लिये न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश के कई हिस्सों में धरना-प्रदर्शन किया। नतीजा रहा कि सपा नेता व तत्कालीन राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामआसरे विश्वकर्मा के प्रयास से सरकार ने पांच लाख रूपये की सहायता ज्योति के परिजनों को प्रदान किया। एक शर्मनाक दौर वह भी आया जब सरकार द्वारा दिया गया चेक बाउंस हो गया। समाज के लोगों को फिर से आन्दोलन करना पड़ा तब जाकर सहायता राशि ज्योति के परिजनों के खाते में स्थानान्तरित हो सकी। चूंकि ज्योति का कलमबंद बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज हो चुका था जिसके आधार पर न्यायालय ने सभी आरोपियों को सजा सुना दी। यह एक ऐसी घटना थी जिसके लिये देश का विश्वकर्मा समाज आन्दोलित हुआ। लोगों ने ज्योति के गांव श्रीपुर तक जाकर परिजनों को ढांढस बंधाया। लगा था कि ज्योति ने जलकर विश्वकर्मा समाज के बीच एकता और संघर्ष की ज्योति जला दी है, अब और ज्योति नहीं जलाई जायेगी। परन्तु हैवानियत के परिन्दे जब तक जीवित रहेंगे तब तक एक नहीं, लाखों ज्योति को जिन्दा जलाया जाता रहेगा।
ज्योति को जिन्दा जलाये जाने की घटना के कुछ ही महीने के अंतराल में लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के नजदीक एक ऐसी घटना घटी जिसने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये। एक मासूम लड़की उन्नति विश्वकर्मा जो अपने स्कूल पढ़ने जा रही थी का अपहरण कर लिया गया, उसे कब और कहां रखा गया यह नहीं पता, लेकिन उसकी अर्धनग्न लाश मुख्यमंत्री आवास के नजदीक झाड़ियों में पाई गई। उसके साथ जो दरिन्दगी हुई शायद आपको कभी सुनने को नहीं मिली होगी। फोरेंसिक जांच और डीएनए टेस्ट में जो तथ्य सामने आये वह चौंकाने वाले थे। उन्नति के साथ 21 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। इतना ही नहीं उसके मरने के बाद शव के साथ भी अगले 24 घंटे तक बलात्कार होता रहा। सामूहिक बलात्कार की इतनी भयावह तस्वीर कभी सामने नहीं आई। लेकिन दुख इस बात का है कि तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने इस प्रकरण को ऐसा लपेटकर पन्नों में दफन कर दिया कि शायद उसे कभी न्याय नहीं मिल सकेगा। पुलिस ने कुछ रिक्शे वालों को और गोल्फ क्लब के कैडी को जेल भेज कर अपनी खानापूर्ति कर दी। यदि इस मामले की जांच गहराई से हुई होती तो शायद कई बड़े नेता या उनके गुर्गे इस मामले में फंस सकते थे, लेकिन पुलिस ने सभी को बचाने का काम किया। उन्नति के शव के पास मिले सामान खुद बयां कर रहे थे कि यह वारदात किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है। लेकिन हमारी पुलिसिया और प्रशासनिक व्यवस्था ने लालच में या सरकार के दबाव में आकर उन्नति के केस में कोई उन्नती न हो इसलिए उसे कागज के पन्नों में दफन कर दिया। उन्नति को भी न्याय दिलाने के लिए विश्वकर्मा समाज के लोगों ने बहुत संघर्ष किया, आन्दोलन किया, लेकिन सरकारी मशीनरी के आगे सब फेल हो गया।
“मेरा मत तो है कि ऐसे लोगों को न्यायालय फांसी देने की बजाय इनके दोनों हाथ और दोनों पैर काटने का आदेश दे। फांसी तो ऐसी व्यवस्था है की सेकंड मात्र में व्यक्ति मौत को गले लगा लेगा। उसे दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे। जितने दिन वह जेल में रहेगा उसे भोजन तो मिलता ही रहेगा। यदि ऐसे मानसिक विकृति के लोगों को सजा देना है तो उसके दोनों हाथ और दोनों पैर काटने का आदेश देना चाहिये। जिससे वह जब तक जिन्दा रहे तब तक घुट-घुट कर मरे और प्रायश्चित भी करे। ऐसा करने से शायद ऐसी मानसिक विकृति वालों को विकृति मानसिकता से बाहर निकलने का रास्ता दिख सके।” –-कमलेश प्रताप विश्वकर्मा
यह कैसा रामराज्य है, तेरे अपने हैवानों के साथ क्यों हैं – अरविन्द विश्वकर्मा (सामाजिक चिंतक एवं विचारक)
वह धू-धू कर जल रही थी लेकिन लोग निद्रा में लीन थे। सो रहा था प्रशासन, पर वह न्याय की आस में जग रही थी। उसे आस थी, उम्मीद थी, विश्वास था इस विधान पर, न्याय पर और अपनों पर कि मेरे साथ इंसाफ होगा। उसे तो पता था प्यार होना गलत नहीं, किन्तु सामाजिक स्तर की वह कड़वी सच्चाई नहीं पता थी कि अंत में उनकी लोक लज्जा जीवनसंगिनी नहीं बनने देगी। वह शादी के डोरे में तो नहीं बंध पाई, अलबत्ता इस बीच लड़के द्वारा किये गये शादी के वादे और विश्वास के बीच वह अपना सबकुछ उसे सौंपती रही। सामाजिकता का डर और शरीर की भूख लड़कों को हैवान बनने की ओर अग्रसर भी कर देती है। कुछ ऐसा ही हुआ और जबतक लड़की को एहसास हुआ वह सबकुछ लुटा चुकी थी। वह ज्ञान-विधान को सर्वोपरि मान न्याय की ओर अग्रसर हुई। उसे क्या पता था कि न्याय की राह में, जांच के विधान में वाद भी होता है। उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसकी अकाल मौत हैवानों के साथ आग के बवंडर के रूप में बढ़ी आ रही है।
हद हुई, सीमाएं पार हुई, न्याय का तराजू भी उलट गया और हैवान जमानत के रास्ते उसकी ओर बढ़ चले, वह दिसम्बर की 5 तारीख थी। ठगी सी घायल शेरनी की भांति न्याय के मंदिर की ओर जा ही रही थी कि “हैवानों का झुंड” जो घात लगाए ताक में थे आग हवाले कर गए। तब भी भागी न्याय की उम्मीद में, अन्याय से लड़ने के लिए। बुलाया रक्षक, पर नहीं पता था कि वह उसे वहां इलाज को भेजेंगे जहां से वह वापस नहीं आएगी। अंतिम सांस तक कहती रही, मुझे नहीं मरना, मुझे न्याय चाहिए। पर बेबस विधान सिस्टम में उलझा रहा और हाथ जोड़े खड़ा रहा। वह गई तो गई, चली गई, पीठ पीछे न्याय के लिए हुजूम को जन्म दे गई। वह वाद जो जन्मा था तब, अब बड़ा हो चला और न्याय की राह में रोड़ा बन चला। गैर तो गैर अपने भी वाद पर वाद खेलने लगे, उसके नाम को बदनामी की ओर धकेलने लगे। न्याय के लिए प्रशासन के गाल पर तमाचा मारने वाले, दूसरी ओर खड़े होने लगे। अन्याय का पलड़ा कलयुग में पुनः नीचे झुकने लगा। हे राम तू ही जाने कैसा रामराज्य है, तेरे अपने हैवानों के साथ क्यों हैं? आशा और उम्मीद है कि उसकी आग की चिंगारी से ही अन्यायी जल जाएंगे और तू चुपचाप तमाशबीन बना न्याय की ओर खड़ा हो जाएगा।