कोविड महामारी के बीच पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, और अर्थव्यवस्था पर इन सबके असर के हवाले से एक बढ़िया ख़बर आ रही है। और खबर ये है कि पेरिस समझौते का असर शामिल देशों की कथनी और करनी में दिख रहा है। इस बात की तस्दीक करती है ग्लोबल कंसल्टेंसी सिस्टमआईक्यू (SYSTEMIQ) की द पेरिस इफ़ेक्ट नामक रिपोर्ट जो यह बताती है कि जलवायु समझौता (Paris Agreement), वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर रहा है और जो सबसे उत्साहवर्धक बात निकल कर इससे आयी है वो है कि 2015 के पेरिस समझौते के बाद से कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले समाधानों के निवेश और अपनाने में तेजी आयी है। एक नए आंकलन से साफ़ ज़ाहिर होता है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन के 70% के लिए ज़िम्मेदार क्षेत्रों में 2020 से, कम कार्बन उत्सर्जन के समाधान अपनाने मं प्रतिस्पर्धा के चलते बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। यह बदलाव एक शून्य-कार्बन अर्थव्यवस्था लाने में मदद कर सकते हैं जो आगे आने वाले समय में 350 लाख (35 मिलियन) नौकरियां पैदा करेगी।
यूरोपीय संघ यू.के और अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन (जो संयुक्त रूप से 30% वैश्विक आयात करते हैं), आपस में कार्बन बॉर्डर टैक्स लगाने पर विचार कर रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि 2030 के दशक तक -शून्य कार्बन अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण से रिन्यूएबिल एनर्जी, ऊर्जा-दक्ष( energy efficient) इमारतों, स्थानीय खाद्य व्यवस्थाओं (यानि अपने आस पास मौजूद खाना ही इस्तेमाल करके) और ज़मीन को पुनर्बहाल करने जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 35 मिलियन से ज्यादा नई प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित होने जा रही हैं। COVID-के बाद के स्वास्थ्य लाभ के लिए यह पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हैं। वहीं दूसरी तरफ शून्य-कार्बन समाधान अब, अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए, डिज़िटलाइजेशन के साथ संयोजित होंगे।
दस से ज्यादा कार निर्माताओं (Volvo, Renault और Fiat सहित) ने 2020 और 2025 के बीच की अवधि के लिए EV बिक्री लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्धता जताई है। VW समूह अकेले 2024 तक $66 बिलियन निवेश करने की योजना बना रहा है।शिपिंग की दुनिया के सबसे बड़े नाम Maersk और CMA CGM 2050 तक नेट जीरो के लिए प्रतिबद्ध हैं। वैश्विक सीमेंट उत्पादन क्षमता के एक-तिहाई का प्रतिनिधित्व करने वाली 40 कंपनियां वैश्विक सीमेंट और कंक्रीट संघ के माध्यम से 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने के लिए प्रतिबद्ध हैं। Dalmia Cement and Heidelberg Cement ने क्रमशः 2040 और 2050 तक कार्बन न्यूट्रल के लिए अलग से प्रतिबद्धता दर्ज की है।
इस सन्दर्भ में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पेरिस समझौते के वास्तुकार और यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन के सीईओ, लॉरेंस टुबियाना, कहते हैं, “अब यह तो साफ़ है पेरिस समझौते के लक्ष्य दुनिया की तमाम सरकारों और वित्तीय संस्थाओं के लिए एक संदर्भ बिंदु हैं। विश्व के नेताओं ने साल 2015 में जिस यात्रा की शुरूआत की, उसे अब गति देने का समय आ गया है। यह साफ़ है कि वैश्विक तापमान और उत्सर्जन बढ़ रहा है, लेकिन इस आकलन से हमें यह उम्मीद मिलती है कि साथ साथ पेरिस समझौता भी अपना काम कर रहा है।
पेरिस समझौते के बाद से तय की गई गतिशीलता ने पिछले पाँच वर्षों में निम्न-कार्बन समाधानों और बाज़ारों के लिए नाटकीय रूप से प्रगति करने के लिए परिस्थितियां पैदा की हैं। इस समझौते ने – इस अंतर्निहित ‘शफ़्ट’ ने – 195 देशों के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को लगातार कम करने के लिए एक साफ़ रास्ता तैयार कर दिया। इलेक्ट्रिक वाहनों से वैकल्पिक प्रोटीन्स से लेकर स्थायी उड्डयन ईंधन तक सब के लिए अनुकूल परिस्थितियों तैयार हो गयी नजर आ रही है।
50% से ज्यादा सकल घरेलू उत्पाद के लिए ज़िम्मेदार देश, शहर, क्षेत्र और कंपनियों ने शुद्ध शून्य लक्ष्य स्थापित किए हैं। यूरोपीय संघ, यू.के. और अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन (जो संयुक्त रूप से 30% से ज्यादा वैश्विक आयात करते हैं) द्वारा कार्बन सीमा कर समायोजनों की वास्तविक संभावना पहले से ही इस्पात और एल्यूमीनियम जैसी वस्तुओं के लिए बाज़ार में व्यवहार में एक तरह का व्यावधान उत्पन्न कर रही हैं। अबखाद्य कंपनियों पर यह साबित करने की ज़िम्मेदारी कि उनकी आपूर्ति शृंखलाएं वनों की कटाई से मुक्त हैं, आवश्यकताओं की विश्वसनीय संभावना व्यवहार को बदल रही है।
इसी क्रम में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र और गवर्नेंस के प्रोफेसर और वहीँ पर, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर अनुदान अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष, निकोलस स्टर्न, अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “हम जानते हैं कि अपर्याप्त कार्रवाई आगे चल कर बड़े और महंगे जलवायु जोखिम में तब्दील हो जाती है। इसलिए बुद्धिमान नीति निर्माता और निवेशक ऐसा कुछ करने से बचेंगे और ऐसे लक्ष्य बनायेंगे जिनसे नौकरियों का सृजन हो और व्यवस्था में लचीलापन। और ये सब सिर्फ़ एक शुद्ध-शून्य अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही किया जा सकता हैं।”
यह दर्शाता है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी है, अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में कम कार्बन प्रगति अब तेज हो रही है। सौर और पवन की तेजी से गिरती लागत पहले से ही कई बाजारों में जीवाश्म ईंधन की तुलना में बेहतर दांव लगाती है, जबकि इलेक्ट्रिक वाहन विकास की गति ने अनुमानों को दोहराया है। 2030 तक, 70% उत्सर्जन में योगदान करने वाले क्षेत्रों के लिए, हमारे पास भारी सड़क परिवहन, भारी उद्योग और कृषि सहित प्रतिस्पर्धी कम या लो कार्बन समाधान होंगे।
अब 2020 के दशक में जीरो-कार्बन उद्योगों की प्रगति, समृद्ध विकास करने, लाखों नौकरियों और अधिक लचीली अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करने के लिए पीढ़ी में एक बार आने वाला अवसर है। पेरिस इफेक्ट के चलते भारी उद्योग क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल समाधानों को प्राथमिकता मिलेगी जिससे शिपिंग और विमानन जैसे क्षेत्र अपने ग़ैर-हरित समकक्षों की तुलना में तेजी से प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। चीन के बाहर कोयले में नये निवेशों में तेज़ी से गिरावट दर्ज जो रही है और नई डीजल और पेट्रोल चालित कारों को 2030 के दशक तक कुछ ख़ास बाजारों में ही वापस लाये जाने की संभावना है। और इस सब के बीच जिस तरह से तेल की बड़ी कंपनियों के वैल्यूएशन में गिरावट दिख रही है, उससे पीक ऑयल डिमांड एक हक़ीक़त लग रही है।
भारतीय रेलवे ने वर्ष 2030 तक प्रदूषणमुक्त संचालन वाली दुनिया की पहली रेलवे बनने का लक्ष्य तय किया है। भारत कूलिंग एक्शन प्लान घोषित करने वाले दुनिया के पहले देशों में शामिल है। भारत अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और ऊर्जा दक्षता के मामले में भी अग्रणी है। ये सभी चीजें पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज से भारत की सकारात्मक तस्वीर पेश करती हैं।
भारत ने राउंड द क्लॉक रिन्यूएबल्स की 38 डॉलर प्रति मेगावाट के हिसाब से नीलामी की और ताजा सोलर बिड 27 डॉलर प्रति मेगावाट रही है। एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में बहुत उछाल आने वाला है और जब इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें परंपरागत ईंधन से चलने वाले वाहनों के मूल्यों के बराबर हो जाएंगी, तब इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में जबरदस्त उछाल आएगा।
पेरिस समझौते की सालगिरह से पहले उसी संदर्भ में हुई एक वेबिनार में टेरी की प्रोग्राम डायरेक्टर रजनी आर. रश्मि ने कहा, “जहां तक अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का सवाल है तो मेरे हिसाब से भारत सही रास्ते पर है। भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है। वह एमिशंस इंटेंसिटी के मामले में 24% की गिरावट दर्ज कर चुका है।”
उसी वेबिनार में डब्ल्यूआरआई इंडिया की जलवायु कार्यक्रम की निदेशक उल्का केलकर कहती हैं “पहले माल ढुलाई का काम रेलवे से ज्यादा होता था लेकिन अब यह काम डीजल से चलने वाले ट्रकों पर आ गया है। यहां पर प्रदूषण कम करने के लिहाज से जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं। अगर भारत को अपने सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना है तो सीमेंट और स्टील जैसे उद्योगों में अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति दक्षता लानी होगी। कार्बन प्राइसिंग और कार्बन ट्रेडिंग के जरिए इन उद्योगों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।’’