बापू! तेरी याद को सौ-सौ बार सलाम – अमलदार नीहार

महात्मा गांधी

स दुनिया में सच कहो–एक निराला नाम।
सदी बीसवीं सत्य का नव प्रयोग अभिराम।। 1857।।

गाँधी उसका नाम, जो जिए-मरे सिद्धान्त।
गाँधी में युग-बोध था, गाँधी एक युगान्त।। 1858।।

एक समन्वय-साधना, वाणी-कर्म-विचार।
साधारणता दृष्टि में, हृदय सृष्टि-विस्तार।। 1959।।

जिसका चश्मा और हो, लगे उसे कुछ और।
हिये न ज्वाला क्रान्ति की आन्दोलन के दौर।। 1860।।

अस्त्र अहिंसा दिव्य ज्यों दोधारी तलवार।
बिना रक्त की बूँद के विजय, बिना तक़रार।। 1861।।

जिसने भी खारिज़ किया गाँधी का हथियार।
कहो नेस्तनाबूद या फँसा भँवर मझधार।। 1862।।

इसमें दोनों पक्ष का निश्चित हित-विश्वास।
मानवता के माथ पर जगमग पर्व प्रकाश।। 1863।।

परछाईं भी छू सको, ऐसा कहाँ नसीब।
गोली-गाली दो भले, फिर भी वही हबीब।। 1864।।

‘राष्ट्रपिता’ भी मत कहो, दो न ‘महात्मा’ नाम।
फिर भी ‘तारा आँख का’, बापू तो बेदाम।। 1865।।

सत्याग्रह की राह पर चलना कब आसान।
चले वही, जो दे सके निज प्राणों का दान।। 1866।।

झूठ-कपट हो रूह में, ढकोसला ईमान।
कभी न गाँधी बन सके सपने में इंसान।। 1867।।

गाँधी पुरखा देश का सत्य-अहिंसादर्श।
पावकधर्मा पंथ है–जीवन का उत्कर्ष।।1868।।

कहा गधे ने ऊँट से–“कैसा मोहन रूप”।
ऊँट मुग्ध बोला–“अहो! स्वर-माधुर्य अनूप”।।1869।।

बापू! तेरी अस्थियाँ चबा गये कुछ दाँत।
जिनसे पूरे देश को था मिलना सौगात।। 1870।।

कुक्कुर-गिद्ध-सियार में लगी हुई इक होड़।
गाँंधी! तेरी लाश को मिल-जुल रहे झिंझोड़।। 1871।।

नफ़रत-नेज़े नित् चले, बहे लहू की धार।
तब से अब तक है मरा बापू बार हजार।। 1872।।

तन से, मन से तू रहा नंगा एक फकीर।
कुछ बौने इतरा रहे–“उनकी बड़ी लकीर”। 1873।।

जो भी नंगे पाँव से चले तेग की धार।
समझो पहला पाठ यह, फिर गाँधी-विस्तार।। 1874।।

विनय-अवज्ञा संग हो, थमे नहीं संवाद।
पूत आत्म-संकल्प निज, सुलझे सकल विवाद। 1875।।

दृढ़ता, संयम, साधना, सहनशक्ति, धृति-ध्यान।
करुणा की मुस्कान मुख, हृदय वज्र चट्टान।। 1876।।

धी-विवेक, साहस प्रबल, ब्रह्मचर्य-बल-तेज।
गाँधी, जिसके सामने ठहरा कब अंँगरेज़।। 1877।।

ब्रिटिश-हुकूमत काँपती, बूढ़ा सनकमिज़ाज।
निर्लोभी ठुकरा सके पाया तख्तो-ताज।। 1878।।

नहीं भोग की वासना, व्यर्थ विभव या रूप।
चर्चिल-दृग विस्मय भरे, उससे गुरुतर भूप।। 1879।।

भूप-सभा, बेख़ौफ़ हो दे सबको ललकार।
“हीरे-मोती फेँक दो तब सच्चे सरदार”।। 1880।।

“लदे-फँदे जो देह पर भूषण लोहू-सान।
खून चूस कब हो गये तुम रहनुमा किसान”।। 1881।।

“देशभक्त कैसे कहूँ, चूस रहे नित् खून।
निर्धन दीन किसान के, कैसा ये क़ानून।। 1882।।

खूब जली थीं होलियाँ–वैदेशिक परिधान।
दहला दिल इंग्लैण्ड जो, जग में कीर्ति-वितान।। 1883।।

नमक बना क़ानून को दाण्डी दण्ड-विधान।
पावर ग्रेट ब्रिटेन ले खुली चुनौती मान।। 1884।।

चक्र सुदर्शन मानिए चरखामय जब देश।
धर्म स्वदेशी, कर्म भी करो, यही सन्देश।। 1885।।

टकराया हर जुल्म से, सच का पहरेदार।
गाँधी तो इतिहास को ईश्वर का उपहार।। 1886।।

विस्मय-मंत्र अमोघ-सा सत्याग्रह-हथियार।
साथ अहिंसा-प्रेम के के प्रतिरोधी व्यवहार।। 1887।।

सिर पर चटकी लाठियाँ, हथकड़ियों में हाथ।
फिर भी संयम-शील का कभी न छोड़ा साथ।। 1888।।

कर्मभूमि की भूमि वह–अफ्रीका का देश।
त्याग-तपस्या-तेज का बीज हृदय में शेष।। 1889।।

चम्पारन भी साक्ष्य, दुख ज़ाहिर नील-किसान।
झुका नहीं, लोहा लिया, दीनों का अभिमान।। 1890।।

गाँधी बाहर जो रहे, खड़ा करे तूफान।
उसे जेल में ठूँस दो, गूँजे हिन्दुस्तान।। 1891।।

भारी मंत्र अमोघ-सा, आयुध हर उपवास।
आत्मशुद्धि के साथ ही सार्थक सभी प्रयास।। 1892।।

आन्दोलन वह खूब था असहयोग का शान्त।
चौरीचौरा ने किया जिसे बीच उद्भ्रान्त।। 1893।।

फिर गाँधी के मुड़ गये बढ़े कदम विश्रान्त।
हिंसा उसको मान्य क्यों, जिससे कल्याणान्त।। 1894।।

संकट कितना हो घना, उसकी आत्म-पुकार।
लोहे को पिघला सके, मोड़ काल की धार।। 1895।।

“अंग्रेजों! तुम छोड़ दो भारत मेरा देश”।
‘करो-मरो’ संकल्प अब पास हमारे शेष। 1896।।

आन्दोलन से हिल उठे गढ़ लंदन, सब ठाँव।
एक जवानी जोश की जागी कस्बे-गाँव।। 1897।।

ज़ाहिर सकल जहान में बलिया क्रान्ति अगस्त।
पूरी भारत भूमि पर ब्रिटिश हुकूमत पस्त।। 1898।।

बिगुल क्रान्ति का बज उठा, अद्भुत वह बलिदान।
जगह न कुछ भी जेल में, जागा हिन्दुस्तान।। 1899।।

किसने क्या-क्या, क्यों सहा, पूछो नहीं सवाल।
जो न कहीं इतिहास में, रचे भूप भूचाल।। 1900।।

राजनीति में आ धँसे कुछ जम्बूक सुनील।
व्यर्थ हुआ बलिदान यों, आँखें आँसू-झील।। 1901।।

खड़ा वहीं पर आज भी दीन-दरिद्र किसान।
अरमानों के कण्ठ में फाँसी-फन्दा जान।। 1902।।

ज्योति-पुञ्ज को भूल मत तिमिर-लता के फूल।
भर जायेंगे शूल ही फैले हुए दुकूल।। 1903।।

मानवता मर जाय तो कहाँ ठिकाना-ठौर।
गाँधी के इस देश में क्या है गाँधी और।। 1904।।

हाड़-मांस की देह में चेतन अमल स्वरूप।
करे न युग विश्वास, वह मानव-मूर्ति अनूप।। 1905।।

भारत माँ के वक्ष पर गोली! मुख ‘हे राम!’
बापू! तेरी याद को सौ-सौ बार सलाम।। 1906।।

[नीहार-दोहा-महासागर : प्रथम अर्णव(तृतीय हिल्लोल) में संगृहीत]


परिचय 


  • डाॅ. अमलदार ‘नीहार’                     

   अध्यक्ष, हिन्दी विभागAmaldar Neehar
   श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001 

  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
  • अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।Amaldar Neehar Books
  • अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।

सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001

मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर

इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दें