किसी एक दिन (कविता) – हूबनाथ पाण्डेय

हूबनाथ पाण्डेय

जी करता है
इस प्यारी धरती को
कसकर बाहों में जकड़ लूँँ
भींच लूँ ख़ूब कसकर
टस से मस न होने दूँ

जब से जनमी
चलती ही जा रही
इसके पाँवों के छाले
न जाने कितनी बार
फूटफूटकर बरसे हैं

न जाने कितना तरसे हैं
इसके थके से नयन
बूँदभर उजास के लिए
कितनी तरसी है रसना
स्नेहमयी प्यास के लिए

थोड़ी देर गोद में लेकर
इसे दुलराऊँ थपथपाऊँ
इसकी घुँघराली अलकों में
ऊँगलियाँ फँसाऊँ
बसाऊँ पलकों में
घड़ी भर के लिए
अपनी प्यारी प्यारी धरती को

नदियों का ज़हर चूस लूँ
नीलकंठ की तरह
उगाऊँ जंगलों की क़ब्र पर
प्यारा सा नया जंगल
नूह की नाव से उठा लाऊँ
तमाम जीवों के नए जोड़े
और छींट दूँ
बाजरे की तरह
पूरी क़ायनात में

जितना कुछ खोया है
मेरी प्यारी धरती ने
वह सब कुछ एक साथ
एक दिन
लौटा देना चाहता हूँ

इसे बाहों में भरकर
ख़ूब रोना चाहता हूँ
कि यह सब मैंने
तब क्यों नहीं सोचा
तब क्यों नहीं किया
जब मेरी धरती को
सबसे अधिक ज़रूरत थी।

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परिचय


हूबनाथ पांडेय
हूबनाथ पांडेय

कवि : हूबनाथ पांडेय

सम्प्रति: प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई
संपर्क: 9969016973
ई-मेल: hubnath@gmail.com

संवाद लेखन:

  • बाजा (बालचित्र समिति, भारत)
  • हमारी बेटी (सुरेश प्रोडक्शन)
  • अंतर्ध्वनि (ए.के. बौर प्रोडक्शन)

प्रकाशित रचनाएं:

  • कौए (कविताएँ)
  • लोअर परेल (कविताएँ)
  • मिट्टी (कविताएँ)
  • ललित निबंध: विधा की बात
  • ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय
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