हाल ही में मोन्टाना के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने जीवाश्म विज्ञानियों को राहत दी है। कोर्ट ने फैसले में कहा है कि जीवाश्म कानूनी रूप से सोने-चांदी जैसे खनिजों से भिन्न हैं। इन पर आधिपत्य उसका होगा जिसकी भूमि पर वे मिले हैं, ना कि भूमि के नीचे के खनिज भंडार मालिकों का।
दरअसल, मामला पूर्वी मोन्टाना के भूभाग में साल 2006 में प्राप्त डायनासौर के दो जीवाश्मों से जुड़ा है। मरे दम्पति ने पूर्वी मोन्टाना में सेवरसन बंधुओं से ज़मीन खरीदी थी। उन्होंने निजी जीवाश्म खोजियों के साथ मिलकर उस भूखंड से टायरानेसौरस रेक्स के कंकाल सहित कई बड़ी खोजें कीं। जिसमें सबसे अनोखी खोज थी डायनासौर के कंकालों की एक जोड़ी, जिसे देखने पर लगता है कि वे दोनों लड़ते हुए मारे गए थे।
ज़मीन बेचते समय सेवरसन बंधु ने उक्त भूमि के नीचे दबे खनिज पर दो तिहाई मालिकाना हक अपने पास रखा था। इसलिए इस खोज के बाद उन्होंने इन जीवाश्म पर आंशिक मालिकाना हक का दावा किया। गौरतलब है कि यूएस के कुछ प्रांतों में भूमि का स्वामित्व और उसके नीचे दबे तेल, गैस या अन्य खनिजों का स्वामित्व अलग-अलग लोगों या संस्थाओं का हो सकता है। इस मामले में संघीय जिला अदालत ने मरे दम्पति के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन सेवरसन बंधु की याचिका पर तीन सदस्यों की एक अदालत में दो सदस्यों ने कहा कि जीवाश्म पर अधिकार खनिज मालिकों का है। पुन: सुनवाई की गुहार लगाने पर अदालत ने सुनवाई के पहले मामला मोन्टाना सुप्रीम कोर्ट भेज दिया। शीर्ष अदालत ने पिछले फैसले को पलटते हुए कहा कि उसमें ‘जीवाश्म’ और ‘खनिज’ को एक श्रेणी में रखने की गलती की गई थी। शब्दों के सामान्य और व्यावहारिक अर्थ के अनुसार मरे दम्पति की भूमि पर प्राप्त डायनासौर के जीवाश्म खनिज नहीं हैं।
यह फैसला वैज्ञानिकों के लिए एक जीत है। वैज्ञानिकों की चिंता थी कि यदि जीवाश्मों को खनिज अधिकारों के साथ जोड़कर देखा जाएगा तो खुदाई करने की अनुमति प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है और जो जीवाश्म पहले प्राप्त हो चुके हैं उनके मालिकाना हक पर भ्रम पैदा हो सकता है। हालांकि 2019 में ही मोन्टाना विधायिका ने एक कानून पारित कर दिया था, जिसके तहत कहा गया था कि जीवाश्म पर अधिकार भू-स्वामियों का होगा। अब कोर्ट का यह फैसला हक की इस जंग का अंतिम वार रहा।
इंडियाना युनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी डेविड पॉली कहते हैं कि हालांकि यह फैसला अन्य राज्यों पर लागू नहीं होता लेकिन यह फैसला इस मायने में अहमियत रखता है कि यदि ऐसे मुद्दे फिर उठे तो इस फैसले को नज़ीर के तौर पर पेश किया जा सकता है।
इस फैसले से उक्त जीवाश्म की बिक्री का रास्ता साफ हो जाएगा जिसका अनुबंध मरे दम्पति ने एक म्यूज़ियम से किया है। इससे वैज्ञानिकों को एक और बड़ी राहत मिलेगी कि डायनासौर के जीवाश्म निजी संग्रहकर्ताओं के हाथ में जाने से बच जाएंगे।