‘भारतीय शिक्षा संस्कृति महोत्सव’ संपन्न

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रीता दास राम , पी.एच.डी. शोध छात्रा, मुंबई विश्वविद्यालय

Author Reeta Ramराष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की 107 वीं जयंती के सुअवसर पर पवित्र भूमि काशी (उ.प्र) के प्रसिद्ध बनारस विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) परिसर स्थित ‘स्वतंत्रता भवन’ में “भारतीय शिक्षा संस्कृति महोत्सव” संपन्न हुआ। 23, 24, 25 सितंबर 2015 प्रातः 11 से रात्रि 9 बजे तक तीन दिवसीय भव्य आयोजन राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति न्यास की ओर से आयोजित किया गया।

भारतीय ज्ञानपीठ से पुरस्कृत राष्ट्र कवि दिनकर की कालजयी कृति ‘उर्वशी’ एवं गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर रचित ‘एकला चलो रे’ पर आधारित नृत्य नाटिकाओं का मंचन और कोई नहीं खुद कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज एवं उनके शिष्यों द्वारा प्रस्तुति अदभूत रही। कथा सम्राट प्रेमचंद की 7 कहानियों एवं राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर रचित ‘रश्मिरथी’ का नाट्य मंचन लिम्का बुक्स ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज मुंबई आयडिया के रंगकर्मी श्री मुजीब खान के निर्देशन में उनकी पूरी टीम ने समारोह में माहौल बना दिया। देश के कोने-कोने से विभिन्न यूनिवर्सिटी से आए प्रोफेसरों, पत्रकारिता से जुड़े लोगों और साहित्यकारों द्वारा अलग-अलग विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुति ने महोत्सव में अनोखी छटा बिखेर दी। समारोह के आयोजक नीरज कुमार जी एवं संयोजक मुंबई विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ रतन कुमार पाण्डेय के संयोजन ने कार्यक्रम को आश्चर्यजनक रूप से सफलता प्रदान की।

शिक्षा और संस्कृति पर अपने-अपने व्याख्यान के साथ-साथ साहित्य से जुड़े लोगों को एक अदभूत मंच पेश किया। जिसमें ‘शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक भारत के निर्माण में भारत रत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय का योगदान’, ‘किसानों के प्रणेयता स्वामी सहजानंद और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का सामाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान’, ‘भारतीय शिक्षा-संस्कृति के उन्नायक स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी’, ‘विश्व को भारतीय शिक्षा का अवदान’ ‘महाकवि जयशंकर प्रसाद की कालजयी काव्य कृति ‘कामायनी’ का पुनर्पाठ’ और ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना एवं सामाजिक न्याय के कवि दिनकर’ आदि शीर्षकों पर साहित्यिक विद्वजनों के व्याख्यान ज्ञानवर्धक ही नहीं दर्शन से पूर्ण रहे। देश के विभिन्न स्थानों से आए व साहित्य से जुड़े शिक्षितजनों में गिरीश पंकज, डॉ अरुण कुमार मिश्र, डॉ शरद मिश्र, प्रमोद कुमार दीक्षित, डॉ सुभाष राय, डॉ नीरजा माधव, डॉ श्रीनिवास पांडे, डॉ रंगनाथ पाठक, कानपुर के समाचार संपादक प्रभु आजाद, डॉ चम्पा सिंग, डॉ अनूप द्विवेदी वशिष्ठ, डॉ राम सुधार सिंह, डॉ विश्वनाथ पांडे, गोरखपुर के डॉ अनिल राय, डॉ शिवकुमार मिश्र, डॉ अवधेश प्रधान, डॉ अवधेश सिंग, डॉ श्रद्धानंद, ओमा द अक्क, अभिनेत्री रीना रानी, डॉ शशिप्रभा तिवारी, डॉ शशिकला त्रिपाठी और डॉ वंदना झा आदि हैं, जिन्होंने ऊपर दिये गए विभिन्न विषयों पर तीन दिनों तक राष्ट्रीय परिसंवाद और परिचर्चा में भाग लेकर अपने-अपने विचार और मत व्यक्त किए।

मुंबई विश्वविद्यालय विद्यानगरी के कुलपति (वाइस चांसलर) श्री संजय देशमुख के मंच पर आते ही वाराणसी वासियों और बीएचयू के विद्यार्थियों ने तालियों की गडगड़ाहट से भव्य स्वागत किया गया। हर उत्साह से भरे मौके पर सभागार में प्रसन्नता से विद्यार्थियों के “हर हर महादेव” के उच्चारण से माहौल गूंज उठता।शिक्षा

श्री संजय देशमुख जी ने अपने व्याख्यान में आर्थिक सांस्कृतिक प्रगति के साथ-साथ भौतिक और आध्यात्मिक विकास को भी जरूरी मानते हुए जड़ों से जुड़े रहने की बात की। मदनमोहन मालवीय जी के शिक्षा और प्रगति से जुड़े विचारों को सराहा। काशी विश्वविद्यालय को मुंबई विश्वविद्यालय का छोटा भाई कहते हुए नए भारत और नए समाज के विकास की ओर अग्रसर होने की बात कही। कवियत्री रीता दास राम जो मुंबई विश्वविद्यालय की पीएचडी की शोधछात्रा भी है, ने शिक्षा और संस्कृति पर स्वामी विवेकानंद के योगदान पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बीएचयू शिक्षा संस्थान और समस्त विद्यार्थियों की सहभागिता आश्चर्यजनक, उत्साहवर्धक और आत्मीय रही।

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