हिंदी दिवस मनाइये, मन अँगरेजी-लोभ।
रोजगार तो पिट गया, क्या बाकी विक्षोक्ष।।2193।।
अँगरेजी ने क्या किया? पैदा किया गुलाम।
हिन्दी अपनी माँ सगी, जीना हुआ हराम।। 2194।।
उसे चाहिए क्लर्क था और साथ में क्लैक।
पढ़े-लिखे कुछ हो गये मिस्टर मैकू-मैक।। 2195।।
धनपशुओं का वर्ग जो या फिर मध्यम वर्ग।
पढ़कर पिट्ठू हो चले, चरणों में अपवर्ग।। 2196।।
जड़ता-उपल-प्रहार सम भाषा-भाव-प्रभाव।
हिन्दी-सहअस्तित्व पर सबमें सहमति-भाव।। 2197।।
पाँवों में जो बेड़ियाँ, हथकड़ियाँ भी हाथ।
आन्दोलन वह छिन्न सब, दीपित हिन्दी-माथ।। 2198।।
पत्रकार की वो कलम, ज्वाला क्रान्ति अदीब।
खेल जंग के, जेल तक चिनगी हुई हबीब।। 2199।।
जिसकी ताकत एकता, टूट गयी जंजीर।
घायल भारत बँट गया, दो टुकड़े तक़दीर।। 2200।।
काट कलेजा ले गया जिन्ना पाकिस्तान।
वीर जवाहर को मिला जलता हुआ मसान।। 2201।।
लाशें दोनों ओर थीं, पाँसे दोनों ओर।
दोनों ने ही कर दिया बूढ़े को इग्नोर।। 2202।।
ख़ैर हुआ जो, सो हुआ, अन्तिम बुझी मशाल।
जो हिन्दी के पक्ष में प्रेमी परम मिसाल।। 2203।।
ताकत पूरे मुल्क की हिन्दी एक ज़बान।
केवल नहीं जबान वो, संस्कृति की पहचान।। 2204।।
आजादी के बाद फिर किंकरता-उपहार।
अपने बेटों से गयी अपनी हिन्दी हार।। 2205।।
बेटे निकले कलियुगी, करें कलेजे चोट।
माँ तो ममता से भरी, दिल बेटों के खोट।। 2206।।
अँगरेजी कैसी लगे–जैसे गोरी मेम।
जिसके चरन पखार, पद मिले नेम औ फेम।। 2207।।
हिन्दी रोटी दे जिसे, झूठ सने व्याख्यान।
इंग्लिशिया (इ)स्कूल में उसकी भी सन्तान।। 2208।।
वर्तमान में बाप के हिन्दी से ही ठाट।
किन्तु निमज्जन मन करे कुटिल स्वार्थ के घाट।। 2209।।
पंसारी सबसे बड़े, हल्दी ढाई गाँठ।
आभिजात्य-सुख, आचरन भेदभाव का पाठ।। 2210।।
द्वेष-दुरित, पाखण्ड-छल, हैं श्रीमन्त अनन्त।
जोड़-तोड़-माहिर, हृदय सदियों के सामन्त।। 2211।।
अपनी माँ की दुर्दशा, बोध व्याकरण भूल।
लिंग-दोष, कर्ता-क्रिया, कारक बिसरे मूल।। 2212।।
तत्सम-तद्भव कौन है, देशज या फिर अन्य।
प्रत्यय औ उपसर्ग के भेद न जाने, धन्य।। 2213।।
शैली है क्या व्यास की, अद्भुत शक्ति समास।
भाषागत औचित्य, छवि अलंकार उल्लास।। 2214।।
रीति और वक्रोक्ति-ध्वनि, रस-व्यंजन-सम्भार।
क्या होते गुण-दोष भी बूझे विविध प्रकार।। 2215।।
मुहावरे मिठबोल कुछ, वजनदार लोकोक्ति।
नीति-वचन पीयूषमय सुसंस्कार-गर्वोक्ति।। 2216।।
रसमय, कोमल, कान्त छवि, विकच प्रसून-सुवास।
मीत मिले परदेश में, हो जैसा उल्लास।। 2217।।
हम हिन्दी के लाडले, मगर न सेवा भाव।
इंग्लिश जेवर ख्वाब का, दे माता को घाव।। 2218।।
अटपट बानी सीख ली, लटपट अपनी चाल।
हिन्दी-गमछा छोड़, कर अँगरेजी रूमाल।। 2219।।
बाप अकेला हो गया, बेटा बसा विदेश।
हिन्दी हुई जईफ माँ, काट रही दिन क्लेश।। 2220।।
मगर न बेटे एक-से, कुछ में तापस-त्याग।
प्राणों में लय छन्दमय, भरे भाव अनुराग।। 2221।।
हिन्दी उनको दे सदा दौलत, रूप दुलार।
सृजन-यजन सम्पन्न हो, कीर्ति-प्रभा-विस्तार।। 2222।।
अपनी भाषा-सम्पदा, कार्य सकल व्यवहार।
है विकास का मूल ये, भर लो प्राण-पुकार।। 2223।।
फटी बिवाई पाँव में, बेकस जो मजदूर।
अँगरेजी का क्या करे, उससे कोसों दूर।। 2224।।
पता नहीं किस पाप का प्रतिफल—पस्त किसान।
कर्ज़ा लेकर बैंक से, बिके खेत-खलिहान।। 2225।।
अँगरेजी ने कर दिया जीवन सरल कबाड़।
अंगूठे की छाप पर ऋण जो लिया–पहाड़।। 2226।।
शक्तिहीन कमजोर जो, ठग ले कोई धूर्त।
अँगरेजी ने डँस लिया मानो विषधर मूर्त।। 2227।।
मिल जाता जो देश की हिन्दी को अधिकार।
लम्पट-लहकट-धूर्त-छल, हो जाते बेकार।। 2228।।
बेला भी, सौभाग्य भी आजादी के बाद।
मगर न हासिल कुछ हुआ, पचड़े में बर्बाद।। 2229।।
सहना उसको पड़ गया कितना वैर-विरोध।
जिनके भीतर खोट था, लिया खूब प्रतिशोध।। 2230।।
भाषा माध्यम व्यक्ति का, अन्तःशक्ति-प्रतीक।
हार-जीत, अवनति-प्रगति कहती कथा व्यलीक।। 2231।।
हो सकती संवाद की भाषा हिन्दी एक।
ऐसा सम्भव था कहीं, होता बुद्धि-विवेक।। 2232।।
हो जाती फिर एकता बहुत-बहुत मजबूत।
गाँधी जैसे फिर कहाँ पैदा हुए सपूत।। 2233।।
हिन्दी बेबस रह गयी, संविधान लाचार।
अंग्रेजी का चढ़ गया सबको नया बुखार।। 2234।।
ख़तरनाक हथियार भी, जैसा इस्तेमाल।
भाषा से साम्राज्य का विस्तारण दिक्काल।। 2235।।
उपनिवेश में बो गये कैसा विष का बीज।
बंजर धरती बुद्धि की, फिर मस्तिष्क गलीज।। 2236।।
न्यायालय के देवता–हिन्दी से परहेज।
ज्यों दुलहन इंग्लैण्ड की, दिल से भी अँगरेज।। 2237।।
मुबाहिसः भाषा अपर, पीड़ित पक्ष अजान।
हरे-लाल पत्ते उड़े, बदल गये भगवान।। 2338।।
गौरव-पद के लोभ में जस्टिस जोड़े हाथ।
दीन-हीन लाचार-सा गुनहगार के साथ।। 2239।।
खड़े प्रवक्ता झूठ के, झूठे खड़े गवाह।
फँसा मुवक्किल बीच में बेआवाज़ कराह।। 2240।।
मुजरिम बूढ़ा मर गया, चर्चा वही जवान।
चला मुकदमा उम्र भर, पर ज़िन्दा शैतान।। 2241।।
नानी जो अंग्रेजियत, गर्दन फाँसे पाँव।
मुस्की मार वकील-जज चलते अपने दाँव।। 2242।।
परभाषा में हो बहस, यही मिले परिणाम।
मिला किसी को न्याय जो, समझो चारो धाम।। 2243।।
एबीसीडी क्या पता, जो किसान-मजदूर।
तीस बरस से घिस गया थक कर चकनाचूर।। 2244।।
राजनीति में जा घुसे डाकू-चोर-दबंग।
छल-फरेब-मक्कार सब दायें-बायें अंग।। 2245।।
मिले किसी को देश में पाँच मिनट में बेल।
बेगुनाह को भी मिले जीवन भर की जेल।। 2246।।
दौलत-शोहरत, पद मिले, अंग्रेजी से मेल।
अंग्रेजों की पाँत में खेलो शातिर खेल।। 2247।।
राज-काज में न्यूनतम हिन्दी साझीदार।
जेठानी-सी तन गयी अंग्रेजी हक़दार।। 2248।।
अंग्रेजी को चाहिए अब तो थोड़ी लाज।
सोने में कलिकाल ज्यों भूप परीक्षित-ताज।। 2249।।
हिन्दी भोली-सी भली, पर खा जाये मात।
सबने सपने डँस लिए, आँसू की बारात।। 2250।।
जो हिन्दी के भाल हैं शोभित हिन्दी-भाल।
रचें ज्ञान-विज्ञान भी खड़े ठोक कर ताल।। 2251।।
लिपि वैज्ञानिक ‘नागरी’ लिखे-पढ़े सब एक।
कौन कहाँ का छेक हैं, जिसमें कटु उत्सेक।। 2252।।
हिन्दी गंगा-सी बहे, वहे हमारे प्राण।
संस्कृति, साज समाज की हलचल, कला-प्रमाण।। 2253।
हिन्दी भाषा ही नहीं, चिन्तन, चारु विचार।
भारत का मस्तिष्क है, हृदय-लहू-संचार।। 2254। ।
कितने कवि-लेखक यहाँ बुद्धि-धनी, अभिरूप।
खड़े भिखारी-से लगें जिनके आगे भूप।। 2255।।
शब्द-ब्रह्म की साधना, अक्षर-अक्षर मोल।।
वाङ्मय विश्व विराट में हिन्दी भी अनमोल।। 2356।।
अवगाहन तो कीजिए, लखिए जग-विस्तार।
कितने-कितने देश मे पाठन-पठन-विचार।। 2257।।
हिन्दी में ‘नीहार’ भी, हिन्दीमय नीहार।
नील निलय-दृग से झरे स्वाती-शुक्तिज-सार।। 2258।।
रचनाकाल : 14-15 सितम्बर, 2020
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : द्वितीय अर्णव(चतुर्थ हिल्लोल) अमलदार नीहार]
परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर
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