2019 में ना हो 2014 जैसा हाल, हर किसी को मिले वोटिंग का मौका

मंच साझा करते अभिनव आरोही
नई दिल्ली: 2014 लोकसभा चुनाव में 28 करोड़ मतदाता ऐसे थे, जिन्होंने वोट नहीं दिया था। ये संख्या कुल मतदाताओं की एक तिहाई थी। 2014 बीजेपी को सबसे ज्यादा 17 करोड़ वोट मिले थे।
वोटिंग का अधिकार :- नई दिल्ली के कार्यक्रम में मंच का संचालन अभिनव आरोही द्वारा किया गया आप सब भी www.lostvotes.com पर जाकर कोई भी स्प्टेसन को कही से भी सम्मिट कर सकते है। जिससे की ज्यादा से ज्यादा नंबर ऑफ स्प्टेसन होंगे तो हमारी भारत सरकार ये कोशिस करेगी कि USA या फिर कही से भी स्मार्ट फोन द्वारा वो वोट कर सकेगा साथ ही साथ आप सभी को बताते चले नई दिल्ली के रहने वाले अभिनव आरोही बहुत ही अच्छी ऐंकरिंग करते है। इनके बारे में जितना लिखा जाए या कहा जाए वो कम है, अभिनव आरोही यू.पी. की एक बड़ी हस्ती होने के साथ-साथ नई दिल्ली की जान है और शोशल मीडिया मे इनके फॉलोवर्स की काफी लंबी लिस्ट है।
लोकतंत्र में सभी अधिकारों में से वोट का अधिकार सबसे पवित्र है। भारत को अपने चुनावी लोकतंत्र पर गर्व है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है। 2014 के लोकसभा चुनावों में 81 करोड़ से ज्यादा लोग मतदान करने के लिए पात्र थे। कोई भी देश हमारे संसदीय चुनावों के विशाल पैमाने के करीब नहीं है। चुनाव असाधारण विविधता वाले देश में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक अभ्यास है।
भारत के हर कोने से करोड़ों पुरुषों और महिलाओं को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अपने मताधिकार का उपयोग करना अद्भुत है और बाकी दुनिया के लिए एक मॉडल है। इसके बावजूद कुछ आंकड़े गहराई से परेशान करने वाले हैं। हर भारतीय लोकसभा चुनाव में भाग नहीं लेता है। यहां तक कि 2014 के चुनावों में लगभग 28 करोड़ भारतीयों ने अपनी उंगलियों पर स्याही नहीं लगाई थी यानी वोट नहीं किया था।
इसे अलग तरह से कहें तो वोट नहीं देने वाले भारतीयों ने अगर एक काल्पनिक राजनीतिक पार्टी को वोट दिया होता तो वो एक बहुत बड़े अंतर से सबसे बड़ी पार्टी होती। 2014 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसे 17.2 करोड़ वोट मिले थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या ने वोट नहीं दिया, जो कि चिंताजनक है।
कई लोग ऐसे होते हैं जो वोट वाले दिन अपने घर से बाहर निकलना पसंद नहीं करते हैं और वोट नहीं करते। एक धारणा ये भी है कि अमीर लोग वोट डालने नहीं निकलते हैं। डेटा से पता चलता है कि बड़ी संख्या में प्रवासी होना एक बड़ा कारण है। अंतिम जनगणना के आधार पर किए गए अनुमान बताते हैं कि 2016 में प्रवासी बल का आकार लगभग 10 करोड़ था।
वोट के लिए कई प्रवासियों के लिए सैकड़ों मील दूर अपने शहर या गांव में जाना आर्थिक रूप से संभव नहीं है। यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है। 2019 में नहीं। इसीलिए The Times of India ने भारत के ऐसे मतदाताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और समाधान खोजने के लिए LOST VOTES नामक एक पहल शुरू की है- टेक्नॉलोजी और अदरवाइज- ताकि हर योग्य प्रवासी मतदाता जो वोट देना चाहता है उसके पास साधन और क्षमता हो।
हमारे प्रयास के हिस्से के रूप में, हम अन्य लोकतांत्रिक देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को देखेंगे, इस बड़े पैमाने पर हो रहे लोकतांत्रिक घाटे को दूर करने के लिए सत्ता पर काबिज लोगों आग्रह करेंगे और जवाब खोजने के लिए नागरिक समाज के साथ काम करेंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे साथ हाथ मिलाएं ताकि भारत के घरेलू प्रवासी उनके वोट से वंचित ना हो सके।

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