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हम सब एक हैं (कविता) – अमलदार नीहार
ओए बलविन्दर!
सुनो भाईजान रमजान!
मेरे यार किशन!
हैलो जाॅनसन!
मेरा अनुमान है कि
हम सबके बाबा कोई एक ही थे
नहीं तो हमारे बाबा के बाबा एक रहे होंगे
या...
बदलते दौर का दस्तावेज़ – नीहार के दोहे
लकड़ी दुर्लभ--दाह को मुश्किल आग मसान।
ऐसा कौन गुनाह जो, सहे मौत अपमान।। 1962।।
गंगा ने पूरे किये 'माँ' के सारे फर्ज़।
लाश तैरती गोद में, भारी...
शब्द ( कविता ) – डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
शब्द-ब्रह्म का सच्चा साधक
आराधक उसकी सत्ता का
निष्ठावान पुजारी जानो
कभी 'रथी' आरूढ़ प्राण बन
पार्थ सदृश मैं अर्थ अपोहित
और कभी मैं...