Tuesday, May 14, 2024
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बसंत (कविता) – सुशीला रोहिला

  बंसत की बहार छाई , पत्ता-पत्ता हो गया हरा उपवन महक उठा चमन खिल गया सारा सर्दी की ठिठुरन कष्टो भरा था दामन खुले नभ की गहनता संघर्षों का था साया उम्मीद...

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