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धर्मक्षेत्रे.. (कविता) – हूबनाथ पाण्डेय
ज़रा देखो संजयधर्मक्षेत्र मेंहमारी सेनाएँक्या कर रही हैं?क्षमा महाराज!धर्मक्षेत्र में तो मुझेसिर्फ़ लाशों के ढेरनज़र आ रहे हैंबूढ़ी लाशें बच्ची लाशेंजवान लाशेंबेज़ुबान लाशेंकिंंतु इनमें...
कवि हूबनाथ पाण्डेय की पाँच कविताएं
1. दुख
दुख
बसंत सरीखे आते थे
पत्तों के बीच से
झाँकते थे बौर आम के
कहीं अमलतास
कानों में पीले झुमके झुलाता
सकुचाया अशोक
अपनी लाली छिपाता
धीरे धीरे
बसंत की तरह खिलता...