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कल्पना और जल्पना के बीच का बीज सत्य (लघुकथा)
● डॉ. अमलदार नीहार
"और बताइये व्योमकेशजी! कैसे हैं..?""नमस्कार सर! आपकी मेहरबानी है साहब!""मेहर----बानी! हा-हा-हा-हा-हा। यह सब छोड़िये, वह तो आपकी ही है।"
"सर! आपने तो...