कल्पना और जल्पना के बीच का बीज सत्य (लघुकथा)

अमलदार नीहार

● डॉ. अमलदार नीहार

“और बताइये व्योमकेशजी! कैसे हैं..?”
“नमस्कार सर! आपकी मेहरबानी है साहब!”
“मेहर—-बानी! हा-हा-हा-हा-हा। यह सब छोड़िये, वह तो आपकी ही है।”

“सर! आपने तो कमाल ही कर दिया, बिलकुल चमत्कार जैसा। आपकी कृपा से पूरी दुनिया में नंबर एक पर चला गया हूँ।”

“तुम और तरक्की करोगे व्योमकेश! यह योजना तो बहुत पहले बना ली थी मैंने। इसीलिए उस बेहूदे को उसकी सही जगह पर भेज दिया कि कोई बाधा न बने।”

“और उसकी जगह मेरे बहनोई घुँघरूलाल को फिट कर दिया।”
“और आप अर्थ-साम्राज्य के राजा बन गए, हा-हा-हा-हा-हा। जियो मेरे लाल।”

“आपकी भाषा कमाल की है सर! हजारों कवियों को कुर्बान कर दूँ इस पर, इस भाषा ने जो जादू किया है, उसका भूत इतनी जल्दी नहीं उतरने वाला।”

“हे अर्थ-साम्राज्य के राजा ! मेरे पास जो भाषा है, उसे रामराज्य का बाजा समझिये, इसे बजाने में मैंने दिन-रात एक किये हैं और इस बाजे की काट नहीं किसी माई के लाल में।”

“सर! मैं तो बहुत डरा हुआ था, किन्तु (हँसते हुए ) या तो सुदामा के साथ श्रीकृष्ण ने दोस्ती निभाई द्वापर में या कलियुग में आपने कि दोनों जहाँ का मालिक बना दिया मुझे।”

“वह तो बनाना ही था, वैसे तुम्हारा वो छोरा, क्या नाम है उसका, हाँ घुँघरूलाल-थोड़ा सा ‘डल’ है, लेकिन है वफादार।”

“आपकी शागिर्दी में सब सीख जाएगा सर! थोड़ा-सा समय दीजिये उसे। आपकी आज्ञा के बाहर वह नहीं जा सकता | आखिर भले ही मेरा तोता हो वह, पर उसी तोते में मेरे प्राण भी हैं।”

“और वह तोता मेरे पिंजरे में है। (हा-हा-हा-हा-हा) लेकिन धीरज रखिये, मैंने उसे गहरी हिदायत दी है, वह किसी का नाम जबान पर ला नहीं सकता। उसने बताया भी नहीं, लोग चिल्लाते रहें। फिर तोता तो आपका ही है-हा-हा-हा-हा।

—और भाभीजी कैसी हैं, उनके हाथ की चाय पीने का बड़ा मन है, वही चाय जो सुबह लेती हैं वो तीन लाख वाली, एकाध कप-शप हमारे साथ भी हो जाय।”

“आप कैसे पधार सकते हैं हुजूर हमारे यहाँ? हजार निगाहें हैं दुश्मनों की बिछी हुई, किसी दिन साथ लिवाके आते हैं गप-शप करने-हा-हा-हा-हा।”

“हम बने तुम बने इक दूजे के लिए।”
(दोनों सहगान करते हैं )

“अच्छा सरजी! नमस्ते।”
“नमस्कार व्योमकेशजी! “

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