हम सब एक हैं (कविता) – अमलदार नीहार

ए बलविन्दर!
सुनो भाईजान रमजान!
मेरे यार किशन!
हैलो जाॅनसन!
मेरा अनुमान है कि
हम सबके बाबा कोई एक ही थे
नहीं तो हमारे बाबा के बाबा एक रहे होंगे
या उन बाबाओं के बाबा के बाबा
कौन जाने कितनी पीढियों पहले
हम सब थे एक ही पिता की सन्तान
वे आदम थे या कोई मनु, हम नहीं जानते
हम नहीं जानते कि किस परमात्मा ने
रच दिया हमें भूल वश
और हम चले आये मातृ-कुक्षि से बाहर
हजारों-लाखों बरस बाद
आपस में लड़कर मर जाने के लिए
हम जब पैदा हुए तो हमें नहीं मालूम
कि हम कोई पशु हैं या भिन्न कोई प्राणी
पशुओं के बीच पले और बढे़
उनसे संघर्ष किया,
कुछ से भयाक्रांत भागते फिरते
कुछ पशु-पक्षियों का आखेट कर लेते
जीने के लिए कुछ भी खा लेते
कन्दमूल-फल या कुछ और
कैसे भी रह लेते
प्रकृति की जैसी सहूलियत
न जाने कब चेतना आयी होगी घर बसाने की
लडे़ तो होंगे हम भी
मर्कट समुदाय में ज्यों गणेश बनने के लिए
हमें कब यह होश आया होगा
कि तन के कुछ अंग गहन-गोप्य होते हैं
कब हुई होगी पैदा यह चेतना
कि हम भिन्न हैं सभी प्राणियों से
कि हम सबसे अधिक बुद्धिमान हैं
कि कर सकते हैं नियन्त्रण सब पर
हमने प्रकृति के बदलाव को महसूस किया
उसके फलफूल पनपते मौसम-अनुकूल
फैल गये चारों ओर शक्तिशाली काफिले के रूप में
वर्चस्व हासिल करने को व्यग्र व्याकुल
लगे लूटने एक दूसरे की सम्पत्ति
और उसकी स्त्रियाँ भी उसी पशुबल से
हमने हथियार बना लिए और लड़ना सीख लिया
न जाने कब शुरू किया होगा पशुपालन, कृषि,
तरह-तरह के उद्यम
विकसित हुए गाँव, हाट-बाजार, शहर
विकास हुआ न जाने कब पहली बार
सैकड़ों-सैकडों साल के बौद्धिक व्यायाम के बाद
भाषा और लिपि का
चला होगा बहुत लम्बे समय तक
बदलाव और घिसाव प्रतीक चिह्नों में
सुदीर्घ हजारों साल में किया होगा चिन्तन ऋषियों ने
प्राकृतिक शक्तियों की उपासना में
मन्त्र गढे़ अनगिन
कितने स्खलित हुए होंगे
साधु-साधक-तपस्वी निज संकल्पित धर्म से
बनाया होगा तब कडा नियम अनुशासन
या अपने दोषों को ढकने निमित्त
गढे़ होंगे मिथकीय आख्यान
वर्ण-व्यवस्था, ऊँच-नीच
कोई श्रद्धा का सुभाजन, श्रेष्ठ कुलाभिजात
दण्ड-परिधि से बाहर
और किसी के लिए दण्ड-विधान बात-बात पर
मनुष्य को भी पशु की भाँति बनाकर दास-भृत्य
खरीदे-बेचे जाने की परम्परा
फैल गया मानव
गिरि-कन्दराओं में, पेड़ों पर जंगलों में
आर-पार पहाड़ों के
समुद्र की लहरों पर शासन किया उसने
और फैल गया पूरी दुनिया में
विभिन्न नाम-कुल-गोत्र
ऋषि-महर्षियों के नाम पर
मतवाद बढ़ते गये, विचारधाराएँ अनेक
जलने लगे पूरी दुनिया में
लाखों-करोडों चूल्हे एक साथ
अपनी जरूरत और उपलब्धिअनुसार
बन गये शाकाहारी-मांसाहारी
हमने अपनी-अपनी सुविधानुसार गढ़ लिए
अनेक देवी-देवता और भगवान विभिन्न नामों से
धर्म हमारी आत्मा की भूख नहीं थी कभी
हमारी कुटिलता को ढँकने का उपाय भी था धर्म में
कृतापराध से छिपने का सुरक्षित स्थान
दुनिया का कोई भी धर्म
किसी को मोक्ष नहीं दे सकता,
मोक्ष मिल सकता है उसकी निस्पृहता से
लोकोन्मुखी मंगल भावना से
तथा अविराम कर्म की साथना से
समय बीतता गया, बीतता गया
शताब्दियाँ सहस्राब्दियों में तब्दील
और सहस्राब्दियाँ लक्षाब्द में रूपान्तरित
अनगिन ढोंग लगाये मानव ने
भगवान बनने की चिन्ता में पागल
कभी कुछ और बनते-बनते अशोक महान बन बैठा,
कभी चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य बना
कभी सिकन्दर, चंगेज खान तो बाबर-अकबर
क्या कुछ नहीं बना यह मानव….
कभी राम तो कभी कृष्ण तक
ईसा मसीह, कभी मुहम्मद
कभी गुरु नानक, गोरख, रैदास, कबीर,
कभी सूर, कभी तुलसी, रहीम-रसखान
कभी महात्मा बुद्ध, कभी महावीर जैन
कभी गाँधी, कभी सुभाष, कभी जेपी-लोहिया, भीमराव अम्बेडकर
कभी ज्योतिबा राव फुले, विनोबा, आम्टे
कभी राममोहनराय, विद्यासागर, कवीन्द्र रवीन्द्र
महाकवि वाल्मीकि व्यास से कवि कालिदास, भास, भारवि, माघ और वाणभट्ट, दण्डी
शेक्सपीयर से मिर्जा ग़ालिब तक
राजा रवि वर्मा से मकबूल फिदा हुसैन तक
स्वर्ग की झूठी कल्पनाओं में जीने की कवायद
और जिन्दा इंसान के लिए रोज नये नरक गढने की साजिशें नये भगवानों की तरफ से
इन भगवानों को पहचानो,
जो हमारे-तुम्हारे भाग्यविधाता बने बैठे हैं
और हमें लडा़कर मार डालना चाहते हैं
अपनी प्रेत सत्ता के लिए
सुनो बलविन्दर! रमजान! किशन! जाॅनसन!
हम सबके बाबा एक ही थे,
यह मैं पूरे दावे के साथ तुम लोगों को बताना चाहता हूँ।
इसलिए आपस में मत लड़ो
आशी दन्त उखाड़ फेंकों
उन नागराजों के,
जिनके अरमानों को रक्त पिलाया है
अब तक अपने कलेजे का।

 


परिचय 


  • डाॅ. अमलदार ‘नीहार’                     

   अध्यक्ष, हिन्दी विभागAmaldar Neehar
   श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001 

  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
  • अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
  • अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।

सम्प्रति :Amaldar Neehar Books
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001

मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर

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