शैलेश सिंह | NavprabhatTimes.com
मुंबई: पिछले शनिवार के.सी. महाविद्यालय के सेमिनार सभागृह में मुंबई के परिदृश्य प्रकाशन के तत्वावधान में हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार समीर के गीत संग्रह ‘समीराना गीत’ (दास्तां कहते-कहते) का कवि, उपन्यासकार तथा नवभारत टाइम्स के मुंबई संस्करण के संपादक सुन्दर चंद ठाकुर के हाथों सद्यः प्रकाशित कृति का विमोचन हुआ। विमोचन पूर्व महाविद्यालय के छात्र -छात्राओं ने पुष्प गुच्छ देकर सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर शहर के कई महत्वपूर्ण हिन्दी के लेखक, कवि, प्राध्यापक व पत्रकारों के साथ-साथ छात्र एवं बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
प्रारंभ में महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. बागला ने सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है कि समीर जैसा गीतकार हमारे यहाँ आया है। उन्होंने कहा कि इनके गीत सुन-सुन कर हम सब जवान हुए हैं। इन गीतों ने जीवन की शुष्कता को गीत-संगीत से रोशन किया है। इस अवसर पर बोलते हुए विमोचनकर्ता सुन्दर चंद ठाकुर ने कहा कि समीर के गीतों को सुनकर कई पीढियां जवान हुई हैं। गणित के सवालों को हल करते हुए इनके गीतों को सुनता रहा व सवाल हल होते गए। दिल्ली के अकेलेपन के दिनों में समीर के गीत साथी हुआ करते थे। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि मेरे हाथों इस किताब का विमोचन हुआ। श्री ठाकुर ने उनके कुछ मुक्तक व गीत सुनाए और कहा, इन गीतों में जीवन दर्शन बड़ी सहजता से व्यक्त हुआ है। इन गीतों में सादगी के साथ-साथ संप्रेषणीयता भी बहुत अधिक है।
पुस्तक का परिचय देते हुए, कवि, कथाकार व नवभारत टाइम्स के सहायक संपादक हरिमृदुल ने कहा, इस संग्रह के गीत अपने विषय वस्तु में वैविध्यपूर्ण हैं। पारिवारिक रिश्तों को लेकर बहुत ही मार्मिक गीत रचे गए हैं। इन गीतों में रिश्तों की गरिमा व अहमियत का शिद्दत से इज़हार हुआ है। इन गीतों में भाषा का खेल नहीं है। ये गीत अपनी सहज व सरल भाषा में जीवन व समाज के राग-रंग, आशा-निराशा आदि को व्यक्त करते हैं। समीर को कबीर से जोड़ते हुए श्री मृदुल ने कहा, श्री समीर भी बनारस के हैं अस्तु इनके गीतों में कबीर का ठाठ तो दिखाई ही देगा। उन्होंने कहा, जिस तरह से इनके गीत फिल्मों में मकबूल हुए, उसी तरह से हिन्दी साहित्य में भी ये वही मुकाम हासिल करेंगे।
प्रो. सतीश पाण्डेय ने कहा, इन गीतों में समाज को प्रेरित करने व दिशा देने की शक्ति है। पुस्तक पर प्रो. माधुरी छेड़ा ने कहा, श्री समीर के गीतों में गहरी आत्मीयता दिखाई देती है। कम शब्दों में बड़ी बात ये गीत कहते हैं। प्रकृति चित्रण में ध्वन्यात्मकता का बढिया प्रयोग हुआ है। ये गीत भाव, विचार व ध्वनि सभी स्तरों पर सौन्दर्य सृजित करते हैं। इस अवसर पर बोलते हुए कथा लेखिका सूर्यबाला ने श्री समीर को आगाह करते हुए कहा कि यदि साहित्य में दूर तक जाना है, तो लोगों की तारीफों के प्रभाव में न आएं और अगली रचना की बौद्धिक व कलात्मक तैयारी करें।
अंत में श्री समीर ने सभी उपस्थित सारस्वत समाज के प्रति आभार व्यक्त करते हुए तथा सूर्यबाला को यह विश्वास दिलाते हुए कहा कि “सूर्यबाला भी बनारस की हैं और मैं भी बनारस का हूँ, बनारस के लोग चुनौतियों से नहीं भागते।” उन्होंने कहा कि अगला संग्रह ज़रूर आएगा और हर मानक की कसौटी को स्वीकार कर उस पर खरा उतरेगा। उन्होंने विद्वत् समाज से निवेदन करते हुए कहा, साहित्य व सिनेमा के गीत भिन्न नहीं होते और न ही साहित्यकारों को यह विभाजन करना चाहिए। आमतौर पर यह देखा गया है कि सिनेमा के गीतकारों को लोग नीची नज़र से देखते हैं, जो कहीं से भी न्याय संगत नहीं है। अंत में उन्होंने सभी के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
कार्यक्रम के अंत में समारोह की अध्यक्षता करते हुए आचार्य रामजी तिवारी ने कहा, “समीर के गीत पूरी तरह से साहित्यिक हैं। इनके गीतों में भाव-विचार की चारुता है। श्री तिवारी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, समीर के पास भाषा व लय की अच्छी पकड़ है, इसलिए ये एक सफल गीतकार हैं। उन्होंने समीर को आश्वस्त करते कहा कि सिनेमा व साहित्य में द्वैत नहीं है। हिन्दी व उर्दू के तमाम श्रेष्ठ रचनाकार इस क्षेत्र में आए और साहित्य प्रेमियों के बीच भी हमेशा सम्मानित बने रहे। भवानी प्रसाद मिश्र का जिक्र करते हुए कहा, उन्होंने सिनेमा में गीत लिखे पर उनकी प्रतिष्ठा में कभी कमी नहीं आई। पंडित प्रदीप, नरेन्द्र शर्मा, शैलेन्द्र, नेपाली, नीरज व वसंतदेव आदि कवियों ने फिल्मों के लिए गीत लिखे, पर उनकी प्रतिष्ठा में कमी नहीं आई, इसलिए श्री समीर को निश्चिंत रहना चाहिए।” चर्चा में शैलेश सिंह ने भी हिस्सा लिया।
अंत में हृदयेश मयंक ने श्री समीर का विशेष रूप से आभार माना और कहा, “आपने यह जो अवसर उपलब्ध कराया, वह हम सबके लिए गौरव की बात है। उन्होंने वक्ताओं व श्रोताओं के साथ-साथ महाविद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती बागला का भी आभार माना। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने किया।