मुंबई: स्वर संगम फाउंडेशन ने बा-बापू के एक सौ पचास वर्ष पूरे होने पर एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के दो सत्र थे, पहले सत्र में बाऔर बापू के राजनीतिक व समाजिक कार्यों पर वक्तव्य हुए। वक्ता थे, प्रो.सुमनिका सेठी और शैलेश सिंह। पहले सत्र का संचालन रमन मिश्र ने किया और दूसरे सत्र का संचालन मुख्तार खान ने। दूसरे सत्र में भजनों, गीतों और ग़ज़लों के माध्यम से उनकी स्मृति को प्रणाम किया गया।
प्रारंभ में संस्था की तरफ से डा.हरि प्रसाद राय ने सभी मेहमानों व श्रोताओं का स्वागत किया । स्वागत भाषण के बाद उन्होंने संस्था की तरफ से एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की तीन छात्राओं क्रमशः सुशीला तिवारी, सुन्देशा भावसार और महिमा वर्मा को पी.एच.डी. की डिग्री मिलने पर पुष्प गुच्छ देकर उनका अभिनंदन किया।
अभिनंदन समारोह के बाद प्रथम सत्र के संचालक रमन मिश्र ने सोफिया कालेज की प्रो.सुमनिका सेठी को वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया। सुमनिका सेठी ने कस्तूरबा के जीवन व कार्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कस्तूरबा और महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में किए गए कार्यों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कस्तूरबा ने गांधी के जीवन मूल्य को पूरी तरह अपना लिया था। गांधी जी की उनुपस्थिति में कई बार कस्तूरबा ने आन्दोलन का नेतृत्व किया। दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों देशों में उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी। गांधी और कस्तूरबा का एक दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान और विश्वास अटूट था। सुमनिका सेठी ने बा के संघर्षों व स्वतंत्रता आंदोलन में किए गए महती योगदान की चर्चा की।
कार्यक्रम के दूसरे वक्ता थे शैलेश सिंह। शैलेश सिंह ने महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह पर आज के संदर्भ में बात की। उन्होंने कहा सत्य को गांधी जी ने निजी जीवन से सार्वजनिक जीवन में स्थापित किया। आज धर्म का हिंसक रूप जो हमें दिखाई देता है, उसके मूल में असहिष्णुता है, जबकि गांधी सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुता पर जीवन भर बल देते रहे। दूसरी संस्कृतियों को अपनाने और उसे विकासित करने के दायित्व का एहसास वे देश के जन-गण को दिलाते रहे। गांधी जी ने बड़ी से बड़ी ताकत के आन्याय का प्रतिकार करना सिखाया, गूंगों को वाणी दी, झुके हुए माथ को तनकर खड़ा होना सिखाया। गांधी ने अपने जीवन के हर पक्ष पर जितनी खुली बात की है, उतना शायद ही कोई नेता कर पाए। आज ज़रूरत है सार्वजनिक जीवन में शुचिता और पारदर्शिता की। हमें कथनी और करनी के द्वैत को समाप्त करना होगा। आज हमें सत्य और अहिंसा को अपने दैनंदिन जीवन- व्यवहार में लाने और प्रर्दशित करने की जरूरत है।
इन दो वक्तव्यों के बाद युवा गायक फ़राज़ खान और शिखा श्रीवास्तव ने गांधी जी के प्रिय गीतों व भजनों की मोहक प्रस्तुति की । गायन की शुरुआत गांधी के प्रिय भजन “वैष्णो जन ने तेने कहियो पीर पराई जाणे रे” से हुई। फ़राज़ और शिखा श्रीवास्तव के युगल गायन की यह प्रस्तुति बहुत मधुर और मोहक थी। बाद में शिखा श्रीवास्तव की एकल प्रस्तुति टैगोर का गीत “एकला चलो रे'” ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। फ़राज़ ने प्रसिद्ध संत नरसी मेहता, मुक्ताबाई और राष्ट्र कवि रामनरेश त्रिपाठी के भजनों की प्रस्तुति की। अंत दिनकर के बेहद मार्मिक गीत “आज हिमालय फिर रोया है” से हुआ। फ़राज़ के साथ संगत कर रहे थे बांसुरी वादक उत्कर्ष जाधव और तबले पर थे रोशन गायकर।
दूसरे सत्र में गायन सत्र की प्रस्तुति के संचालक मुख्तार खान थे। मुख्तार खान ने गांधी और बा के विभिन्न प्रसंगों को भी साझा किया। अंत में संस्था के अध्यक्ष हृदयेश मयंक ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। श्रोताओं में कवि व उपन्यास कार विनोद श्रीवास्तव, प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी, धीरेन्द्र अस्थाना, अनूप सेठी, कवयित्री अमृता सिन्हा, सुशीला तिवारी, आभार बोधिसत्व, ब्लिट्ज के पूर्व संपादक व शायर राकेश शर्मा, अख़्तर हुसैन आबिदी, शायर मुस्त हसन अज्म, गीत कार मनोज द्विवेदी, कवि जे.आर. सिंह यादव, कॉ. चक्रवाती, के अलावा हिन्दी , मराठी और गुजराती भाषा के की लब्ध-प्रतिष्ठित रचनाकार उपस्थित थे। कार्यक्रम में महिलाओं की व स्थानीय नागरिकों की उपस्थिति अपेक्षा से कहीं अधिक थी। यह उपस्थिति बेहद उत्साहवर्धक थी।
प्रस्तुति: मनोज द्विवेदी, मीरा रोड, ठाणे।