बालाकोट हमले के बाद – डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय

बालाकोट
डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय

मुंबई: 26 फरवरी की रात भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकाने पर किए गए सटीक हमले के बाद अनेक विचारणीय मुद्दे सामने आए हैं। पहली बात तो यह है कि भारत ने इजरायल निर्मित स्पाइस 2000 बमों के प्रयोग द्वारा सीधे लक्ष्य पर प्रहार किया। यह एक तरह से चिप निर्देशित स्मार्ट बम है, जो लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाकर उसे बर्बाद कर देता है, परन्तु जमीन पर बड़ा विध्वंस दिखाई  नहीं पड़ता। इसे महाभारत में अर्जुन के बाण की तरह मछली की आँख में लगाए जाने वाले निशाने के रूपक द्वारा समझा जा सकता है। इस अभियान में मिराज 2000 विमानों के द्वारा बमबारी, सुखोई 30 एम.के.आई.द्वारा भारतीय सीमा से ही प्रतिरक्षात्मक सहयोग तथा आई.एल. 76 द्वारा अवाक्स सुविधा उपलब्ध कराई गई। इस अभियान की सफलता ने जहां एक ओर पाकिस्तानी परमाणु धमकी की हवा निकाल दी, वहीं 27 फरवरी को पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा जम्मू-कश्मीर के सैन्य ठिकानों पर हमले के प्रयास ने अनेक प्रश्न भी खड़े किए हैं। उस दिन पाकिस्तानी वायुसेना के 24 विमानों ने भारतीय वायुसीमा में घुसने का प्रयास किया, जिनमें एफ-16, जे-17 तथा मिराज का समावेश था। इसकी प्रतिक्रिया में भारतीय वायुसेना के दस-बारह सुखोई 30 एम.के.आई., मिराज  2000, मिग 29 तथा मिग 21 बिशन विमानों ने मोर्चा संभाला, जिसमें मिग-21 के पायलट अभिनन्दन ने हवा से हवा में मार करने वाली आर.71 मिसाइल द्वारा पाकिस्तान के एक एफ-16 विमान को मार गिराया, किन्तु उसी समय पाकिस्तानी जे-17 द्वारा उनके विमान पर मिसाइल दागे जाने के कारण अभिनन्दन को पैराशूट से उतरना पड़ा और वे हवा के प्रभाव से पाकिस्तान में उतरे। भारतीय वायुसेना की त्वरित प्रतिक्रिया के कारण पाकिस्तान के अधिकांश विमान भारतीय सीमा में नहीं आ सके और उनमें से कुछ एल.ओ.सी.पर ही बम गिराकर चले गए। अभी भी एल.ओ.सी.पर उनमें से कुछ जीवित बम पड़े हैं। 

बालाकोट

इस हमले में भारत की तरह पाकिस्तान ने भी अवाक्स प्रणाली का प्रयोग किया, किन्तु वह अत्यंत उन्नत और आधुनिक राडारों को जाम करने में सफल नहीं हुआ, जिससे भारतीय वायुसेना ने उनके इरादे ध्वस्त कर दिए। ऐसी खबरें आ रही हैं कि उस समय भारतीय हवाई प्रति रक्षा प्रणाली को उच्चतम स्तर पर सक्रिय कर दिया गया था, जिसके फलस्वरूप संभव है कि भारतीय एम. 17 हेलिकॉप्टर को पाकिस्तानी द्रोण समझकर विमान रोधी प्रक्षेपास्त्र से उड़ा दिया गया हो। ऐसी गलती तभी हो सकती है, जब उक्त हेलिकॉप्टर के चालक ने मित्र विमान का संकेत चालू न रखा हो। बहरहाल अभी इस पर जांच चल रही है और उम्मीद करते हैं कि ऐसा न हुआ हो। इसके बाद अब तक पाकिस्तान भारतीय वायुसेना की तत्परता और सतर्कता को जांचने के लिए लगभग आधा दर्जन द्रोण भेज चुका है, जिसे भारतीय वायुसेना ने मार गिराया है। इसके अलावा पाकिस्तान बालाकोट हमले के दंश से उबर नहीं पा रहा है और वह एल.ओ.सी.के पास अपने विमानों को भेजने का असफल प्रयास करता रहा है। इस समूचे घटनाक्रम का एक निष्कर्ष यह भी है कि पाकिस्तान की पारंपरिक सैन्य शक्ति भारत के मुकाबले काफी कम है लेकिन उतनी कम भी नहीं हैं, जितनी हम मानकर चल रहे थे। विगत एक दशक से रणनीतिकार इस पर चर्चा कर रहे थे कि पाकिस्तान पारंपरिक मुकाबले में भारत के सामने कहीं नहीं ठहरता। इसलिए वह भारत की ‘कोल्ड डाॅक्ट्रिन‘ का सामना करने के लिए युद्ध क्षेत्र में 70 किलोमीटर दूर तक मार करने वाली परमाणु मिसाइल हत्फ 11 नस्र  पर निर्भर है। चूंकि भारत का उद्देश्य केवल आतंकी ठिकाने तबाह करना था और पाकिस्तान तथा वहाँ की जनता को दंडित करना नहीं था, अतः भारत ने अभिनन्दन को 24 घंटे के अंदर न छोड़ने की स्थिति में ब्रह्मोस मिसाइल से हमले की धमकी देकर भी आक्रमण नहीं किया। उस रात इमरान खान को भारतीय मिसाइलों के हमले का डर सताता रहा। वे सो नहीं सके, उन्होंने अभिनन्दन को समय पर रिहा कर दिया।

इस घटनाक्रम के बाद से हमारी तीनों सेनाएं अत्यधिक सतर्कता की स्थिति में हैं। यहां कुछ चिंतनीय मुद्दे हैं, जिस पर त्वरित कार्यवाही की जरूरत है। इससे इतना तय हो गया है कि भारत के अधिकांश सुखोई 30 एम.के.आई हवाई श्रेष्ठता युद्धक विमान चीन सीमा, देश के अधिकांश रक्षा और आर्थिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा तथा अंडमान निकोबार जैसे सुदूर क्षेत्रों में तैनात हैं। फलतः पश्चिमी सीमा पर सुखोई 30, मिग  29 जैसे बहुउद्देशीय विमानों की कमी महसूस की जा रही है। हमें तुरंत ऐसे 36 से 40 विमानों की आवश्यकता है। आज भारतीय वायुसेना की कुल क्षमता घटकर 42 स्क्वाड्रन से 31 स्क्वाड्रन पर आ गयी है।

बालाकोट

इसी वर्ष मिग 21 तथा मिग 27 के चार स्क्वाड्रन अर्थात 72 से 75 विमान सेवानिवृत्त होने वाले हैं, जिससे स्थिति बद से बदतर हो सकती है। हमें राफेल की पहली खेप आगामी सितंबर से मिलेगी। ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना इस आपात स्थिति से निपटने के लिए रूस निर्मित 21 मिग 29 खरीदने जा रही है, जिसकी आपूर्ति रूस द्वारा आने वाले 18 महीनों में कर दी जाएगी। इसी तरह भारतीय वायुसेना हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड को 18 सुखोई एम.के.आई. हवाई श्रेष्ठता युद्धक विमान बनाने का आर्डर देने जा रही है। हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स को उम्मीद है कि आगामी दो माह के भीतर उसे भारतीय वायुसेना द्वारा 120 एल.सी.ए.तेजस विमानों की आपूर्ति का आर्डर भी मिलेगा। बावजूद इसके भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन की संख्या बढ़ नहीं पाएगी, क्योंकि सेवानिवृत्त होने वाले विमानों की संख्या उसमें शामिल होने वाले विमानों से ज्यादा है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को चाहिए कि वह हिदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड को दिए जाने वाले आर्डर की संख्या दोगुनी कर दे और एक-एक करके मिग 21 की शृंखला को सेवा से हटा दे। हमें दीर्घकालिक प्रतिरक्षा परिदृश्य को देखते हुए अमेरिका के एफ-22 अथवा एफ-35 या फिर रूस के सुखोई-57 के सौदे पर भी विचार करना चाहिए। हमें पांचवीं तथा छठी पीढ़ी के लड़ाक विमानों के निर्माण पर भी ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम भारत को वैश्विक शक्ति बना सकते हैं और अपनी सीमाएं सुरक्षित कर सकते हैं। बालाकोट हवाई हमले के बाद न केवल सुरक्षा परिदृश्य जटिल हुआ है, अपितु भारतीय वायुसेना की फौरी जरूरतों को पूरा करने की चुनौती भी बढी है।

लेखक अंतरराष्ट्रीय व प्रतिरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं। 

इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दें