मुख्तार खान | NavprabhatTimes.com
मुंबई: शनिवार, 14 दिसंबर को ‘भारत की जनवादी महिला संगठन’ की ओर से ‘विरूंगुला केंद्र’ मीरा रोड में कामकाजी महिलाओं के जीवन संघर्ष को दर्शाती पेंटिंग्स और चित्रों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोरा, संस्कृति कर्मी विभा रानी व प्रीति शेखर के हाथों सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति को केंद्र में रखते हुए एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। जिसमें सुधा अरोरा, विभा रानी, सरोज त्रिपाठी तथा फिरोज खान ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्तार खान ने कैफ़ी आज़मी की मशहूर नज़्म ‘औरत’ से की।
लेखिका सुधा अरोरा ने महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों का एक लंबा इतिहास रहा है, अफसोस तो इस बात पर है कि आज भी समाज में महिलाओं की स्थिति जस की तस बनी हुई है। स्थिति तो यह है कि आज के ये हालात देखे नहीं जाते, क्या हम सब शतुरमुर्ग की तरह अपना मुंह छिपा लें! पर यह समस्या का समाधान नहीं है। महिला आन्दोलन आज थोडा शिथिल पड़ा हैl इस में दुबारा जान फूंकने की ज़रूरत हैl साथ ही उन्होंने हाल ही में घटित कुछ घटनाओं का भी ज़िक्र किया। संस्कृति कर्मी विभा रानी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि साहित्य और कला के क्षेत्र में आज भी महिलाओं की कला कृतियों को दोयम दर्जे का ही समझा जाता है। सभा में उपस्थित महिलाओं को उन्होंने आह्वान देते हुए कहा कि हमें अपने अधिकारों की लड़ाई खुद के बल पर ही लड़नी होगी, संघर्ष का यह रास्ता कठिन ज़रूर है, पर बिना आवाज़ उठाए अब काम नहीं चलने वाला। इस लड़ाई की शुरुआत हम सब को अपने घर से ही करनी होगीl
युवा कवि फिरोज खान ने औद्योगिक क्रांति का हवाला देते हुए कहा कि मजदूरों की क्रांति में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था और कुर्बानियां दी थी। आज उसी तरह से महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए लीड लेना होगाl उन्होंने फिनलैंड जैसे यूरोपीय देश का उदाहरण देते हुए कहा कि आज वहां की पूरी राजनीतिक शक्ति महिलाओं के हाथों में है बदलते समाज कायह एक उत्तम उदाहरण है पर हम इस से आज भी कोसो दूर है।आखरी वक्ता के रूप में सरोज त्रिपाठी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आज बाज़ार ने महिला मुक्ति के नाम पर उसे एक कमोडिटी में बदल दिया है l आज पूरे मीडिया में उसकी देह को उत्तेजक रूप में परोसा जा रहा है, समाज में फैलती विकृति के लिए ये शक्तियाँ भी उतनी ही ज़िम्मेदार हैं l महिलाओं को बाज़ार के इस चुंगल से भी मुक्त होना होगा और यह मुक्ति संघर्ष और आंदोलन के रास्ते ही मिल सकती हैl नारी मुक्ति की लड़ाई एक साझा लड़ाई है। स्त्रियों की आज़ादी में ही पुरषों की आज़ादी है।परिचर्चा का संचालन मुख़्तार खान ने किया युवा कवियत्री प्रतिमा राज ने संयोजक की भूमिका निभाई।इस अवसर बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थित सरहानीय थीं, जिन में सुरबाला मिश्र, सुनीता शर्मा, मधुबाला, शशिकला राय, रुबीना खान आदि उपस्थित थीं। साथ ही इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार धीरेन्द्र अस्थाना, हृदयेश मयंक, रमन मिश्र, राकेश शर्मा, दिनेश गुप्ता,मोइन अंसार, शिवम् सिंह अनुज अग्रवाल ने उपस्थित रह कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। अंत में स्वर संगम की ओर से डॉक्टर राय ने सब का आभार व्यक्त किया।