हमारा गणतंत्र कोई भेदभाव नहीं करता, हमारी व्यवस्था उच्च-कोटि की है !

स्वतंत्रता

अरविंद विश्वकर्मा (लखनऊ) 

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व गणतंत्र-दिवस के शुभ अवसर पर लोगों में जोश, जुनून व उत्साह चरम पर था। देखकर यह लगता था कि देश में आतंक की घटनाओं, वैमनस्यता, उचित देखभाल-रखरखाव, स्वास्थ्य की समस्याओं, शिक्षा में गिरावट व भ्रष्टाचार तथा कटुता जैसे शब्दों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। इस अवसर को हम एकता, समानता, सद्भावना, स्वतंत्रता आदि के रक्षण के लिए संविधान के लागू होने की तिथि के रूप में गणतंत्र पर्व के रूप में मनाते हैं। इस दिन हम यह आश्वस्त करते हैं कि हमारा गणतंत्र कोई भेदभाव नहीं करता, हमारी व्यवस्था उच्च-कोटि की है। यह सभी में समान अवसर और न्याय के लिए कृतसंकल्प है। इसी संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत लोकतंत्र के चार महत्वपूर्ण स्तंभ कार्य करते हैं! जो यह निर्धारित करते हैं कि किसी के भी साथ, कभी भी, किसी भी परिस्थिति में भेदभाव ना हो। महामहिम स्वयं इस व्यवस्था के सबसे बड़े पद पर आसीन होकर इसके संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। विभिन्न स्तर पर गणमान्य लोगों की नियुक्ति व इसकी शपथ दिलाकर महामहिम स्वयं प्रक्रियागत व्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं।

पिछले कुछ दिनों में जिस प्रकार से स्वास्थ्य समस्या के कारण बच्चों की मौत, भूख से तड़फड़ाते लोगों की मौत, किसानों की विभिन्न समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में मौत हुई, वह चिंतनीय है। इसी के साथ क्षेत्रीय, धार्मिक, जातीय आधार पर लोगों में विरोध होना संभव हो सकता है किंतु उसके निदान के लिए भी हमारी संवैधानिक व्यवस्था में बहुत से अवसर उपलब्ध हैं। संवैधानिक व्यवस्था का प्रयोग करते हुए हम अपने सभी अधिकारों को प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी असंतोष के बदले लोगों में दहशत फैलाना, आतंक मचा देना, देश के संसाधनों को बर्बाद करना, चलती हुई बस को जला देना, रेल का रोकना, भीड़ पर हमला, दिनदहाड़े गोलियों से भूनना, बलात्कार की बढ़ती घटनाएं, बच्चों पर पत्थरबाजी करना, बहुरूपिया के रूप में धर्म सम्प्रदाय के नाम पर छद्मवेश में दीमक की तरह लोगों को चूसना, हमारी गणतांत्रिक भावना का अपमान है। जिसके लिए वह सभी दोषी होते हैं जो इसके पहरेदार के रूप में नियुक्त होते हैं और अनजान बनते हैं। संवैधानिक मर्यादाओं के इतर किसी भी प्रकार की छूट देना ही गणतंत्र की भावनाओं पर एक प्रकार का हमला है।

जनता के द्वारा नियुक्त संविधान की शपथ लेने वाले सभी व्यक्तियों को यह समझना होगा कि उनका एक ही परम कर्तव्य होता है। वह यह कि संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत निर्णय लें और उसका समुचित पालन कराएं, ना कि पद का दुरुपयोग करें। कानून का दुरुपयोग करते हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को कुचलना भी उचित नहीं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसी भी सदन में प्रतिनिधियों के विचार मुखिया की वाहवाही या उनके विचारों में ही मौन सहमति देना है। सदन के बाहर भी विभिन्न गंभीर मुद्दों पर जनप्रतिनिधियों के विचार गौण हो जाते हैं। यदि कुछ बचता है, तो विरोधियों को अपशब्द कहना और मर्यादाओं को लांघना तथा उलूल-जुलूल बयान देना।

किसी भी न्यायिक अधिकारी की मौत होना और मौत का कारण पता न चलना लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। न्यायिक व्यवस्था में जिस प्रकार से असंतोष पनपता दिखा, वह भी सामान्य नहीं है। लोकतांत्रिक प्रणाली में किसी भी स्तर पर, किसी भी विभाग में, किसी भी क्षेत्र में, तानाशाही व्यवस्था की मान्यता नहीं दी गई है। विभिन्न मतभेदों दुरुपयोगों के बाद भी हमारे गणतांत्रिक व्यवस्था की वह आधारभूत मजबूत व्यवस्था है कि कोई इसे डिगा नहीं पा रहा है। ऐसे लोकतांत्रिक प्रणाली को नमन करते हुए, 69 वें गणतंत्र दिवस की आप सभी देशवासियों को मुबारकबाद व हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दें