NRC का विरोध होना चाहिए – अरविन्द विश्वकर्मा

अरविन्द विश्वकर्मा, लखनऊ 

अरविन्द विश्वकर्मा

यूं तो नागरिकता संशोधन कानून का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में सताए हुए लोगों को हम अपने यहां शरण दे रहे हैं। यदि वह 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत आ चुके हैं, तो उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। विपक्षी पार्टियों का विरोध मुस्लिम को सम्मिलित न करना था। यदि मुस्लिम सम्मिलित होते, तो वह भी खुशी-खुशी इसके समर्थक होते।

इसी के साथ एनआरसी के भी हम अंध समर्थक हैं, जबकि यह समझना होगा कि एनआरसी किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, सभी के लिए लागू होगी। असम की स्थिति प्रत्यक्ष रूप से सामने है कि 1971 के पहले के कौन-कौन से पेपर मांगे गए थे। वैसे तो किसी भी देश के नागरिक कौन हैं, यह स्पष्ट होना चाहिए। लेकिन 1971 के पहले के कागजात सभी के लिए संभव नहीं, वह भी उस देश में जिसमें शिक्षा का स्तर लगभग उस समय नगण्य था। बहुत से लोगों के पास खेती-बाड़ी नहीं थी और है! वे उपलब्ध करा पाएंगे, संदेह है। यह भी तथ्य समझना होगा कि देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। परिवार रजिस्टर की नकल के लिए रुपया 100 आम है। पुरानी खतौनी का मुआयना कराना हो तो वकील साहब का 300 और मजबूरी या जल्दी हो तो वह 3000 भी होता है। निर्वाचन कार्यालय से 1950 का कागजात हासिल करने के लिए कम से कम 2000 सामान्य परिस्थितियों में और जल्दबाजी के लिए 5000 तक आम बात है। उपरोक्त सभी में संबंधित कार्यालय तक दौड़ भाग का समय और धन की बर्बादी अलग से। इन सब में वह परेशान कदापि नहीं होंगे जो आर्थिक रूप से संपन्न और मजबूत हैं, क्योंकि वह जुगाड़ से अपना सब काम करा ही लेंगे। जैसे नोटबंदी में ना वे लाइन में खड़े हुए और ना उनका धन बर्बाद हुआ। जबकि गरीब मारा मारा फिरता था और अब भी दाल चावल और छप्पड़ से पैसे निकलते हैं। यह तो वही स्थिति हुई कि जो पिछले 50 साल से स्थाई रह रहे हैं। उनपर नागरिक ना होने की तलवार लटक रही है और जो बाहर से आए हैं उनका स्वागत फूल मालाओं से किया जा रहा है।

यह सरकार की नीति उस समय है जब बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और बेहतर शिक्षा से हम दो-चार हो रहे हैं। सरकार के मंत्री अपने मंत्रालयों को बेहतर नहीं देख पा रहे हैं। मंत्रियों की असफलता छिपाने के लिए वह बहुत से उपक्रम बेचना चाह रही है। असफलता छिपाने के लिए लोगों को लाइन में लगवाकर ध्यान भटकाना उसका मुख्य उद्देश्य हो गया है। काश सरकार बेहतर शिक्षा, लोगों को रोजगार देकर और भ्रष्टाचार समाप्त करके इस दिशा में कदम बढ़ाती तो बेहतर होता। या सरकार 31 दिसंबर 2014 तक भारत में रहने वाले सभी लोगों को नागरिकता प्रदान कर दे, तब दौड़ भाग स्वत: कम हो जाएगी। कोई भी कानून जनता के हित के लिए होता है. ना कि उसे और परेशानियों में डालने के लिए। वर्तमान स्थितियों में जागरूक नागरिक के रूप में इस कानून का विरोध किया ही जाना चाहिए।

(लेखक एक राष्ट्रीय चिंतक व स्वतंत्र विचारक हैं.)

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  1. Ben kimim! Beni söylediklerimde arama…!Ben söylemediklerimde gizliyim…!O görmediğin koskoca derya gönlümdür.Gördüğün sahil ise dilim.Kıyılarıma vuran dalgalarıma şaşma..!Onlar aşk’tan gel-git’im.Beni Mecnundan Leyla’dan sorma…! Ben yalnız Mevladan bir izim…!!

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