‘फुददू’ का संघर्ष और आम जिंदगी

'फुददू'

आनंद प्रकाश शर्मा,

पिछले दिनों फिल्म  ‘फुददू’ रीलिज हुई। निर्देशक सुनिल सुब्रमण्यम के निर्देशन में बनी फिल्म ‘फुददू’ कुछ अलग ही कहानी को बयां करती है। मुम्बई शहर के लाइफ स्टाइल से जुड़ी है। मुम्बई भारत का ही नहीं, विश्व का एक बड़ा शहर माना जाता है। दुनिया के गिने -चुने शहरों में इसकी गणना की जाती हैं। निश्चित तौर पर मुम्बई ने जो मंजिल तय की है, उसका एक लम्बा इतिहास रहा है।

निर्देशक सुनिल ने मुम्बई की सबसे बदनाम गली से लेकर ऐसे आराम तक के जिंदगी को इस फिल्म के माध्यम से लोगों के सामने एक रेखाचित्र खींचा है । मुम्बई शहर में आने के बाद किस तरह आम इंसान नौकरी के लिये दर-दर  भटकता है। हताश और उदास होकर पुन: अपने घर में आता है, तब उस घर में पहले से 12 से 15 लोग सोते हुये नज़र आते हैं। यह कैसी विडम्बना है। मुख्य किरदार की भूमिका में शुभम को भी अपने घर में कुछ इस तरह का नज़ारा देखने को मिलता है। शुभम के परिवार में सात से आठ  लोग रहते है। उसी घर में पर्दे   की आड़ में  अपने जीवन को गुज़ारते हैं। पत्नी के साथ सोते समय आधी रात  को कुछ हलचल सी होती है और वही हलचल दूसरे भाई की चारपाई से टकराती है, तो अपने आप में शर्मिन्दगी महसूस होती है और अपने आप को माफ भी नही कर पाते। सोचने पर मजबूर हो जाते हैं, कि कैसे हम सब एक ही घर में  रहते है?

फिल्म कलाकार शुभम और स्वाति कपूर मुख्य किरदार में सामने आते हैं। उसी बीच दोनों की शादी होfuddu जाती है। शादी के दौरान दोनों अपने उसी 12/12 के घर में संयुक्त परिवार के बीच रहते हैं। छोटे से घर में संयुक्त परिवार के बीच रहने के कारण दोनों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध नहीं बन पाता, जिससे खफा होकर स्वाति कपूर अपने मायके चली जाती है।

छोटी भाभी की  भूमिका में लीड रोल कलाकार शालिनी अरोड़ा, गौहार खान, सुजीत पाठक, प्रीत्तोस, विक्की आहूजा, शरमन जोशी और संनी लियोन है । कहानी काफी रोचक और मनोरंजन से भरपूर है। हँसी मजाक के साथ शुभम ,स्वाति और शालिनी का किरदार काफी सराहनीय है।

फुददू की कहानी परिस्थियों की सच्चाई  को बयां करती है। यहाँ जो संघर्ष करते हैं, एक दिन बुलंदी की ऊचाईयों पर पहुँच जाते हैं। आलसी और निखटटु लोगों को यह शहर धकियाकर भगा देता है। मुम्बई चरम सीमाओं  का शहर है, विरोधाभासों का महानगर है। प्रत्येक व्यक्ति के लिये मुम्बई एक अलग अर्थ रखती है। कब किसको हँसाएगी और कब किसको रुलाएगी, बता पाना मुश्किल है।

यह माया नगरी अजीबोगरीब है, इसकी लीलाएँ अपरम्पार हैं। सीमेंट और कॉन्क्रीट  के इस चंचला नगरी में व्यक्ति चुम्बक की भाँति स्वयं खिंचा चला जाता है। इसी कथा को निर्देशक सुनिल सुब्रमण्यम ने “फुददू ” के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने का पुनीत कार्य किया है ।

रेटिंग: 2 स्टार

प्रस्तुति : सुंदर मोरे

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