मुंबई विश्वविद्यालय की दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

महाकवि जयशंकर प्रसाद : एक पुनर्पाठ

चित्रा मुद्गल

मुंबई: दिनांक 17 और 18 फरवरी को मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ग्रीन टेक्नोलॉजी सभागार में सम्पन्न हुई। इस संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और साहित्य अकादेमी भारत सरकार के पूर्व अध्यक्ष डॉ.विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि जयशंकर प्रसाद वर्तमान समय और समस्याओं के महत्वपूर्ण कवि हैं। उनके द्वारा रचित कामायनी अपने समय की सारी संभावनाओं को सोख लेती है। वह क्लासिक अथवा कालजयी कृति है। एक ऐसी कृति जो हर समय, हर समस्या, हर वर्ग हर संप्रदाय तथा हर मनुष्य को कुछ देने की शक्ति रखती है वह क्लासिक कहलाती है।

मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.सुहास पेडणेकर ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि यह खुशी की बात है कि हिंदी विभाग अपने स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में यह दूसरा बड़ा आयोजन कर रहा है। हम जयशंकर प्रसाद के पुनर्पाठ द्वारा नयी पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम तथा विश्व मनुष्यता का संदेश दे सकते हैं। उन्हें बेहतर मनुष्य बनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।कार्यक्रम के आरंभ में हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय ने महाकवि जयशंकर प्रसाद को 20 वीं सदी की सबसे बड़ी साहित्यिक प्रतिभा बतलाते हुए कहा कि वे न केवल बड़े सपने देखते हैं, अपितु विराट स्वप्न की सृष्टि भी करते हैं। सपने देखना बड़े मनुष्य का लक्षण है। प्रसाद बड़ी चिंता के कवि हैं। वे बड़े प्रश्न उठाते हैं और उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। उनके यहाँ विज्ञान और दर्शन काव्य-सम्पत्ति बन जाते हैं। उन्होंने कामायनी में आधुनिक सभ्यता की विसंगतियों पर जिस ढंग से प्रखर काव्यात्मक आक्रमण किया है, उसका कोई सानी नहीं है।

इस अवसर पर प्रख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल ने कहा कि जयशंकर प्रसाद ने अपने उपन्यासों, कहानियों तथा अन्य रचनाओं में ऐसे सुदृढ़ तथा वैविध्यपूर्ण नारी चरित्र रचे हैं कि पश्चिम और हमारे देश के स्त्री विमर्श के रचनाकार भी नहीं रच सके हैं।अतः हम साहित्य में प्रसाद को छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकते। बी.एच.यू.के प्रोफेसर डॉ.अवधेश प्रधान ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि कामायनी में विश्व का समस्त आकर्षण पाया जाता है। प्रसाद उज्ज्वल नवमानवता के हिमायती थे। डॉ.बिनीता सहाय उद्घाटन सत्र का संचालन किया।

इस मौके पर महाकवि जयशंकर प्रसाद के प्रपौत्र विजय शंकर प्रसाद ने प्रसाद द्वारा अपने गोदाम में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को छिपाए जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब प्रसाद जी से उस समय के जेल भरो आन्दोलन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे जेल भरने के बजाय जेल तोड़ने पर विश्वास करते हैं, चाहे वह विचारों का हो अथवा दीवारों का।

इसके उपरांत डॉ.अशोक प्रियदर्शी की अध्यक्षता में ‘प्रसाद का कामायनी पूर्व काव्य: पुनर्पाठ के आयाम’ शीर्षक से प्रथम सत्र सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ.अवधेश कुमार शुक्ल वर्धा, डॉ.रामविचार यादव, डॉ.सुनील कुलकर्णी जलगांव, डॉ.अर्चना त्रिपाठी दिल्ली, डॉ.सतीश पांडेय, डॉ.प्रवीण विष्ट, डॉ.महात्मा पांडेय तथा प्रा.दिनेश पाठक ने अपने विचार रखे। इस सत्र का संचालन डॉ.सचिन गपाट ने किया।

तदुपरांत डॉ.रामजी तिवारी पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में ‘ कामायनी:पुनर्पाठ के आयाम’ शीर्षक से दूसरा सत्र सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ.पूरनचंद टंडन दिल्ली, मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त डॉ.मनोज कुमार शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में कामायनी के संदेश और दार्शनिक वैभव के संदर्भ में गंभीर विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इस सत्र में डॉ.सूर्य प्रकाश पांडेय वर्धा, डॉ.भारती सानप नाशिक, डॉ.मिथिलेश शर्मा, डॉ.माधुरी जोशी, डॉ.उर्मिला सिंह ने कामायनी के विविध पक्षों पर अपना वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन दिल्ली से पधारे डॉ.आलोक पांडेय ने किया।

अगले दिन प्रातः ‘प्रसाद के नाटक : पुनर्पाठ के आयाम’ विषय पर डॉ.सदानंद शाही की अध्यक्षता में तीसरा सत्र सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रख्यात अभिनेता श्री अखिलेंद्र मिश्र ने अब नाटक बदल चुका है और प्रसाद के नाटकों का मंचन आसान हो गया है। दूसरे मुख्य अतिथि डॉ.सदानंद भोसले ने प्रसाद के नाटकों के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व का विस्तृत विवेचन किया। इस सत्र में डॉ.दर्शन पांडेय दिल्ली, डॉ.मधुकर डोंगरे टोकावडे, डॉ.ऐश्वर्या झा नयी दिल्ली, डॉ.प्रतिभा राणा नयी दिल्ली तथा डाॅ.मनोज दुबे ने प्रसाद के नाटकों का नए सिरे से मूल्यांकन किया। इस सत्र का संचालन डॉ अमित शर्मा ने किया ।

इसके बाद डॉ.योजना रावत चंडीगढ़ की अध्यक्षता में ‘प्रसाद का कथा साहित्य: पुनर्पाठ के आयाम’ शीर्षक से चतुर्थ सत्र सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ.मंजुला देसाई, डॉ.हूबनाथ पांडेय, डॉ.अरुण कुमार मिश्र प्रतापगढ़, डॉ.विजय लोहार जलगांव, डॉ.रेखा शर्मा , डॉ.जितेन्द्र पांडेय ने प्रसाद के कथा साहित्य के अलग -अलग पक्षों का निर्वचन किया। इस सत्र का संचालन डॉ .हनुमंत धायगुडे ने किया।

डॉ. रामकिशोर शर्मा इलाहाबाद की अध्यक्षता में ‘ प्रसाद का चिंतन: पुनर्पाठ के आयाम’ शीर्षक से पंचम सत्र सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ.आनंद प्रकाश त्रिपाठी सागर, डॉ.शीतला प्रसाद दुबे, डॉ.गोरख काकडे औरंगाबाद, डॉ.चंदन कुमार पटना, डॉ.दिनेश कुमार ने प्रसाद के चिंतन के विविध आयामों का विश्लेषण प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ.अंशु शुक्ला ने किया।

समापन सत्र जे.जे.टी.विश्व विद्यालय के कुलाधिपति डॉ.विनोद टिबडेवाल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ.सुरेशचंद्र शुक्ल नार्वे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर डाॅ.बनमाली चतुर्वेदी , विजय शंकर प्रसाद, अतुल कुमार ने अपने विचार व्यक्त किये। हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ.सुनील वल्वी ने समापन सत्र का संचालन किया। अंत में डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय ने सारे अतिथियों, विद्वानों का आभार व्यक्त किया। इस संगोष्ठी में देश-विदेश के लगभग ढाई सौ विद्वान और छात्र सम्मिलित हुए।

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