मुंबई के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी मुजीब खान के निर्देशन में मंचित हुआ बहुप्रतीक्षित नाटक ‘स्वामी विवेकानंद’

मुजीब खान

स्वराज्य-पर्व के अंतर्गत 25 सितंबर की शाम मुंबई के प्रसिद्ध रंगकर्मी कलाकारों द्वारा विश्वविख्यात नाट्य-निर्देशक  मुजीब खान के निर्देशन में ‘स्वामी विवेकानंद’ नाटक का अत्यंत भव्य मंचन किया गया। भारत के महामनीषी स्वामी विवेकानन्द के जीवन और योगदान पर केन्द्रित यह नाट्य-प्रस्तुति इस अर्थ में विशिष्ट है कि पहली बार रंगमंच पर स्वामी जी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को रूपायित करने का प्रयास किया गया है और यह इस नाटक के नाटककार के तौर पर उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार सईद हमीद की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

यह नाटक स्वामी विवेकानंद और खेतड़ी नरेश अजीत सिंह के आत्मीय रिश्ते से हमारा परिचय कराता है, जो इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और दोस्ती की एक खास मिसाल भी। नरेन्द्र से स्वामी विवेकानंद बनने की कहानी खेतड़ी से ही शुरु होती है और शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है। उल्लेखनीय है कि स्वामीजी का स्वामी विवेकानन्द नाम भी राजा अजीत सिंह ने रखा था। इससे पूर्व स्वामीजी का नाम विविदिषानन्द था। शून्य पर भाषण देकर विश्व को मंत्रमुग्ध करने वाले स्वामी विवेकानंद को विश्व में प्रसिद्धि दिलाने में और उनके संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में खेतड़ी नरेश अजीत सिंह के ऐतिहासिक योगदान को यह नाटक बड़े ही प्रभावी तरीके से रेखांकित करता है। यह नाटक हिन्दू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता के एक प्रबल पैरोकार के रूप में स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व के एक भिन्न आयाम को भी पहली बार दर्शकों के समक्ष उजागर करने में सफल रहा है। नाटक में स्वामी विवेकानंद की बहुआयामी भूमिका को आत्मसात कर अकिल अल्वी ने अत्यंत सहज, मर्मस्पर्शी और प्रभावशाली अभिनय प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार स्वामी जी की माता की भूमिका में सीमा रॉय ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। अन्य सहयोगी कलाकारों में मोक्षगुरु (रामकृष्ण परमहंस), अशोक धामू (वकील), हरीश अग्रवाल (काका बाबू एवं खेतड़ी नरेश) तथा हाशिम सैय्यद (फ़ुरकान अली) ने भी अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों की सराहना प्राप्त की।

नाटक की प्रस्तुति में एक आमंत्रित कलाकार (नर्तकी) के रूप में रामदयालु सिंह कॉलेज की छात्रा रत्ना कुमारी ने भी अपने भावपूर्ण नृत्य से दर्शकों को प्रभावित किया। ऐतिहासिक पात्रों एवं परिवेश वाले नाटकों में वस्त्रभूषा एवं रूपसज्जा का महत्व केन्द्रीय रहता है, और इस दृष्टि से अस्फ़िया खान एवं पटना के जितेन्द्र जीतू ने क्रमशः वस्त्र परिकल्पना तथा रूपसज्जा द्वारा स्वामी विवेकानंद नाटक के युगीन परिवेश को विश्वसनीय एवं प्रभावी बनाने में बेहद उल्लेखनीय योगदान दिया है। सशक्त अभिनय, मनमोहक संगीत और अन्य कई विशिष्टताओं से युक्त यह बहुचर्चित नाटक मुजफ्फरपुर के कलाप्रेमी दर्शकों की चेतना का एक स्थायी हिस्सा बन गया है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।इस अवसर पर स्वराज्य-पर्व के अन्तर्गत मुजफ्फरपुर में स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक और राष्ट्रकवि दिनकर की अमर काव्य-कृति रश्मिरथी पर नाट्य प्रस्तुतियों का आयोजन करने वाले राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि आज देश के जन-जन तक स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक और राष्ट्रकवि दिनकर जैसे हमारे महामनीषी विचारकों एवं समाज सुधारकों के व्यक्तित्व और विचारों को पहुंचाने की आवश्यकता निरन्तर बढ़ती ही जा रही है और इस कार्य के लिये नाटक और रंगमंच की तरह प्रभावी कोई अन्य माध्यम नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास विगत 33 वर्षों से निरंतर हमारे महापुरुषों के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिये काम करता आ रहा है।

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