तिमिर-मंच पर ज्ञानमय रविकर-निकर-प्रकाश।
अलबेला आम्बेडकर सन्निभ बृहदाकाश।।86।।
हृदय सुशीतल सोम भी, बुद्धि-प्रभा मार्तण्ड।
दया-द्रवित जो अति सरल, अम्बुधि क्षुब्ध प्रचण्ड।।87।।
हासिल ऊँची डिग्रियाँ, विविध भारती-ज्ञान।
पल्लवग्राही जो नहीं अवगाहन-संधान।।88।।
धर्मग्रन्थ, इतिहास क्या संस्कृति, दर्शन-भेद।
गीता-वेद-कुरान के गहे तत्त्व सब, छेद।।89।।
कहीं न देखा या सुना ऐसा पुस्तक-प्रेम।
वित्त-ज्ञान में शोध तो बोध विपुल से क्षेम।।90।।
बौद्ध-जैन की खूबियाँ, ज़ाहिर सिक्ख-सुधर्म।
जाति-धर्म-दुश्चक्र में शोषण के हैं मर्म।।91।।
शाश्वत ग़ैरबराबरी मानो जिसकी रूह।
ऐसा ही हिन्दुत्व क्यों शूद्र-हेतु मल-ढूह।।92।।
सबमें थोड़ा गिद्ध है, जितने शातिर सिद्ध।
खुली आँख से बाँचिए ब्राह्मण-ग्रन्थ प्रसिद्ध।।93।।
ऊँची-ऊँची भावना और भाव में भेद।
कुत्सित-कलुष विचारमय जाति-वर्ण, यह खेद।।94।।
जिनके उच्च विचार वे गहे नीच आचार।
ऊँची-ऊँची हाँकते, पतित-पोच व्यवहार।।95।।
सेवा करते शूद्र जन, उनके लहू उलीच।
अपर वर्ग जो भोगरत, चमड़ी-दमड़ी खींच।।96।।
हर सत्ता को प्राप्त है शोषण का अधिकार।
नीति-नियन्ता जन्मना, सूत्र-ग्रन्थ साकार।।97।।
उसने देखा ध्यान से भेद-घृणा का मूल।
पाँवों में इतिहास के बेड़ी, कोई शूल।।98।।
टपक रहा टप-टप लहू, रचित पाप-अध्याय।
सब पर छींटे खून के, आँसू-क्रन्दन हाय।।99।।
देेखा पृष्ठ अतीत के इकटक लहूलुहान।
चीखें, अबला मर्दिता, कुलिश-क्रूर दास्तान।।100।।
धर्म-नियम, क़ानून नव लादे ऊल-जलूल।
दुर्बल दीनों के लिए बोए पेड़ बबूल।।101।।
कोड़े सौ-सौ पीठ, कर लिए बजाते काठ।
शूद्र-दशा, अन्त्यज सुलख, विलख पढ़े सब पाठ।।102।।
छुआछूत, असमानता, घृणा-भेद-विस्तार।
फिर कैसा है धर्म वह, जन्म पतित धिक्कार।।103।।
दर्शन विश्व-कुटुम्ब का, किन्तु हृदय संकीर्ण।
सोच पोच व्यवहारगत, विष के बीज विकीर्ण।।104।।
कभी सताये जो गये, जीना हुआ हराम।
कभी शरण ईसाइयत या क़बूल इस्लाम।।105।।
बौद्ध धर्म स्वीकार कर दिया बड़ा संकेत।
मिले न जो सम्मान इस हिन्दू धर्म-निकेत।।106।।
लिया मसीहा ने तभी एक नया संकल्प।
भेद मिटाने के लिए संविधान-आकल्प।।107।।
जो भी मानव-रूप में जाति भिन्न या धर्म।
जीने का अधिकार है, जो चाहे, सो कर्म।।108।।
सबमें समरस बन्धुता, नहीं बड़ा या नीच।
शोषित को अवसर मिले, खिले, न जीवन कीच।।109।।
उसको वही स्वतंत्रता, जीवन का सम्मान।
उसकी प्रतिभा खिल सके, संतापित को त्रान।।110।।
काम फुले-पेरियार का मानवता-विस्तार।
मेट अँधेरा कर दिया दिशाकाश उजियार || १११||
खिन्न और विक्षुब्ध मन बौद्ध धर्म स्वीकार।
विषय बहुत यह ग्लानि का ज्ञापित है ‘नीहार’।।112।।
हाज़िर दलित-हुजूम वह, अनुगत लाखो-लाख।
आखिर इस हिन्दुत्व की बची कहाँ तब साख।।113।।
जीवन भर चलता रहा गाँधी से प्रतिवाद।
प्रतिनिधि कौन ‘अछूत’ का, सुनी दीन-फरियाद।।114।।
दरियादिल आम्बेडकर, घनीभूत वह दंश।
गाँधी का दिल भी बड़ा, मगर दर्द का अंश।।115।।
एक आत्म-अनुभूत था, एक लोक-अनुभूत।
एक भरा आक्रोश दिल, एक दया अनुस्यूत।।116।।
प्रतिभा-ज्ञान-विवेक में एक अतुल इंसान।
गाँधी दिल का देवता, असफल, मगर महान।।117।।
भीमराव का व्योम-सा था विराट मस्तिष्क।
नव विकास-सम्भावना-पुंज प्रभा ज्योतिष्क।।118।।
संविधान-सम्मान को मेरे कोटि प्रणाम।
मानवता-अभिमान को मेरे कोटि प्रणाम।।119।।
रचनाकाल: 14 अप्रैल, 2021,
(चैत्र शुक्ला द्वितीया, वि0सं0 2078)
बलिया, उत्तर प्रदेश
नीहार-दोहा-महासागर (दोहों का विशाल संग्रह) : तृतीय अर्णव-प्रथम हिल्लोल-अमलदार नीहार
डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
बलिया
सम्पर्क: मो. 9454032550
परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 17 पुस्तकें प्रकाशित, 3 पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर