हर वर्ष मलेरिया से लगभग चार लाख लोगों की मौत होती है। दवाइयों तथा कीटनाशक युक्त मच्छरदानी वगैरह से मलेरिया पर नियंत्रण में मदद मिली है लेकिन टीका मलेरिया नियंत्रण में मील का पत्थर साबित हो सकता है। मलेरिया के एक प्रायोगिक टीके के शुरुआती चरण में आशाजनक परिणाम मिले हैं।
नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस टीके में जीवित मलेरिया परजीवी (प्लाज़्मोडियम फाल्सीपैरम) का उपयोग किया गया है। टीके के साथ ऐसी दवाइयां भी दी गई थीं जो लीवर या रक्तप्रवाह में पहुंचने वाले परजीवियों को खत्म करती हैं। टीकाकरण के तीन माह बाद प्रतिभागियों को मलेरिया से संक्रमित किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि टीके में प्रयुक्त संस्करण से लगभग 87.5 प्रतिशत लोगों को सुरक्षा प्राप्त हुई जबकि अन्य संस्करणों से 77.5 प्रतिशत लोगों को सुरक्षा मिली। जीवित परजीवी पर आधारित टीकों में इसे महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
वर्तमान में कई मलेरिया टीके विकसित किए जा रहे हैं। इनमें से सबसे विकसित RTS,S टीका है जिसकी प्रभाविता और सुरक्षा का पता लगाने के लिए तीन अफ्रीकी देशों में पायलट कार्यक्रम के तहत 6.5 लाख से अधिक बच्चों को टीका दिया जा चुका है। इसके अलावा R21 नामक एक अन्य टीके का हाल ही में 450 छोटे बच्चों पर परीक्षण किया गया जिसमें 77 प्रतिशत प्रभाविता दर्ज की गई। एक व्यापक अध्ययन जारी है। गौरतलब है कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए इन दोनों ही टीको में एक ही मलेरिया प्रोटीन, सर्कमस्पोरोज़ॉइट प्रोटीन, का उपयोग किया गया है। यह प्रोटीन परजीवी की स्पोरोज़ॉइट अवस्था के बाह्य आवरण पर पाया जाता है। मच्छरों से मानव शरीर में यही अवस्था प्रवेश करती है।
पिछले कई दशकों से टीका निर्माण के लिए संपूर्ण स्पोरोज़ॉइट्स का उपयोग करने के तरीकों की खोज चल रही है। संपूर्ण परजीवी के उपयोग से प्रतिरक्षा प्रणाली को कई लक्ष्य मिल जाते हैं। वायरसों के मामले में यह रणनीति कारगर रही है लेकिन मलेरिया के संदर्भ में सफलता सीमित रही है। एक अध्ययन में देखा गया कि दुर्बलीकृत स्पोरोज़ॉइट्स टीके के बाद व्यक्ति को परजीवी के अलग संस्करण से संक्रमित करने पर मात्र 20 प्रतिशत सुरक्षा मिली।
कई वैज्ञानिकों का तर्क था कि जीवित परजीवी शरीर में खुद की प्रतिलिपियां बनाएगा और इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक प्रोटीन पैदा करेगा, इसलिए प्रतिरक्षा भी अधिक उत्पन्न होनी चाहिए। इस संदर्भ में प्रयास जारी हैं।
नए टीके में शोधकर्ताओं ने 42 लोगों में जीवित स्पोरोज़ॉइट्स इंजेक्ट किए। साथ ही उन्हें दवाइयां भी दी गईं ताकि परजीवी को लीवर या रक्त में बीमारी पैदा करने से रोका जा सके। यह तरीका काफी प्रभावी पाया गया और परजीवी के दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले एक अन्य संस्करण के विरुद्ध भी प्रभावी साबित हुआ। फिलहाल माली में वयस्कों पर परीक्षण किया जा रहा है।
आशाजनक परिणाम के बावजूद बड़े पैमाने पर स्पोरोज़ॉइट टीकों का उत्पादन सबसे बड़ी चुनौती है। स्पोरोज़ॉइट्स को मच्छरों की लार ग्रंथियों से प्राप्त करना और उनको अत्यधिक कम तापमान पर रखना आवश्यक है जो वितरण में एक बड़ी बाधा है। पूर्व में इतने बड़े स्तर पर मच्छरों का उपयोग करके कोई भी टीका नहीं बनाया गया है।
लेकिन मैरीलैंड स्थित एक जैव प्रौद्योगिकी कंपनी सनारिया स्पोरोज़ॉइट्स का उत्पादन मच्छरों के बिना करने के प्रयास कर रही है। कंपनी का प्रयास है कि जीन संपादन तकनीकों की मदद से मलेरिया परजीवी को जेनेटिक स्तर पर कमज़ोर किया जा सके ताकि टीके के साथ दवाइयां न देनी पड़ें।
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