गाँधी जयंती: फिर याद आये चमन के चमकते सितारे आज के दिन ही खिले थे दो फूल

गाँधी जयंती

“हजारों सालों में ऐसा मसीहा एक आया था,
जिसने आदमी को आदमी बनना सिखाया था।”

जन-जन के हृदय सम्राट महान विभूति, सेवा सादगी और स्वालंबन प्रेमी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही थे। यह हमारा दुर्भाग्य है कि ऐसे मसीहा जिनकी स्नेहपूर्ण छत्रछाया में हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई। आज हमारे बीच नहीं है, परंतु फिर भी उनके आदर्श आज तक हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था। भारत माता के महान पुत्र गांधी जी को हम राष्ट्रपिता कहते हैं। उन्होंने हमारे देश को आजादी दिलाई थी। गांधी जी सच्चाई से बहुत प्यार करते थे। वे देशवासियों के लिए बहुत सी लड़ाइयां लड़ी। भारत अनेक शताब्दियों से कहीं अधिक समय से परतंत्रता का कष्ट भोग रहा था। अन्याय और दुराचारी विदेशी शासक हर प्रकार से हिंदुस्तान का शोषण, उत्पीड़न उसकी भाषा, और सभ्यता संस्कृति का नाश करने पर अड़े हुए थे। भारतवासियों का आत्मोद्धार और अपनी अपनी खोई स्वतंत्रता प्राप्त करने का कोई भी उचित मार्ग नहीं दिखाई दे रहा था। उस समय इस धरा-धाम पर अदम्य में इच्छाशक्ति ,साहसी, कर्तव्यपरायण प्रेम के प्रतीक ‘दो’ महापुरुषों का जन्म हुआ। उसमें एक महापुरुष का नाम था, मोहनदास करमचंद गांधी उसी महापुरुष को कवि कलयुग रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘महात्मा’ कह कर संबोधित किया और अन्य भारतवासियों ने ‘बापू’ कहा। ऐसे महापुरुष को ‘महात्मा गांधी’ या ‘बापू’ के नाम से संबोधित किया गया।

उसी दिन एक साधारण व्यक्ति ने इस धरा-धाम पर जन्म लिया, जो ‘नेहरू के बाद कौन ?’ जैसे प्रश्न का उचित समाधान तो प्रस्तुत किया ही, मात्र अपने 18 सदियों जैसे लंबे शासक को गर्व एवं गौरव से भर दिया। उस महान युगपुरुष का जन्म 2 अक्टूबर 1940 ई . के दिन वाराणसी जिले के छोटे से गांव मुगलसराय में हुआ था । उनका पूरा नाम था लाल बहादुर शास्त्री इन्होंने अपने सारे सुख वैभव भरे जीवन का त्याग कर दिया था। मात्र 18 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। अपनी योग्यता से यह निरंतर आगे ही आगे बढ़ते गए, सभी की आंखों के तारे बन गए और शास्त्री जी का व्यक्तित्व आज भी यह स्मरण कराता है कि लगन एवं जनता के साथ कार्य करते रह कर कोई साधारण व्यक्ति भी कितना ऊंचा उठ सकता है।

महात्मा गांधी ने भी अपने सभी सुख वैभव भरे जीवन को ठुकरा कर और हर प्रकार के भौतिक प्रलोभनों से दूर रहकर न केवल भारत वर्ष की बल्कि समूचे विश्व की भूख-प्यास और परतंत्रता के कष्टों से त्रस्त जनता की लड़ाई सत्य,अहिंसा , प्रेम,भाईचारे और सत्याग्रह जैसे अस्त्र के बल पर लड़ कर उन्हें विजय दिलाई। फिर भी इस हिंदुस्तान में विदेशियों का कहर कम नहीं हुआ था। गांधी जी ने अपना अथक प्रयास रूपी मिशन नहीं छोड़ा। उनका सबसे बड़ा मिशन देश को आजाद कराना था। महात्मा गांधी के वैचारिक दर्शन की बीज एक पुस्तक है। जिनका नाम ‘हिंद स्वराज’ है। करीब एक सदी पहले लिखी गई है यह छोटी सी किताब अंतरराष्ट्रीय बाजारवाद के आगे घुटने टेकते सांप्रदायिक हिंसा और मूल्यहीनता से पीड़ित हमारे देश को आज एक नई राह दिखा सकती है। अगर इसी सिद्धांत का अनुसरण संपूर्ण भारतवासी करते हैं। तो अब तक हम कबके आजाद ही गए होते, परन्तु आज हिंसा ने संपूर्ण विश्व में अपनी जड़े फैला ली है। लोग अहिंसा को दरकिनार करने लगे हैं आज अहिंसा इस कदर बदनाम हो गई है कि यह कहना पड़ा-

“सियासत जब से मुल्क में जवान हुई ,
नींद अमन के पुजारियों की हराम हुई ।
हर तरफ गोलियों और बम के धमाके,
अहिंसा भारत में यारो बदनाम हुई।।”

देश को आजाद कराने के लिए सभी महापुरुषों ने तो संन्यास लिया था, परंतु यह कार्य उन्होंने संन्यास लेने के बजाय समाज में रहकर किया था। स्वयं सादगी से मात्र धोती-लंगोटी और वह भी अपने हाथों से सूत काटकर और बुनकर धारण कर और जीवन का अधिकांश भाग विदेशी साम्राज्यवादियों की जेलों की काल कोठरियों में बिताकर महात्मा गांधी ने भारत को आजाद कराया ही, साथ में ही मानवता का मार्ग भी प्रशस्त किया । यही कारण है कि विश्व के सभी स्वतंत्रता प्रेमी मानवता के इस पुजारी को अपना आदर्श मानते हैं । पिछले कुछ वर्षों से हिंसा बेलगाम हुई है। ऐसी बुराइयों को देखकर गांधी जी का कथन याद आता है “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है” अहिंसा रूपी सुगंध गांधी चिंतन दर्शन में ही नहीं, अनेक हर छोटे-बड़े काम में मिलती थी। गांधी जी का पूरा जीवन मानवता के लिए समर्पित था। गांधी जी ने यह कहा कि हिंसा का प्रतिकार हिंसा से नहीं हो सकता। असत्य- असत्य से पराजित नहीं हो सकता। हिंसा का पराभव अहिंसा से सत्य का असत्य से और अनैतिकता का नैतिकता से ही हो सकता है। अहिंसा के पुजारी इंसानियत के अग्रदूत महामानव गांधी जी के दिखाए मार्ग पर चलकर हम देश समाज और संपूर्ण मानव जाति का कल्याण कर सकते हैं । प्रत्येक वर्ष आकर गांधी जयंती हमें कलिकाल के उस महान कर्मयोगी का स्मरण ही नहीं कराती बल्कि हमें उनके जीवन दर्शन से प्रेरणा भी देती है ऐसे उदारमन वाले परम तपस्वी को कोटि-कोटि नमन।

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