पंडित जसराज के संगीत सफर का आगाज तीन साल की उम्र में ही हो गया था। उन दिनों उस्ताद अब्दुल करीम खान साहब का रिकॉर्ड निकला था पिया बिन नहीं आवत चैन..। उसमें एक सरगम थी। उसी सरगम को जसराज चलते फिरते हमेशा गाते थे। पिता जी अक्सर उसे गाने को कहते। आम तौर पर संगीत में की गई गलती पर गुरु नाराज होते हैं, लेकिन उनके पिता उनकी गलतियों पर नाराज नहीं होते थे।
पंडित जसराज के परिवार ने एक बयान में कहा, ”बहुत दुख के साथ हमें सूचित करना पड़ रहा है कि संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी का अमेरिका के न्यूजर्सी में अपने आवास पर आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।”
उन्होंने कहा, ”हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान कृष्ण स्वर्ग के द्वार पर उनका स्वागत करें जहां वह अपना पसंदीदा भजन ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ उन्हें समर्पित करें। हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “आपकी प्रार्थनाओं के लिए धन्यवाद। बापूजी जय हो।”
शास्त्रीय गायन के पुरोधा पंडित जसराज को पद्म विभूषण (2000) , पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975) जैसे सम्मान मिले। पिछले साल सितंबर में सौरमंडल में एक ग्रह का नाम उनके नाम पर रखा गया था और यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार बने थे।