करुणाशंकर उपाध्याय को हिंदी साहित्‍य भारती (अंतरराष्ट्रीय) गौरव- सम्मान

Karunashankar Upadhyay

त दिनों झांसी में आयोजित हिंदी साहित्‍य भारती (अंतरराष्ट्रीय) की द्वितीय केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दीक्षांत कार्यक्रम में प्रख्यात आलोचक और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय को हिंदी साहित्‍य भारती गौरव सम्‍मान से विभूषित किया गया। भारत सरकार के रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री डाॅ. अजय भट्ट, छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल डाॅ. शेखरदत्त और उत्तरप्रदेश के पूर्व शिक्षा व कृषि मंत्री तथा हिंदी साहित्‍य भारती के केंद्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. रवीन्‍द्रशुक्ल ने प्रो. उपाध्याय को उक्त सम्‍मान प्रदान किया। ध्यातव्य है कि हिंदी साहित्य भारती की शाखाएँ 35 देशों के साथ भारतवर्ष के हरेक प्रांत एवं अनेक जिलों में हैं। इस कारण यह विश्व की सबसे बडी साहित्‍यिक-सांस्कृतिक संस्था बन गई है।

जहां तक करुणाशंकर उपाध्याय के आलोचनात्मक लेखन का सवाल है तो गत वर्ष शीर्ष साहित्यकार चित्रामुद्गल ने डाॅ. उपाध्याय को आज का सबसे बड़ा आलोचक कहते हुए इन्हें आलोचकों का प्रतिमान कहा था। तदुपरांत हिंदी साहित्य भारती द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने इन्हें वर्तमान शती का आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डाॅ.अरविंद द्विवेदी ने उपाध्याय को अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा अंत: अनुशासनिक आलोचक कहा था। डाॅ. उपाध्याय की अब तक 20 मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकें और 12 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनके राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 400 के आस-पास आलेख व शोध-लेख प्रकाशित हुए हैं। इनके कुशल निर्देशन में अब तक 33 शोधार्थी पी.एच.डी. और 55 छात्र एम.फिल. कर चुके हैं। इसके पूर्व भी प्रोफेसर उपाध्याय को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक सम्मान-पुरस्कार मिल चुके हैं। डाॅ.उपाध्याय को कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान (2021) और हिंदुस्तानी प्रचार सभा का महात्मा गाँधी शिखर प्रतिभा सम्मान भी मिला है।आप वर्तमान दौर के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले आलोचक हैं। उपाध्याय की पुस्तकों के अनेक संस्करण इनकी आलोचकीय लोकप्रियता का स्वयंसिद्ध प्रमाण है।

दीक्षांत समारोह के पूर्व के सत्र में प्रोफेसर डाॅ.करुणाशंकर उपाध्‍याय (अंतरराष्टीय प्रभारी व उपाध्यक्ष हिंदी साहित्‍य भारती) ने निम्न आशय का प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि “आज दिनांक 28 अगस्त 2022 को हिंदी साहित्य भारती (अंतरराष्ट्रीय) केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से आजादी के अमृत महोत्सव के पूर्ण होने के अवसर पर भारत सरकार से यह मांग करती है कि वह संविधान में संशोधन करते हुए हिंदी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाए और अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रयोग को अनिवार्य बनाकर भारतवर्ष को भाषिक दासता से मुक्त कराए।” इसका अनुमोदन मुरलीधरन सेथुरमन (तमिलनाडु), डाॅ. दिलीप मेहरा (गुजरात), डाॅ. सुनीता मंडल (पश्चिम बंगाल), डाॅ. के.मालती (दिल्ली) और डाॅ. विनोद मिश्र (त्रिपुरा) ने किया। तदुपरांत देश- विदेश के उपस्थित साहित्‍यकारों ने इसे ॐ  के उच्चारण और करतल ध्वनि द्वारा पारित किया।

इसके पूर्व प्रथम दिवस बैठक का शुभारम्भ दीनदयाल सभागार में हुआ, जिसमें महामंडलेश्वर निरंजनी अखाडा स्वामी शास्वतानंद गिरि, पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी, पूर्व महामहिम राज्यपाल छत्तीसगढ़ डॉ. शेखर दत्त, राष्ट्रीय संयोजक (प्रज्ञा प्रवाह) संघ प्रचारक जे नन्द कुमार तथा हिंदी साहित्य भारती के केंद्रीय और अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र शुक्ल द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय बैठक का शुभारंभ हुआ। इस सत्र का संचालन डॉ रमा सिंह जी व अचला भूपेन्द्र ने किया। साथ ही, विभिन्न सत्रों में साहित्‍य, शिक्षा, संस्कृति और मीडिया के विविध आयामों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। इस दो दिवसीय आयोजन में देश-विदेश के250 से अधिक विद्वान और 500 से अधिक स्थानीय प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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