डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का आलोचनात्मक लेखन

बालाकोट
डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय
  • ममता यादव  ( शोधार्थी, जे.जे.टी.विश्वविद्यालय, झुंझनू, राजस्थान)
ममता यादव
ममता यादव, शोधार्थी

डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय समकालीन हिंदी आलोचना के सबसे बड़े शिखरों में से एक हैं। वे ख्यातिलब्ध आलोचक, सुचिंतित संपादक, बहुचर्चित युग द्रष्टा प्राध्यापक हैं। मैं यहाँ उनके जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विश्लेषण प्रस्तुत कर रही हूँ।

मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष के रूप में कार्यरत प्रसिद्ध साहित्यकार, सांस्कृतिक आलोचक एवं मार्गदर्शक डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय के पारिवारिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात किया जाय तो पता चलता है कि इनके पूर्वज पं. शिवलाल उपाध्याय थे। मध्यकालीन इतिहास के विद्वानों के एक अनुमान के अनुसार ९००-१५०० ई. के दौरान प्रारंभिक राजवंश दिलीपपुर राजा (वर्तमान में प्रतापगढ़ के बेलखरनाथ धाम क्षेत्र के आसपास) के राजा शीतला बख्श सिंह जो दिलीपपुर रियासत के राजा थे, जिनके महल में पं. शिवलाल उपाध्याय आधिकारिक ज्योतिषाचार्य के रूप में निवास करते थे और डॉ. उपाध्याय के दादा पं. रामकिशुन उपाध्याय आयुर्वेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में समादृत थे। उनके ज्ञान से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें राजवैद्य के रूप में नियुक्त किया था। डॉ. उपाध्याय के पिता पं. राममनोरथ उपाध्याय सुप्रसिद्ध रामायणी थे। ऐसे सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखनेवाली जीवनदायिनी धारा को अधिक शक्तिशाली और समृद्ध बनाने की भूमिका में उपाध्याय वंश की इस वंशावली में एक और माणिक्य रत्न डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म १५ अप्रैल १९६८ को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के घोरका तालुकदारी नामक गाँव में हुआ था। ऐसे महिमामंडित परिवार में सकारात्मक विचारों एवं उत्तम संस्कारों के कारण यह आरंभ से ही अत्यंत तेजस्वी एवं मेधावी छात्र थे। अत: इनकी पहली कक्षा के बाद सीधे तीसरी कक्षा में पदोन्नति कर दी गई। इनकी आरंभिक शिक्षा इनके गाँव के पास स्थित नाजियापुर प्रायमरी विद्यालय में हुई। तदुपरांत उसके पास ही स्थित मिडल स्कूल में आठवीं तक और बारहवीं तक की शिक्षा कालूराम इंटरमिडिएट कॉलेज शीतलागंज प्रतापगढ़ में संपन्न हुई। डॉ. उपाध्याय ने १९८६ में १२ वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत मुंबई महानगर की ओर रुख किया। यहाँ उन्होंने अंधेरी स्थित एम.वी.एंड.एल.यू. कॉलेज में बी.ए. १९८९ में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। बी.ए. के दौरान इन्होंने दो नाटक, दस कहानियाँ, नब्बे कविताएँ और साठ लेख लिखे। बी.ए. के दौरान ही इन्हे महाविद्यालयीन व अंतरमहाविद्यालयीन एवं राष्ट्रीय स्तर पर कुल सैंतालिस पुरस्कार मिले थे। बी.ए. के बाद डॉ. उपाध्याय अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से एम.ए. करना चाहते थे लेकिन उसी समय इनकी मुलाकात मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्कालीन प्रो. एवं अध्यक्ष डॉ. चंद्रकांत बांदिवड़ेकर से हुई। उन्होंने इनकी साहित्यिक क्षमता को देखते हुए, हिंदी साहित्य में एम.ए. करने के लिए प्रेरित किया। डॉ. बांदिवडेकर के परामर्श से करुणाशंकर उपाध्याय ने हिंदी विषय में १९९१ में प्रथम श्रेणी से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इनकी पहली नियुक्ति १४ फरवरी १९९२ को के.सी.महाविद्यालय, चर्चगेट मुंबई में हुई। इन्होंने जनवरी १९९३ में डॉ. चंद्रकांत बांदिवडेकर के मार्गदर्शन में ‘आधुनिक हिंदी कविता में काव्य चिंतन’ विषय पर पीएच.डी. हिंदी उपाधि हेतु मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अपना पंजीकरण करवाया। पीएच.डी. पूर्ण होने के उपरांत सन १९९७ से ही अतिथि प्राध्यापक के रूप में एम.ए. की कक्षाएँ लेते थे। वे १९९२ से २००१ तक के.सी. कॉलेज में कार्यरत रहे। उसके बाद इनकी नियुक्ति पुणे विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर पद पर हुई। तत्पश्चात दिसंबर २००३ में मुंबई विश्वविद्यालय में रीडर पद का कार्यभार संभाला । वे वर्तमान समय में मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं।

आलोचनात्मक लेखन के धनी डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय अपनी रचनाओं और नवीन साहित्यिक दृष्टि के कारण बहुचर्चित और प्रख्यात आलोचकों की श्रेणी में आते हैं। ये इनमें अंतर्दृष्टि और विश्वसंघष्टि संपन्न आलोचक हैं। नए से नए को सीखने की अटूट लगन है और हिंदी आलोचना के क्षेत्र में नया और मौलिक घटित करना चाहते हैं। इनके अध्ययन कापाट अत्यंत व्यापक है। इन्होने वैदिक काल से लेकर अब तक की भारतीय परंपरा, साहित्य, दर्शन, इतिहास तथा भारतीय चिंतानात्मकता का गहन अध्ययन किया है। दूसरी ओर होमर से लेकर उत्तर आधुनिकता तक पाश्चात्य साहित्य और काव्यशास्त्रीय चिंतन को भी आत्मसात किया है। फलत: इनकी आलोचना दृष्टि भारतवर्ष की गतिशील लोकोन्मुख परंपरा भारतीय साहित्य के श्रेष्ठतम और वरेण्य पक्षों तथा पूर्व और पश्चिम के द्वंद्व तथा अंतरावलंबन के सानुपातिक सामंजस्य से निर्मित हुई है। वे भारतीय एवं पाश्चात्य कविता तथा काव्यशास्त्र के अधिकारी विद्वान, भारतीय इतिहास, पुराण, परंपरा, धर्म, दर्शन, भाषा तथा संस्कृति के गहन अध्येयता, राजनीतिक, कूटनीतिज्ञ तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों में विशेषज्ञ हैं। वे देखने में जितने सरल, निरछल, उदार और विनम्र स्वभाव के धनी हैं, उनकी अभिव्यक्ति उतनी ही सबल तथा प्रभावी हैं। वे अपने लेखन में अत्यंत स्पष्ट एवं प्रखर हैं।

डॉ.उपाध्याय ने हिंदी साहित्य के हर एक युग पर लेखनी चलाई है। इन्होंने भारत और भारतीय साहित्य के लिए शिव के परिवार में विद्यमान विरुद्धों का सामंजस्य, शिवत्व भाव तथा श्रेय एवं प्रेय के प्रतिष्ठा को आदर्श प्रतिमान माना हैं। चूकिं हरेक युग परस्पर विरोधी तत्त्वों तथा प्रवृत्तियों को लेकर चलता है। अत: उसकी अंतरवृत्तियों का उद्घाटन इसी रूप में संभव है। इनकी आलोचना दृष्टि, वेद उपनिषद्, वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भारवि, भवभूति, जायसी, तुलसी, जयशंकर प्रसाद, निराला, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, अज्ञेय, मुक्तिबोध, विं.दा.करंदीकर, कुंवर नारायण, चित्रा मुद्गल जैसे भारतीय रचनाओं तथा होमर, अरस्तू, लोंजाइनस, मैथ्यूआर्नल्ड, इलियट, रोलां बार्थ एवं जॉक देरिदा जैसे पश्चिमी साहित्य चिंतकों के सार-संश्लेषण से निर्मित हुई हैं। फलत: वह अत्यंत प्रशस्त एवं गहन है। इनका मानना है कि हर रचना का विश्लेषण उसके युगीन मूल्यों तथा संदर्भों की सापेक्षता में करना चाहिए। साथ ही, उसमें निहित कालजयी तत्त्वों के सम्यक निर्वचन द्वारा ही उसके महत्त्व का निर्धारण संभव हैं। इनका स्पष्ट कथन है कि आलोचक को आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तरह बहुपठित और बहुश्रुत होना चाहिए। उसे लगातार ज्ञान-विज्ञान और साहित्य की नवीनतम उपलब्धियों से अनुप्राणित होना चाहिए। इनकी आलोचना वैचारिक एवं सैंद्धातिक धरातल पर ग्रहण और त्याग के विवेक पर आधारित है। वह कृति के वस्तुनिष्ठ एवं पाठ केंद्रित विश्लेषण के प्रतिमान पर आगे बढ़ती है। आप हिंदी आलोचना को विश्वस्तरीय विमर्श का हिस्सा बनाने के लिए संकल्पित हैं जिससे हिंदी तथा रचनात्मक भारतीय साहित्य के साथ न्याय हो सके। उसे विश्वस्तरीय विमर्श के केंद्र में लाया जा सके। उन्होंने अपनी रचनाओं से साहित्य एवं समाज के उन पहलुओं को दर्शाया है जो अब तक अछूते थे। अपने लेखन के द्वारा उन्होंने साहित्य जगत को बहुमूल्य आलोचनात्मक कृतियाँ अर्पित की हैं। वे एक सम्मोहनकारी वक्ता हैं। इसलिए संगोष्ठियों एवं कार्यक्रमों में उनकी भारी माँग है।

ध्यातव्य हैं कि डॉ. उपाध्याय की अब तक प्रकाशित मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकों में ‘सर्जना की परख’ (१९९३), आधुनिक हिंदी कविता में काव्यचिंतन (१९९९), मध्यकालीन काव्य : चिंतन और संवेदना (२००२), पाश्चात्य काव्य चिंतन (२००३), हिंदी कथा साहित्य का पुनर्पाठ (२००८), आधुनिक कविता का पुनर्पाठ (२००८), विविधा(२००८), हिंदी का विश्वसंदर्भ(२००८), हिंदी साहित्य : मूल्यांकन और मूल्यांकन (२०१२), सृजन के अनछुए संदर्भ (२०१५), साहित्य और संस्कृति के सरोकार (२०१६), पाश्चात्य काव्य चिंतन : अभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक (२०१८) और मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ (२०२०) का समावेश हैं । इसके अलावा इन्होने युवकभारती (२००६), शोभनाथ यादव की सौंदर्यधर्मी कविताएँ (२००७), आंवा विमर्श (२०१०), सृजन और सरोकार (२०११), साहित्य साधक (२०१२), वक्रतुंड: मिथक की समकालीनता (२०१३), ब्लैकहोल विमर्श (२०१४), गुरु जाम्भोजी की वाणी में लोकमंगल (२०१७), सृजन और संदर्भ (२०१८), अप्रतिम भारत (२०१८), उद्भ्रांत का काव्य : बहुआयामी विमर्श (२०१९), गोरखबानी(२०२०) तथा चित्रा मुद्गल संचयन (२०२०) का संपादन भी किया है। डॉ. उपाध्याय ने तीन विश्वकोशों में सहलेखन और ८ पुस्तकों का सह-संपादन भी किया है। उन्होंने ५० से अधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भूमिकाएँ भी लिखी है। इनके अब तक विविध पत्र-पत्रिकाओं में ३८० से अधिक आलेख/शोध लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. उपाध्याय भारतीय एवं पाश्चात्य कविता और काव्यशास्त्र के अधिकारी विद्वान हैं, इनके मार्गदर्शन में अब तक ३२ शोधार्थी पीएच.डी. तथा ५२ छात्र एम.फिल. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। डॉ. उपाध्याय को साहित्यिक एवं आलोचनात्मक अवदान के लिए अब तक दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार एवं सम्मान भी मिल चुके हैं। जिसमें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी का बाबूराव विष्णु पराड़कर पुरस्कार, हिंदी सेवी सम्मान, पं. दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान, आशीर्वाद राजभाषा सम्मान, विश्व हिंदी सेवा सम्मान, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान, शिक्षक भारती गौरव सम्मान, मुंबई विश्वविद्यालय का सर्वोत्तम शिक्षक सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग का सम्मेलन सम्मान, जीवंती फाउंडेशन का साहित्य गौरव सम्मान, भारती गौरव सम्मान, व्यंग्य यात्रा सम्मान, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा समिति सम्मान, मैथिल कोकिल विद्यापति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का पद्मश्री अनंत गोपाल शेवड़े सम्मान, प्रो. नीलू गुप्ता सम्मान, टोरंटो इत्यादि का समावेश है। डॉ. उपाध्याय साहित्य अकादेमी, भारत सरकार, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, कमला गोयनका फाउंडेशन समेत दर्जनों संस्थानों के पुरस्कार चयन समिति के सदस्य हैं। वे भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, देश के विविध विश्वविद्यालयों, संघ लोक सेवा आयोग, विविध प्रांतों के राज्य लोक सेवा आयोग, महारत्न कंपनियों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के विविध बैंकों की अनेक महत्त्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी हैं। वे  आइ.आइ.एम.टी. विश्वविद्यालय, मेरठ के विद्या परिषद के सदस्य भी हैं।

डॉ. उपाध्याय भारतीय परंपरा के सर्वोत्तम और सारतत्वों की गहरी समझ द्वारा उसका पुनर्पाठ करते हैं। इन्होनें आलोचना के क्षेत्र में व्याप्त मित्रवाद तथा शत्रुवाद का विरोध किया है। वे विश्व मंगल अथवा सबके कल्याण की भावना से ओत-प्रोत, प्रकृति एवं पर्यावरण की चिन्ता प्रकारांतर से व्यापक मनुष्यता की चिन्ता, जिसमें परम्परागत साहित्यिक – सांस्कृतिक प्रतिमानों, बदलती जीवन स्थितियों राजनीतिक विकृतियों, सामाजिक सोच को बदलने वाले सूत्रों नवसाम्राज्यवादी खतरों तथा संघर्षशील मनुष्यता को खुली आँखों से देखने-समझने एंव विश्लेषित करने का सराहनीय उपक्रम प्रस्तुत करते हैं। इनका मानना है कि हमें अपनी इतिहास दृष्टि, आलोचना दृष्टि तथा विश्व दृष्टि का विकास भारतीय स्त्रोतों से करना चाहिए। वे हिन्दी के अत्यंत सक्रिय योद्धा भी हैं। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘हिन्दी का विश्व संदर्भ में’ विश्व भर में हिन्दी बोलने वालों की अद्यतन जानकारी दी है। इसमें विश्व के जिन देशों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है तथा जिन विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थायों में हिन्दी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उनकी भी जानकारी दी गई है । इसके अतिरिक्त विदेशों में जो रचनाकार हिन्दी में रचना कर रहे हैं, और जो पत्र-पत्रिकाएँ हिन्दी में प्रकाशित हो रही है, उन तमाम चीजों की जानकारी भी यहाँ एकत्र मिल जाती है। इन्होने इस पुस्तक में यह भी सिद्ध किया है कि हिन्दी ६४ करोड़ लोगों की मातृभाषा, २४ करोड़ लोगों की दूसरी भाषा और ४२ करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी, पांचवी अथवा विदेशी भाषा है। इस आधार पर वह संपूर्ण विश्व में १३० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा प्रयुक्त होती है। इनकी पुस्तक के आँकड़ों को आधार बनाकर विश्व के सबसे बड़े दैनिक समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ ने १० जनवरी २०१७ को उसे अपना मुख्य समाचार बनाया था, जिसे उसके सारे संस्करणों में स्थान मिला था। वे हिंदी के संयुक्त परिवार की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत हैं और बोलियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अलग से अकादमी बनाने की मांग कर रहे हैं।

डॉ. उपाध्याय भारतीयता के निर्माणक तत्त्वों के प्रति प्रतिबद्ध अंतरराष्ट्रीय तथा प्रतिरक्षा मामलों के विशेषज्ञ, हिंदी को उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय की भाषा बनवाने के लिए कृतसंकल्प हैं। उसे संयुक्त राष्ट्रसंघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए भी प्रयासरत हैं। इस दिशा में संबद्ध पक्षों को लगातार लिख रहे हैं। इसके अलावा वे आर्थिक, विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ के रूप में लगातार चैनलों पर आमंत्रित किये जाते हैं तथा अख़बारों में लेखन करते रहते हैं। वे विश्व मंगल अथवा सबके कल्याण की भावना से ओत-प्रोत, विश्वचिंता, प्रासंगिक जीवनानुभवों, भाषिक प्रयोग, वैकल्पिक सजगता, जनधर्मिता तथा बहुस्तरीय निर्मिति, समकालीन समाज के धड़कन की सही पहचान समसामयिक समस्याओं की गहरी परीक्षा और कठिन समय तथा जटिल व्यवस्था में परिवर्तन की जो संभावनाएँ खोजी जा सकती हैं, उन तक पहुँचने की सफल चेष्टा करते हैं। वे एक स्पष्ट एवं निर्भीक वक्ता हैं। वे शब्दों के चयन में अतिशय सतर्क, इनकी भाषा अपनी अभिव्यंजना में अत्यधिक सटीक, सधी हुई, खरी और अर्थपूर्ण हैं। भाषिक प्रयोग एवं शब्द विन्यास के स्तर पर इनकी भाषा अत्याधुनिक और विषयानुकूल होती है।

वे वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती संस्था के अंतरराष्ट्रीय महासचिव भी हैं और हिंदी भाषा के वैश्विक प्रसार प्रचार में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। डॉ. उपाध्याय हिंदी के इक्कीसवीं सदी के सबसे ऊर्जावान और संभावनावान आलोचकों में से हैं जो भारत के साथ-साथ विदेशों में लिखे जा रहे साहित्य के मूल्यांकन तथा हिंदी साहित्य के इतिहास में उसे यथोचित स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। वे सरल स्वभाव, मधुर भाषी, सबके प्रति स्नेहिल एवं सौम्य, कोमल ह्रदय और अत्यंत विनम्र हैं । इन्हीं गुणों के कारण इनके मित्रों, परिचितों, साहित्यप्रेमियों की लंबी सूची है, जिनसे उनका व्यवहार स्नेहिल और सौहार्दपूर्ण रहता है। वे निरछल भाव से हिंदी की सेवा कर रहे हैं। डॉ. उपाध्याय सही अर्थों में एक कर्मयोगी हैं।

डॉ. उपाध्याय का आलोचनात्मक लेखन विषयगत व्याप्ति, सह्रदय पाठक की सहजता, गंभीरता, सुचिंतित एवं संयत दृष्टि तथा कुछ नया देने की तीव्र लालसा से परिपूर्ण है। वे इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों, बदलती तकनीक, अभिव्यक्ति के बदलते रूपों के प्रति निरंतर सजग हैं। अपने चिंतन, अध्ययन, व्यापक दृष्टिकोण, मानवीय सरोकार तथा अनवरत साधना के बल पर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय हिंदी और भारतीय भाषा-साहित्य के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे उन्हें सदैव स्वस्थ रखें, दीर्घायु प्रदान करें और साहित्य, समाज, शिक्षा, संस्कृति तथा राष्ट्र एवं विश्व के तमाम क्षेत्रों में उनका सार्थक हस्तक्षेप बना रहे।

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