एटम बम सब धरा रह गया (कविता) – राजेश कुमार विश्वकर्मा

प्रतीकात्मक चित्र

एटम बम सब धरा रह गया,
कोरोना से डरा रह गया,
विश्व की सारी शक्ति फेल,
यह कैसा प्रकृति का खेल,
बात बात पर लड़नेवाले,
रक्तपात से खेलने वाले,
बेबस रहकर खड़ा रह गया
कोरोना से डरा रह गया।

मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, सब,
औलिया और पुजारी ये सब,
रक्तबीज को बोने वाले,
धरम की शिक्षा देने वाले,
किया कराया धरा रह गया,
कोरोना से डरा रहा गया।

अभी वक्त है जागो, जागो,
शैतानी को त्यागो त्यागो,
मानवता वादी जैसे गुण,
मेरा कहना, सब मिल साधो,
ऊच नीच, के भेदभाव में,
तू तो, ऐसे पडा़ रह गया,
कोरोना से डरा रह गया।

विश्व को पल में रौदने वाले,
प्रकृति के सब खेल निराले,
जैसी करनी वैसी भरनी,
मूक बने हैं सभी तिकड़मी,
बेबस औ लाचार हुए सब,
सारा तिकड़म धरा रह गया,
एटमबम सब धरा रह गया,
कोरोना से डरा रह गया।

● राजेश कुमार विश्वकर्मा
    हर्षपुर, मानधाता, प्रतापगढ़ (उ.प्र.)

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