दुख, अभाव में साथ दे, हर संकट में साथ।
टूटे सीस पहाड़ जो, कभी न छोड़े हाथ।। 1।।
बेटी-ब्याह, अकाल मे, बाढ़ और तूफान।
मृत्यु, शोक-संतप्त कुल, साथी घाट-मसान।। 2।।
है सूरज की रोशनी, शीतलता में चाँद।
पुतली दृग-तारा बने, सुख-सुकून-बुनियाद।। 3।।
दिल में घर कर जो रहे, प्यारा-न्यारा मित्र।
बल पूर्वक कल्याण ही करता मौन, विचित्र।। 4।।
कन्धा कन्धे को मिले, ज्यों अन्धे को राह।
ऐसे प्यारे दोस्त की भला न किसको चाह।। 5।।
‘सखा’ निराला धर्म है, खान-पान हो संग।
याराना में प्यार का निखरे सच्चा रंग।। 6।।
याराना की हार में है दोनों की हार।
दिल से दिल में भेद क्या? नाव वही पतवार।। 7।।
दिया एक उम्मीद का, बाती दिल-विश्वास।
पूर्व जन्म के पुण्य से जगे खुदा-एहसास।। 8।।
कभी न सौदा प्रेम का, मीत करे क़ुरबान।
मौत मिले या ज़िन्दगी, इज्ज़त करे ज़हान।। 9।।
गुण-ग्राही, संयम-धनी, गुण का करे प्रकाश।
ढँके दोष मनमीत के, छके हृदय-उल्लास।। 10।।
वही सदा सन्मित्र है, करे न ईर्ष्या-बैर।
सदा मनाये ख़ैरियत, पाये ख़ुद भी ख़ैर।। 11।।
दोस्त ख़ुदा है जाविदाँ, रहे सदा जो नेक।
हो केशव-सा सारथी, साथी बुद्धि-विवेक।। 12।।
बने द्वारिकाधीश, पर भूले नहीं विपन्न।
मिले सुदामा दीन जो, अंग लगे अवसन्न।। 13।।
मित्र-दीनता पर दुखी, मिलने का उल्लास।
जैसे आँसू में घुला-मिला खिला मधुहास।। 14।।
मित्र मिले—सौभाग्य यह, कटे सकल संताप।
पुण्य उदित हो जाय सब, मिटे जनम के पाप।। 15।।
सख्य भाव को जान लो-बैठ एक ही डार।
निर्विकार इक द्विज लखे, चखे एक रसदार।। 16।।
दोनों में लय एक हो, एक रंग इक चाल।
जीवन-जग यह जीत लो, फैले यश दिक्काल।। 17।।
निर्बल हो, असहाय जो, दीन-पराजितप्राण।
सदियों का संताप सह, साहस-धैर्य-अजान।। 18।।
जिसके सपने मिट चले, हो जो सदा निराश।
जो भूखा हो प्यार का, जिसे प्यार की प्यास।। 19।।
जो उदास, संत्रस्त नित् दहे जगत् के ज्वाल।
तिरस्कार-अपमान-विष पिये, सहे खल-व्याल।। 20।।
जो सच्चे, पूतात्म उर, मिला न निश्छल प्यार।
उनके आँसू गीत हैं, गीत सजल ‘नीहार’।। 21।।
रचनाकाल : 2 अगस्त, 2021
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव(तृतीय हिल्लोल)अमलदार नीहार]
परिचय
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- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित) । इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल ११ पुस्तकें प्रकाशित, २ पुस्तकें अक्टूबर-नवम्बर २०१९ तक प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
सम्प्रति :
अध्यक्ष हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन महाविद्यालय, बलिया(उ.प्र.)
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर