29 साल बाद योगी के गढ़ में कैसे हार गई बीजेपी?

कुलदीप विश्वकर्मा | NavprabhatTimes.com

जौनपुर: गोरखपुर उपचुनाव के नतीजों ने यूपी की सियासत में ये बड़ा उलटफेर किया है। बीजेपी की इस करारी हार के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बीजेपी की यह स्थिति कैसे हुई? 29 साल बाद गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का किला ढह गया है. योगी आदित्यनाथ लगातार 5 बार गोरखपुर से सांसद का चुनाव जीतते रहे. बीजेपी की इस करारी हार के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बीजेपी की यह स्थिति कैसे हुई?

समाजवादी पार्टी ने निषाद समाज के प्रवीण निषाद को उम्मीदवार बनाया. गोरखपुर में निषाद समाज के सबसे ज्यादा 3.5 लाख वोटर हैं. यादव और दलितों की संख्या 2 लाख है. गोरखपुर में ब्राह्मणों की संख्या 1.5 लाख है. यह पहले से तय था कि निषाद को यादव, मुस्लिम और दलित वोटर का साथ मिलने पर बड़ा उलटफेर हो सकता है.

गोरखपुर के शहरी इलाकों में कम वोटिंग हुई. गोरखपुर में कुल 47.45% वोट पड़ा. जिसमें कैम्पियरगंज में 49.43%, पिपराईच में 52.24% गोरखपुर ग्रामीण में 47.74%, गोरखपुर शहर में 37.36% और सहजनवा में 50.07% मतदान हुआ. इसका मतलब गोरखपुर शहरी वोटर योगी को वोट देने के लिए घरों से निकला ही नहीं. गोरखपुर में बीजेपी की हार की मुख्य वजह सपा और बसपा का गठबंधन भी रहा. मायावती ने अखिलेश यादव को समर्थन देने हुए अपना प्रत्याशी ही नहीं उतरा. इसका असर भी दिखा, अखिलेश यादव जीत का गुलदस्ता देने मायावती के घर भी गए. दोनों के बीच करीब 45 मिनट मुलाकात चली.

गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ पांच बार लगातार इस सीट से सांसद रहे हैं. उनसे पहले महंत अवैद्यनाथ भी इस सीट से लोकसभा जा चुके हैं. ये दोनों ही लोग गोरक्षनाथ पीठ से जुड़े रहे. इस उपचुनाव में बीजेपी ने पहली बार गोरक्षपीठ से बाहर के व्यक्ति को मैदान में उतारा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक गोरखनाथ मंदिर से प्रत्याशी ना होने से हिन्दू वोटरों का कुछ हद तक मन बदला. इस वजह से बीजेपी के कट्टर समर्थक बूथ तक भी नहीं पहुंचे. आदित्यनाथ से पहले गोरक्षनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ 1970 में निर्दलीय सांसद बने 1989 में अवैद्यनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते. इसके बाद 1991 और 1996 में बीजेपी के टिकट पर अवैद्यनाथ ने लोकसभा का चुनाव जीता. 1998 से 2014 तक 5 बार लगातार योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से जीतते रहे.

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