हिकीकोमोरी शब्द का उपयोग जापान में उन लोगों के लिए किया गया था, जो लोग 90 के दशक में अर्थव्यवस्था का बुलबुला फूटने पर बेरोजगारी के शिकार हो गए और मानसिक रुप से समाज और व्यवस्था से निराश होकर अपने पैरेन्ट्स के पेंशन पर निर्भर रहने लगे। इन लोगों ने रोजगार की तलाश में अपना पैतृक घर नहीं छोड़ा। ये लोग अंतर्मुखी बनकर एकांत जीवन जीते थे और टि.व्ही. देखने में समय बिताते थे। ये लोग छोटी-छोटी बातों पर भी हिंसक हो जाते और मानसिक बिमारियों का इलाज करने वाले डाक्टरों से भी भिड़ जाते थे। जापान में तकनीकी विकास और रोबोट से काम करवाने की प्रवृत्ति बढ़ने से क्रमशः रोजगार के अवसर कम होते चले गए। इससे निराश होकर स्कूल छोड़ने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी। भारत में इस दौर में पी.व्ही. नरसिंहाराव की सरकार थी। उन्होंने देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति को अपनाया। उनकी ही नितियों पर आगे आने वाले सरकारों ने भी निजीकरण पर बल दिया। उनके नीति का सुखद दौर डाक्टर मनमोहन सिंह के सरकार के दौर में देखने को मिला। उस समय जबकि अमेरिका की लेमन ब्रदर्स सहित कई कंपनियाँ दिवालिया हो गई और अमेरिका सहित पूरी दुनिया मंदी से जूझ रही थी, उस समय भारत के युवाओं में उज्वल भविष्य और विकास के लिए नई उमंग का संचार हो रहा था। इसी दौर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने अपने एक भाषण में कहा था कि “भारत के लोग मिठाई खाने लगे हैं इसलिए पूरी दुनिया में मंदी आ गई हैं।”
2012 के बाद भारतीय रुपये के कमज़ोर होने से महंगाई में वृद्धि होने लगी और भारत की अर्थव्यवस्था का बुलबुला फूटने लगा। देश में भीषण बेरोजगारी बढ़ने लगी। विपक्ष ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इसे मुद्दा बनाया और जनता से काफी लोकलुभावन वादे किए। इससे जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए एनडीए गठबंधन को बहुमत दिया। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। लेकिन उनकी सरकार के कामों से भी जनता को निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने कुछ समूहों के बीच ही सरकारी संपत्ति का निजीकरण करना तेज कर दिया। उनके नोटबंदी और लाकडाउन जैसे नासमझी वाले फैसलों ने भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया। देश में भीषण बेरोजगारी और भविष्य से निराश होकर भारत की शिक्षित कुशल युवा पीढ़ी आज हिकीकोमोरी बनती जा रही है और भारत की सरकार तरह-तरह स्टंट से युवाओं को बरगलाने में लगी हुई हैं। गौरतलब है कि जापान की जो युवा जनसंख्या 90 के दशक से हिकीकोमोरी बन गई थी, उसका जापान की अर्थव्यवस्था के विकास में कोई योगदान नहीं रहा और उसकी कार्यक्षमता पूरी तरह से वेस्टेज हो गई। आज वह जनसंख्या अविवाहित रहकर 50 के उम्र को पार कर चुकी है और जापान में जनसंख्या अनुपात में असंतुलन आ गया है, युवाओं की अपेक्षा बूढ़ों की संख्या बढ़ गई है, आज भारत में समाज और परिवार से निराश होकर बढ़ती हुई युवा हिकीकोमोरी बेहद चिंता का विषय है।
- डॉ. पंकज पांडेय (विजिटिंग सहायक प्रोफेसर, व्ही.पी.एम.आर.जे. शाह महाविद्यालय, मुलुंड (पू.), मुंबई)
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