जयशंकर प्रसाद : महानता का आयाम ग्रंथ महाकवि जयशंकर प्रसाद को विश्व-स्तर पर प्रतिष्ठित करने वाला ग्रंथ है। इसमें आलोचक प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने न केवल गीता के 18 अध्याय की तरह प्रसाद की महानता के 18 प्रतिमान बनाए हैं अपितु विश्व के 15 सबसे बड़े महाकवियों के साथ उनकी तुलना द्वारा आलोचना का ऐसा मानक प्रस्तुत किया है जो वर्तमान दौर के लिए अनुकरणीय है। भविष्य में जब भी प्रसाद साहित्य की चर्चा होगी यह ग्रंथ एक अनुकरणीय मानक के रूप में लंबे समय तक दिशा-निर्देश करता रहेगा – यह बात महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउण्डेशन एवं हंसराज कॉलेज द्वारा परिचर्चा में प्रोफेसर आनंदप्रकाश त्रिपाठी सागर विश्वविद्यालय ने कही।ध्यातव्य है कि डाॅ.उपाध्याय की हाल ही में राजकमल प्रकाशन समूह के राधाकृष्ण प्रकाशन से ‘जयशंकर प्रसाद : महानता के आयाम’ नामक यह ग्रंथ प्रकाशित हुआ है। इस कार्यक्रम के प्रो. पूरनचंद टंडन, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि यह ग्रंथ देखकर एक सुखद अनुभूति होती है। इसमें प्रसाद के सर्जनात्मक- आलोचनात्मक व्यक्तित्व का मूल्यांकन इतने व्यापक फलक पर किया गया है कि मैं सोचता हूँ कि ऐसा ग्रंथ हमारे अध्ययन के समय क्यों नहीं आया था। प्रोफेसर उपाध्याय ने इस ग्रंथ के माध्यम से न केवल प्रसाद और उनके साहित्य के संदर्भ में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण किया है, अपितु उन्हें पढ़ने की एक नवीन दृष्टि भी दी है।
गगनांचल के सम्पादक डॉ. आशीष कंधवे ने कहा कि यह ग्रंथ एक नई दृष्टि और नई स्थापनाओं के साथ यथार्थ के धरातल पर जयशंकर प्रसाद को पुन: आविष्कृत करने का गंभीर प्रयास है। इन्होंने विश्व के 15 सबसे बड़े महाकवियों के साथ प्रसाद की तुलना द्वारा एक बड़ा कार्य किया है। उन्होंने कहा कि इस किताब के माध्यम से वह सभी पक्ष अनावृत होंगे जिनसे अभी तक प्रसाद के विषय में हिन्दी जगत अनभिज्ञ था। प्रोफेसर लालचंद ने कहा कि यह एक विलक्षण आलोचना कृति है जो सर्वथा नए संदर्भ में प्रसाद साहित्य की गंभीर मीमांसा करती है। इन्होंने इस ग्रंथ की भाषा-शैली की आचार्य रामचंद्र शुक्ल से तुलना करते हुए कहा कि प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय के रूप में 21 वीं शती का आचार्य रामचंद्र शुक्ल आ गया है। इसमें मुक्तिबोध को प्रसाद परंपरा का कवि- आलोचक सिद्ध करके एक ऐतिहासिक कार्य किया है। यहां उपाध्याय ने प्रसाद का महाकाव्य ‘कामायनी’ के माध्यम से उनके काव्य की विशालता एवं व्यापकता पर प्रकाश डाला है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर के निदेशक और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो.श्रीप्रकाश सिंह ने प्रसाद की कहानी ‘पुरस्कार’ के माध्यम से उनके चिंतन की उदात्त पर विचार करते हुए कहा कि डाॅ. उपाध्याय ने एक गहरी अंतर्दृष्टि और भारत-बोध के साथ इसे लिखा है। प्रणय कुमार ने प्रसाद के साहित्य को न केवल उस वक्त का साहित्य माना, बल्कि उनके अनुसार प्रसाद का साहित्य वर्तमान और भविष्य का भी साहित्य है। वह हमेशा प्रासंगिक और कालजयी है। इस ग्रंथ द्वारा लेखक ने प्रसाद के अस्मिता-बोध एवं भारत- बोध की बड़ी गंभीरता के साथ रेखांकित किया है।
अपना लेखकीय वक्तव्य देते हुए प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने तीन दशक के अथक परिश्रम के बाद तैयार इस पुस्तक को लिखने में चुनौतियों के विषय में तो बताया ही साथ ही प्रसाद से जुड़ी अनेक ऐसी बातें भी बताईं जिनसे साहित्य जगत अनजान रहा है। इन्होंने कहा कि प्रसाद अंतर्दृष्टि और विश्वसंदृष्टि सम्पन्न रचनाकार हैं जो न केवल भारतवर्ष की गतिशील लोकोन्मुख चेतना का पुन: नवीकरण करते हैं, अपितु अपने समय, समाज, राष्ट् और मनुष्यता के प्रति अत्यंत विवेकपूर्ण संकेत भी करते हैं। इन्हें उदात्त जीवन-बोध, भेदक-दृष्टि और विराट भारत-बोध द्वारा ही समझा जा सकता है। ये सच्चे अर्थों में अखिल भारतीय विषयवस्तु का संश्लेषण करने वाले सर्जक है जो अपने निजी जीवन और विश्वजीवन को एकाकार कर देते हैं।
अपने प्रकाशकीय वक्तव्य में आमोद महेश्वरी ने इस पुस्तक के प्रकाशन को जयशंकर प्रसाद के साहित्य को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के पहले कदम के रूप में रखा। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा- मंत्री और प्रख्यात कवि रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि डाॅ.उपाध्याय ने भूमिका में लिखा है – “डब्ल्यू. बी.यीट्स ने भारतीय ज्ञान एवं अनुभव परंपरा को बुझती हुई ज्योति कहा था, जिसे प्रसाद ने अपने मन पर ले लिया था। प्रसाद के संपूर्ण में इस बुझती हुई ज्योति को बनाए रखने का एक गंभीर प्रयास हुआ है, जो भारतीय ज्ञान- परंपरा को समझने के लिए आवश्यक है।” इस दृष्टि इस ग्रंथ की अनुगूंज दूर तक सुनी जाएगी। मैं हिंदी साहित्य भारती की ओर से भी इस पर परिचर्चा आयोजित करूंगा।
हंसराज कॉलेज की प्राचार्य डाॅ. रमा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के साथ-साथ उपस्थित अतिथियों का स्मृति- चिह्न और अंग-वस्त्र देकर स्वागत किया। प्रोफेसर दर्शन पांडेय ने कार्यक्रम का अत्यंत कुशल संचालन किया और कविता प्रसाद ने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया। इस कार्यक्रम में विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ.रामेश्वर मिश्र, महाकवि जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री कविता प्रसाद समेत सैकड़ों की संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, शोधार्थी और छात्र मौजूद थे।