शैलेश कुमार सिंह | NavprabhatTimes.com
जनवादी लेखक संघ मुंबई द्वारा सोमवार, दिनांक 31 जुलाई को प्रेमचंद की जयंती का कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उनकी जयंती को मुंबई जलेस ने बड़े खास अंदाज में मनाया। कार्यक्रम को मीरा रोड में आयोजित किया गया। मुंबई शहर के रंग कलाकारों ने उनकी तीन कहानियों का नाट्य फार्म में भाव प्रवण पाठ किया।
“दरोगा” नामक (हास्य रस से भरपूर) कहानी का पाठ अभिनेता प्रद्युम्न शर्मा ने (जिनका रंग कर्म दिल्ली से मुंबई तक फैला है ) किया। दूसरी रचना महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की “प्रेमचंद के फटे जूते”का प्रभाव शाली पाठ नाट्य व टेलीविजन अभिनेता अजय रोहिला ने किया। परसाई जी की इस मार्मिक रचना को लोगों ने खूब पसंद किया। परसाई ने अपने लेख में प्रेमचन्द की प्रतिबद्धता व आज़ के लेखकों के अवसरवादी ढोंग को अपने खास अंदाज में व्यक्त किया है। अपनी परंपरा के लेखक को कैसे याद किया जाय ,यह इस लेख में बयाँ होता है।
प्रेमचंद की दूसरी कहानी “बालक” का पाठ मुंबई ‘इप्टा’के पूर्व सचिव व नाट्यकर्मी ,नाटककार व कवि डा. रमेश राजहंस ने किया। ध्यातव्य हो कि डा.रमेश राजहंस ने इप्टा के लिए कई नाटकों का निर्देशन किया है। अलका के बाल-बच्चे, भीष्म साहनी का कबिरा खड़ा बज़ार में आदि बालक कहानी प्रेमचंद की कम चर्चित पर श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। डा. राजहंस ने अपने पाठ से कहानी के कई अव्यक्त अंडरकरंट भाव को अपनी प्रभावी भाव भंगिमा से जीवन्त खड़ा कर दिया। श्रोता मंत्रमुंग्ध से हो गए। डा. राजहंस के बाद हिंदी -उर्दू के युवा रचनाकार जनाब मुख्तार खान ने प्रेमचंद के मुस्लिम चरित्रों पर आधारित रचनाओं जिनमें नाटक कर्बला तथा कहानी नबी का न्याय, , पंच-परमेश्वर , ईदगाह, आदि का परिचय देते हुए क्रीटीक तप्सरा प्रस्तुत किया। मुख्तार ने कुछ लगभग अलक्षित -सी कहानियों का जिक्र कर श्रोताओं का ध्यान खींचा। मुख्तार के ज़रुरी तफ्सरे के बाद छायाकार व डाकूमैंटरी फिल्म निर्माता, निर्देशक रविशेखर ने प्रेमचंद की पहली रचना का मज़ेदार पाठ किया। उन्होंने रचना के ह्यूमर तथा ओरिजनल फार्म को सटीक प्रस्तुत किया।
रवि शेखर के बाद शैलेश सिंह का प्रेम चंद की प्रासंगिकता पर एक संक्षिप्त वक्तव्य हुआ। उन्होने कहा, प्रेमचंद कालीन सामाज के यथार्थ का और भयानक विस्तार हुआ है। आज़ादी के बाद स्थितियां बेहतर होनी चाहिए थीं, पर हुआ उल्टा। विकास के नाम पर किसानों व मजदूरों का विनाश हो रहा है। ब्राह्मण वादी शक्तियां आज़ शिथिल होने के बजाय और आक्रामक हुई हैं। साम्प्रदायिकता और भयानक रूप में समाज को विभाजित कर रही है। सामासिक संस्कृति का अस्तित्व खतरे में है। इन तमाम कांट्राडिक्शन के बावजूद रास्ता भी हमें प्रेमचंद दिखाते हैं । किसान, दलित ,स्त्री आज़ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं । हमें उनके जटिल यथार्थ को समझ कर संघर्ष करने की दरकार है। संघर्ष से ही रास्ते खुलते और बनते हैं।
अतं में अध्यक्ष मंडल के सदस्य उर्दू के मकबूल अफसाना निगार व साहित्य अकादमी से पुरस्कृत व सम्मानित लेखक जनाब सलाम बिन रज्जाक ने प्रेम चंद और उर्दू अदब को लेकर बातें की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद उर्दू के पहले कथाकार हैं ,जहां अफसाना अपने पूरे माडर्न फार्म में आता है। सोजेवतन उनका पहला कथा संग्रह था जो उर्दू में साया हुआ। उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा पर आज़ उर्दू के लोग प्रेमचंद को भुलाने की शर्मनाक कोशिश कर रहे हैं। रज़्ज़ाक जी ने पूस की रात का जिक्र करते हुए कहा “प्रेमचंद के समय में किसानों की हालत हल्कू जैसी थी ,पर उस समय का किसान आत्महत्या नहीं करता था, आज़ की बैंकिंग सिस्टम ने किसानों को आत्महत्या करने पर मज़बूर कर रहे हैं।अध्यक्ष मंडल के दूसरे साथी कवि व कथाकार जनाब विनोद श्रीवास्तव ने कहा “प्रेमचंद से उनका संबंध सात वर्ष की वय से है। उन्होंने प्रेमचंद की समग्र रचनाएँ कई ,-कई बार पढीं और बहुत तरह के सवाल भी मन में उभरे। आज हमें प्रेमचंद को भक्तिभाव से न पढ़कर आलोचनात्मक नज़रिए से पढ़ना चाहिए। उनकी शक्ति व सीमाओं से सीखने की और आगे बढ़ने की ज़रूरत है। प्रेम चंद को प्रगतिशील दृष्टि से देखने व समझने की आज़ समय की माँग है। उन्होने सार्थक गोष्ठी के लिए आयोजक जनवादी लेखक संघ की प्रशंसा की और इस तरह की गोष्ठियों को और करने की ज़रूरत पर बल दिया।
गोष्ठी के प्रारम्भ में दिवंगत रचनाकार अजित कुमार उनकी पत्नी स्नेहमयी चौधरी, प्रसिद्द वैज्ञानिक प्रो.यशपाल , मकबूल शायर ज़नाब ज़फर गोरखपुरी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया। प्रेमचंद स्मृति गोष्ठी का मुख्तसर संचालन साथी रमन मिश्र ने नायाब तरीके से किया। उन्होंने उनके संपादकीय ,पत्र संस्मरण व लेखों का बीच -बीच में बडा़ मौजू व ज़रूरी अंश का पाठ किया। उनके ओजस्वी सूचनाओं व संक्षिप्त वक्तव्य से श्रोतागण न केवल लाभान्वित हुए अपितु उनमें प्रेमचंद के प्रति गहरी दिलचस्पी भी पैदा हुई। धन्यवाद ज्ञापन के बाद गोष्ठी को विराम दिया गया। सबने एक सुर से आयोजक जलेस के कार्याध्यक्ष की सुन्दर आयोजन के लिए तारीफ़ की और सफल कार्यक्रम के लिए बधाई दी।
कार्यदिवस (वर्किंग डे) होने पर भी शहर के कई रचनकार, चिंतनदिशा के सम्पादक हृदयेश मयंक, शायर मुस्तहसन आज़्म, तिरछी आँख के सम्पादक मूशररफ शमशी, शफीक खान, सूरबाला, पत्रकार आनंदप्रकाश शर्मा, शोधछात्र सुशीला तिवारी, सीमा, कहानीकार प्रतिमा राज़, कॉमरेड पुलक चक्रवर्ती तथा अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। मुंबई “जलेस “ने उक्त कार्यक्रम का आयोजन किया था।
प्रस्तुति : मुख्तार खान