सिनेमा में बनारस

बनारस

रतनकुमार पाण्डेय, 

Ratankumar_Pandeyबनारस वरुणा (बरना) नदी और अस्सी के बीच बसे होने के कारण यह वाराणसी कहलाया। बाद में यह बोलचाल में घिसकर ‘बनारस’ हो गया। ब्रिटिश हुकूमत में यह बेनारस (Banaras) बन गया था। इसका प्राचीन नाम काशी है। धर्म–प्राण भारत–भूमि का प्राचीन नाम काशी इतना प्राचीन है, जितना प्राचीन स्वयं हिन्दू–धर्म। काशी को ‘अपुनर्भव भूमि’ (मरने के बाद पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता) कहा गया है। इसे ‘आनन्दवन’ और ‘आनन्दकानन’ की भी संज्ञा से अभिभूत किया गया है। यह शिव की नगरी मानी गयी है, जिसका त्याग शिव कभी नहीं करते। इसी कारण इसे ‘अविमुक्त क्षेत्र’ माना जाता है।काशी में ‘महाश्मशान’ है, जहाँ– ‘खेलैं मसाने में होली दिगम्बर’ गाया जाता है। हिन्दुस्तान की असली पहचान करनी है, तो काशी आकर बनारस का निरालापन देखना चाहिए। बनारस वाले हमेशा आज़ाद रहे। उन्हें अपने आज़ाद जीवन में किसी की दखलन्दाजी बिल्कुल पसंद नहीं आती। आज भूमण्डलीकरण के दौर में भी गाल के बीच पान का बीड़ा दबाए, चाहे वह पान बनारसी, मगही या बंगाली हो बनारस के पक्का महाल की संकरी गलियों, जाम सड़कों, अस्त–व्यस्त आलम, छुट्टा घूमते साड़, गाय, भैंस के बीच भीतरी महाल के लोग अलग–अलग मिज़ाज और गाली से भरी सामान्य बातचीत करते, गावटी गमछा, सिल्क या मलमल का कुर्ता पहने काशी के अदभुत व्यवहार का परिचय कराते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है। बनारसी रंगत और मस्ती से सराबोर हर वक्त ‘गहरे में छानते हैं’ गहरे बाजी करते हैं, बनारसी ‘गुरु’ और ‘रईस’ बहुत महत्व रखते हैं। बनारसी सम्बोधन भी निराला है– राजा, मालिक, सरदार, गुरु, का–हो आदि। वार्तालाप में भी अनूठापन दिखाई पड़ता है– जैसे यदि किसी की बात बातचीत में या टेलीफोन पर ठीक से सुनाई नहीं पड़ती तो, केवल एक छोटा शब्द उसे इतना कहने के बदले कि ‘आपकी बात सुनाई नहीं पड़ रही है’, कहा जाता है– ‘का’। वहाँ का धनुषाकार गंगा का किनारा और घाट, गलियाँ (जितनी सड़कें नहीं हैं उसकी चार गुनी गलियाँ हैं), मंदिर, मेले, रंगीले–उत्सव और भक्ति तथा आध्यात्म की गूँज के कारण कहा जाता है कि–

‘खाक भी जिस जमीं की पारस है,
शहर मशहूर यह बनारस है।’

यहाँ लोग ‘निछद्दम’ पसंद हैं, कभी ‘पुट–पानी देकर सड़कों पर घूमते हैं तो कभी गंगा घाट की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। यहाँ नृत्य–संगीत का शौक है तो ‘बहरी–अलंग’ की इच्छा भी रखते हैं। काशी के रंगीले त्योहार, उत्सव, मेले, पर्व, श्रद्धा, भक्ति और संस्कृति के हिस्से हैं। काशी को इसी कारण कहा जाता है– ‘काशी का अद्भुद व्यवहार, सात वार नौ त्योहार’। प्राचीन नगरी काशी में मोक्ष की कामना लिए लोग आते हैं। बड़ी मात्रा में देश के कोने–कोने के लोग यहाँ आकर अपने–अपने मुहल्ले बनाकर स्थायी रूप से यहीं रहते हैं। बड़ी संख्या में विधवाएँ आती हैं, जिनके कारण एक विकट अनाचार फैलता है। इसी कारण कहा गया है कि– ‘राड़, साड़, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे तो सेवे काशी।’ बनारस की अपनी खूबियों ने फिल्मी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया। बनारस पर फिल्में बनी, फिल्मी हस्तियों को बनारस प्रिय रहा। इनमें अभिनेता, गीतकार, निर्देशक, वाद्य–यन्त्रों से जुड़े लोग, नृत्यांगनाएं तथा अन्य लोगों का समावेश है। फिल्म की शूटिंग का लोकेशन यहाँ बना। भोजपुरी फिल्म की तो राजधानी ही बनारस रहा है। पश्चिमी जगत के लोग भी अध्यात्म की तलाश में यहाँ आते रहते हैं। इसी कारण दुनिया के अनेक देशों में तथा उनकी भाषाओं में भी बनारस पर फिल्में बनाई गई हैं। सिनेमा के ख्याति लब्ध निर्माता सत्यजित रे ने ‘अपराजितो’ बनाई तो उसमें हरिहर मरने से पूर्व जब अंतिम साँस लेता है और उसकी पत्नी सर्व–जया अप्पू का लाया गंगाजल हरिहर के मुख में डालती है और उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। सत्यजित रे दिखाते हैं कि कबूतरों का झुण्ड अचानक उड़कर अंधेरे आसमान में चक्कर काटता है। यह दृश्य बनारस का ही है। फिल्मों में उपस्थित बनारस में अभिनय करने वाले कलाकार दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, देवानन्द, शाहरुख ख़ान, अभिषेक बच्चन, सनी देवल, संजीव कुमार, पंकज कपूर, वैजयन्ती माला, माधुरी दीक्षित, रानी मुखर्जी, उर्मिला मार्तोंडकर, ऐश्वर्या राय आदि हैं। बनारस में जिन फिल्मों की शूटिंग हुई या बनारस पर बनाई गईं उनमें – संघर्ष, राम तेरी गंगा मैली, चोखेर बाली, घातक, लागा चुनरी में दाग, ट्वेंटी सेवेन डाउन, बंटी और बबली, यमला पगला दीवाना, बस इतना सा ख्वाब, गंगा–जमुना, इशक, बनारसी बाबू, गोदान, विदेशिया, सिद्धेश्वरी, बनारस, डॉन (2), धर्म, दिवाना, गजगामिनी, रांझणा और अब विवादों में फँसी मुहल्ला अस्सी का उल्लेख किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ‘सिंह साहब ग्रेट’ तथा भैया जी जैसी सुपर हिट फिल्मों की पृष्ठभूमि बनारस की है। ‘बनारस’ फिल्म में उर्मिला मार्तोंडकर, ‘लागा चुनरी में दाग’ में रानी मुखर्जी ने अभिनय किया है। इसके अलावा फिल्म जगत से जुड़े अन्य लोग भी हैं। पंडित रविशंकर, उदयशंकर, सितारा देवी, पंडित गोपीकृष्ण, कन्हैयालाल, पद्मा खन्ना, कुमकुम, लीला मिश्रा, साधना सिंह, रवि किशन, मनोज तिवारी, दिनेश यादव, निरहुआ, नाजिर हसन, शान्वि इत्यादि हस्तियाँ भी बनारस से संबंधित हैं। भोजपुरी फिल्मों के दो डाइरेक्टर अनुराग कश्यप और अभिनव कश्यप बनारस के ही हैं।
गीतकार अनजान को बनारस से लगाव था, जिन्होंने शिव प्रसाद मिश्र रुद्र ‘काशिकेय’ (जो भांग खाने के प्रसिद्ध थे) के प्रभाव के कारण ‘भंग का रंग जमा हो चकाचक, फिर लो पान चबाय’ लिखा, वे रुद्र के शिष्य थे। उन्हीं के बेटे समीर भी एक ख्याति प्राप्त गीतकार हैं। ‘गंगा–जमुना’ जैसी सुपर हिट का गाना जो बनारस से संबंध रखता है–

‘नैन लड़ जइहैं तो मनवाँ माँ कसक होइबै करी,
प्रेम का छुटिहैं पटाखा तो धमक होइबै करी।’

दिलीप कुमार और वैजयन्तीमाला द्वारा गाए गए सुपर हिट गाने– ‘दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे, गजब भयो रामा जुलम भयो रे’ या ‘ना मानूँ, ना मानूँ, ना मानूँ रे दगाबाज़ तोरी बतियाँ ना मानूँ रे’ या ढूँढो– ढूँढो रे साजना मोरे कान का बाला’ जैसे गाने बनारस में ही शोभा पाते हैं। ‘संघर्ष’ फिल्म जिसमें दिलीप कुमार, बलराज साहनी, संजीव कुमार, वैजयन्तीमाला जैसे अभिनेता, अभिनेत्री थे, जो बनारस के पण्डों पर ही बनाई गई थी, का गीत ‘बुरे भी हम भले भी हम, समझियो न किसी से कम, हम हैं बनारसी बाबू’। ‘बनारसी बाबू’ फिल्म जिसमें देवानन्द अभिनेता हैं, वह भी बनारस के बैकग्राउण्ड पर ही बनी है। ‘गूंज उठी शहनाई’ के शहनाई वादक बिसमिल्ला खां हैं। ‘पाकीजा’ में तबला बजाने वाले गुदई महाराज बनारस के ही थे, जिसमें ‘ठाड़े रहियो रे बांके यार’ प्रसिद्ध हुआ था। पाकीजा का ही सुपरहिट गीत ‘इन्हीं लोगों ने, इन्हीं लागों ने ले लीन्हा, दुपट्टा मेरा’ जैसी कव्वाली बनारस में ही गायी गयी है।

2 COMMENTS

  1. Sir ji mane aapke sinema m banaras padhi mujhe aur mare ghar walo ko bahut pasad aai yaha takh ki maine apne ralative logo ko bhi padne k liye batai unhe bhi bahut achhi lagai aur yaha takh ki banaras k bare m hame aur jankari milli.

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