ईश्वर छुट्टी पर चला गया
भक्त आइसोलेशन में
एक वाइरस ने
किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रखा
चुनौती की भाषा में चीखने वाले
समझौते की ज़बान पर उतर आए हैं
सारे विश्व का योगक्षेम वहन करने का भ्रम पालने वाले
अपनी जान बचाते फिर रहे हैं
अपने आप पर से उठ रहा भरोसा
सबका
शेर बाघ बकरी खरगोश
सब एक ही घाट
सारे भय शक्ति नहीं देते
कुछ कमज़ोर भी बनाते हैं
अफ़वाहों के भंवर में
डूबते उतराते लोग
लगातार धोएं जा रहे हैं
हाथ मुंह सीने छपाछप
फिर भी भय
फिर भी डर
ब्रह्मराक्षस परेशान है
परित्यक्त सूनी बावड़ी के
ठंडे अंधेरे क़्वारेंटाइन में
पस्त है
सृष्टि के आदि में जैसा रहा होगा घनघोर अंधेरा
उससे कम नहीं है
जैसे मरती हैं एक एक कोशिकाएं
मर रहा जीवन सारे जग का
आहिस्ता आहिस्ता
ब्रह्म की तरह रहस्यमय
किसी की समझ में नहीं आ रहा
या सभी समझ रहे थोड़ा थोड़ा
जिसकी जितनी समझ
उतना झेल रहा है
सारे संबंध
रेत की ढूह से ढह रहे हैं
कोई खिसियाया सा चुटकुलों में राहत ढूंढ़ता
तो कोई थोथा ज्ञान बघारता
कोई लिख रहा कविता
तो कोई मर्सिया
किसी ने रखा हिसाब
कि कितने मरे
कितने चपेट में
कितने मरेंगे अभी
डरे हुए लोग
डरी हुई भाषा में
न डरने का आह्वान कर रहे
महानायकों तक की फटी पड़ी है
कोई जुटा रहा राशन
न जाने कब क़ैद होना पड़े
अकेले डाक्टर ही डटे हैं
अपनी छोटी सी फौज लिए
बाकी सारी फौजें नाकाम हो चुकी हैं
शक्ति के सारे अस्त्र शस्त्र ब्रह्मास्त्रों में जंग लग गई
परमाणु बमों पर हग रहे
चूहे और तिलचट्टे
अब किसी को नहीं बचानी
पृथ्वी
न बचाने हैं प्रेम-पत्र
प्रेमिका का चुंबन
और बच्चों का आलिंगन भी
बचा न पाए
मजबूरी में हाथ जोड़ते
खिसियाये लोग
बचा रहे सिर्फ
नितांत अपना शरीर
एक मामूली से वाइरस ने
हजारों बरसों की उपलब्धियों में आग लगा दी
बचा सिर्फ दमघोंटू धुंआ
जिसमें खो गई है
पहचान सबकी
सब कर रहे इंतजार
बाढ़ के उतरने का
बैठे हुए कगार पर
डूबने से ठीक पहले.