- डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय
आखिरकार भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने चीनी समकक्ष से बातचीत करके उसे लद्दाख के मोर्चे पर पीछे हटने के लिए विवश कर दिया है। उन्होंने साफ कह दिया कि नया भारत किसी भी प्रकार की एकतरफा कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। यदि जरूरी हुआ तो हम सैन्य शक्ति का प्रयोग करेंगे। आपको अप्रैल 2020 की स्थिति पर जाना ही होगा। चीन अच्छी तरह जानता है कि विधिवत प्रशिक्षित एवं पेशेवर भारतीय सेना का सामना कर पाना उसकी सेना के वश की बात नहीं है। अतः चीन सरकार ने पी.एल.ए.को संदेश भेजा कि वह भारतीय सेना से भिड़ने से बचे और चरणबद्ध तरीके से अप्रैल की स्थिति में वापस आए। इस संदेश ने चीनी सेना में उत्साह भर दिया और वह बिना देरी किए अपने साजो-सामान के साथ पीछे हट रही है।वह भारतीय सेना से मुकाबले के लिए तैयार नहीं है। चूंकि इस समय गलवान और श्योक नदी में बाढ़ आई हुई है अतः इस प्रक्रिया के पूर्ण होने में थोड़ा समय लग सकता है। इस पूरे प्रकरण में एक बात यह भी देखने में आई है कि जिन्हें इस विवाद के स्वरूप का सही ज्ञान नहीं है वे भी बे-सिर-पैर की टिप्पणी कर रहे हैं।
चीन ने घुसपैठ क्यों की ?
चीन की घुसपैठ के तीन कारण थे। पहला यह कि उसे पाकिस्तानी खुफिया तंत्र से गलत सूचना मिली थी कि भारत ने अमेरिका से थाड मिसाइल सुरक्षा प्रणाली खरीदकर लद्दाख में तैनात कर दिया है और वह दो सौ किमी.तक चीन के भीतर की हर सैन्य गतिविधि पर नज़र रख रहा है। दूसरा कारण यह था कि भारत एवं पाकिस्तान की सोशल मीडिया पर यह अफवाह फैल गई थी कि भारत कभी भी गिलगित-बालटिस्तान समेत संपूर्ण पी. ओ.के. पर कब्जा कर सकता है।इससे सीपेक में लगा चीन का 60 खरब डॉलर डूब जाएगा। चीन को लगता है कि भारतीय सेना पी.ओ.के.पर कब्जा करने के बाद अक्साई चीन जिसे 1962 में चीन ने हथिया लिया था उसपर भी अधिकार कर लेगी।तीसरा कारण यह था कि भारत ने गलवान घाटी से लेकर दौलत बेग ओल्डी तक 256 किमी.लंबी सड़क बना ली है जिसके द्वारा भारतीय सेना युद्ध के दौरान बड़ी आसानी से कराकोरम दर्रे पर कब्जा कर सकती है। दरअसल गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) को ही लेकर विवाद है।यहाँ पहाड़ियों की संरचना उंगली (फिंगर) की तरह है।फलतः सीमा का निर्धारण फिंगर प्वाइंट के रूप में होता रहा है। भारत फिंगर प्वाइंट आठ के पूर्वी छोर से वास्तविक नियंत्रण रेखा को मानता है और चीन फिंगर प्वाइंट दो के पश्चिमी छोर से गुजरता हुआ मानता है। अभी फिंगर प्वाइंट चार तक भारत का कब्जा है और फिंगर प्वाइंट आठ तक भारतीय सेना पैट्रोलिंग करती रही है। आम तौर पर फिंगर प्वाइंट चार से आठ तक एक प्रकार का सैन्य रहित बफर जोन था जिसपर किसी भी देश की सेना नहीं रहती है। इस बार चीनी सेना मई के आरंभ में फिंगर प्वाइंट आठ से पांच के बीच आकर काबिज हो गयी।
6 और 15 जून को क्या हुआ?
गत 6 जून को दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच यह तय हुआ था कि चीनी सेना 15 जून तक अप्रैल 2020 की स्थिति अर्थात फिंगर प्वाइंट आठ के पीछे चली जाएगी। जब भारतीय सेना कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में 15 जून को पैट्रोलिंग प्वाइंट चौदह पर गयी जो फिंगर प्वाइंट चार और पांच के मध्य स्थित है तब उसने पाया कि चीनी सेना अभी भी डटी हुई है। साथ ही, जिन सैन्य अधिकारियों के साथ समझौता हुआ था उनके स्थान पर दूसरे अधिकारी वहां आ चुके थे।जब भारतीय सेना के कहने पर वे पीछे हटने को तैयार नहीं हुए तो भारतीय सैनिकों ने उनके तंबू और वाॅच टावर को आग लगा दी। कुछ देर बाद भारी संख्या में धारदार हथियारों के साथ चीनी सैनिक आए और भारतीय सैनिकों पर अचानक हमला कर दिया। इस हमले में कर्नल संतोष बाबू और दो भारतीय सैनिक शहीद हो गए । इस बीच भारतीय सेना ने अपने दूसरे साथियों को बुलाया और चीनी सैनिकों को लातों-घूसों और उनके हथियारों को छीनकर मारना आरंभ किया। इस भिड़ंत में चीन के ही विपक्षी नेता के अनुसार कम-से-कम 100 चीनी सैनिक मारे गए और 17 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। चीनी मीडिया और अमेरिकी सूत्रों के मुताबिक चीनी सेना के कम-से-कम 56 सैनिक मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। भारतीय सेना चीनी कर्नल को भी बंदी बनाकर लायी थी जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया है।खैर जो भी हो, इतना तो तय है कि भारतीय रणबांकुरों ने चीनी सैनिकों को ऐसा सबक सिखाया है कि वे उससे भिड़ने से पहले हजार बार सोचेंंगे।
यह सर्वविदित है कि 15 जून की घटना की भारतीय मीडिया और देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई और भारत सरकार ने दोनों मोर्चों पर युद्ध लड़ने की तैयारी आरंभ कर दी।इस दौरान सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के कहने का आशय यही था कि चीनी सेना फिंगर प्वाइंट चार के उस तरफ है अतः अभी वह भारतीय सीमा के भीतर नहीं है। हमारे सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देते हुए घुसपैठियों को सबक सिखा दिया है। यदि प्रधानमंत्री जी केवल इतना कह देते कि चीनी सेना बफर जोन में है और हम उसे अप्रैल की स्थिति में पहुँचाकर ही दम लेंगे तो कोई ग़लतफहमी न पैदा होती। लेकिन उन्होंने लद्दाख की साहसिक यात्रा के दौरान जो परिपक्व भाषण दिया उससे न केवल हमारे सैनिकों का मनोबल बढ़ा अपितु देश-विदेश में सही संदेश गया।
मित्र देशों की भूमिका
चूंकि इस समय कोरोना और चीन की साम्राज्यवादी चाल से पूरा विश्व उसके विरोध में है। अतः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को व्यापक समर्थन मिला। सबसे पहले प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बात की और उन्होंने भारतीय सेना को डटे रहने के लिए कहा। ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया था कि युद्ध की स्थिति में हम समझौते के अंतर्गत भारत का पूरा साथ देंगे और चीन के विरुद्ध अनेक मोर्चे खोलेंगे जिससे भारतीय सेना के लिए विजय आसान हो जाएगी। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि अमेरिका-भारत-जापान और ऑस्ट्रेलिया का शक्तिशाली सामरिक गठजोड़ बन चुका है जिसके तहत चीन के विरुद्ध इन चारों देशों की सेनाएं अलग-अलग मोर्चों पर लडेंगी। सामरिक चतुर्भुज का यह समझौता चीनी घुसपैठ के कारण इसी 4 जून को पूरा हो गया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के साथ वर्चुअल बैठक द्वारा इसे मूर्त रूप दिया।अमेरिका ने न केवल भारत पर दबाव कम करने के लिए प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपने छः विमान वाहक पोत समूह को चीनी जलसीमा के पास भेजा अपितु गुआम स्थित अपने सैन्य ठिकाने को युद्ध के लिए पूरी तरह तत्पर कर दिया।जापान ने चीन के सैन्य ठिकानों को लक्ष्य करके अपनी मिसाइलें तैनात कर दीं और अपनी वायुसेना एवं नौसेना को अत्यधिक सतर्क रहने का निर्देश दे दिया। ऑस्ट्रेलिया ने अपनी नौसेना को अमेरिकी विमान वाहक पोत समूह यू.एस.एस.निमित्ज एवं यू. एस.एस.रोनाल्ड रीगन के साथ युद्धाभ्यास के लिए दक्षिण चीन सागर में भेज दिया।इस बीच जापान के प्रधानमंत्री ने मोदी जी से बात करके पूर्वी चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक चीनी पनडुब्बियों की टोह लेने के लिए समुद्र के भीतर सोनार और सेंसर की दीवार बनाने की बात कही जिसमें सामरिक चतुर्भुज के चारों देशों की पनडुब्बियां आपसी तालमेल का उपयोग करेंगी जिससे चीन की कोई भी पनडुब्बी छिपकर वार न कर सके और यदि युद्ध होता है तो उसे सही समय पर नष्ट कर दिया जाए। इस बीच इजरायल ने अपने देश की सुरक्षा के लिए तैनात मिसाइल सुरक्षा प्रणाली को भारत को तत्काल देने की बात कहकर चीन को बैकफुट पर ला दिया और रही- सही कसर फ्रांस ने पूरी कर दी कि वह 27 जुलाई को भारत को चार राफेल विमान के बदले आठ विमान देगा।फ्रांस ने समझौते के तहत जिबूती और हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित अपने नौसैनिक अड्डों को भारतीय नौसेना के लिए खोल दिया और चीनी नौसेना पर निगाह रखनी आरंभ कर दी। फ्रांस ने और आगे जाकर कह दिया कि वह दोनों विश्वयुद्धों का कर्ज उतारने के लिए भारत के समर्थन में अपनी सेनाएं भेज सकता है।
रूस की सक्रियता
इस बीच द्वितीय विश्व युद्ध के विजय पर्व के अवसर पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की रूस यात्रा और भारत की तीनों सेनाओं की उपस्थिति से रूस भी चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाने लगा। साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रूसी राष्ट्रपति पुतिन से फोन पर वार्ता करने से चीन पर कूटनीतिक दबाव काफ़ी बढ़ गया। रूस ने भारत की जरूरत के सारे साजो-सामान की आपूर्ति जारी रखने की बात कहकर चीन को बड़ा झटका दिया। उसने एस-400मिसाइल रक्षा प्रणाली को समय पर उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। भारत ने मौके का फायदा उठाकर रूस से 21 मिग-29 विमान खरीदने और एच.ए.एल.द्वारा 12 और सुखोई-30 एम.के.आई. युद्धक विमानों के निर्माण का आपातकालीन समझौता करके उसे खुश कर दिया।चूंकि ये दोनों विमान भारतीय वायुसेना में पहले से ही मौजूद हैं और इसके लिए पायलटों को अलग से प्रशिक्षण की जरूरत नहीं है। अतः यह एक व्यावहारिक सौदा कहा जा सकता है। चीन ने एक और गलती करते हुए रूस शहर व्लादिवोस्तक को अपना क्षेत्र बताकर रूस को और भी नाराज़ कर दिया। रूस पनडुब्बी तकनीक चुराने के अपराध के लिए चीन से पहले से ही कुपित है। ऐसी स्थिति में जहां पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा हो गया वहीं चीन केवल पाकिस्तान के साथ अलग-थलग पड़ गया।
भारत की तैयारी
भारत सरकार ने कोरोना कहर के दौरान चीन के विश्वासघात को बड़ी गंभीरता से लिया।सबसे पहले प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना पेश करके चीनी सामानों के बहिष्कार का मार्ग प्रशस्त किया।इसके अलावा 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा कर चीन को 50 अरब डॉलर का पहला झटका दिया फिर भारतीय रेल और उत्तर प्रदेश सरकार ने भी चीन के हजारों करोड़ रुपए के ठेके रद्द कर दिए। दूसरी ओर भारत ने जिस तत्परता से लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक अपने पांच लाख सैनिकों और टैंकों, तोपों, मिसाइलों को तैनात किया उससे चीन के पसीने छूट गए। चीन ने पी.ओ.के. के स्कार्दू एयरबेस पर अपनी वायुसेना के विमान उतारकर यह संदेश देना चाहा था कि वह भारत के विरूद्ध दो मोर्चा खोलेगा। उसने सोचा था कि वह पाकिस्तानी सेना के साथ लेह में पूर्व और पश्चिम दोनों ओर से हमला करके भारत के मस्तक को काट देगा और भारत को दबाव में लाकर मनचाहा प्रतिबंध लगा देगा। पाकिस्तान ने पी.ओ.के. में अपने 20,000 सैनिकों को सीमा पर भेजकर चीन का साथ देना चाहा लेकिन अमेरिका एवं खाड़ी देशोंके दबाव में चुप बैठ गया। लेकिन भारत ने लेह से लेकर दौलत बेग ओल्डी तक 60,000 जवानों की तैनाती करके उसके मनसूबे पर पानी फेर दिया। भारतीय वायुसेना ने अग्रिम मोर्चे के अपने सारे एयरबेस सक्रिय कर दिए और सुखोई, मिराज तथा मिग-29 विमानों की गूँज से समूचा इलाका थर्रा गया।साथ ही, चिनूक एवं अपाचे हेलीकाप्टर भी बहुआयामी भूमिका में आ गए। भारत ने पृथ्वी, प्रलय, प्रहार एवं ब्रह्मोस मिसाइलों के साथ पिनाक राॅकेट भी मोर्चे पर पहुंचा दिया। साथ ही , अपनी सुरक्षा के लिए आकाश एवं पृथ्वी रूसी-200 तथा इजरायल की बराक-8 एवं स्पाइडर मिसाइल सुरक्षा प्रणाली तैनात कर दी। चीन ने रूसी एस-400 की एक बैटरी तैैनात करके भारतीय वायुसेना की गतिविधियों पर नज़र रखनी शुरू की। इसी समय ताइवान ने चीन के स्टील्थ विमान जे-20 को खोज और खदेड़ कर यह सिद्ध कर दिया कि चीनी साामानों की तरह उसके हथियारों का भी कोई मानक रूू नहीं है। साथ ही चीन को यह भी अहसास हो गया कि भाारतीय वायुसेेना काली-5000 द्वारा बीम छोड़कर रूसी एस-400 को युद्ध के आरंभ में ही ध्वस्त करके उसका सारा गणित बिगाड़ सकती है। फलतः चीन भारत को घेरने के चक्कर में स्वयं बुरी तरह से घिर गया। भारत सरकार के चतुर्दिक आक्रमण से उसे एक सही माध्यम की तलाश थी। फलतः अजित डोवाल के फोन करते ही चीीन सेेना पीछे हटने लगी। चीनी सेना को अभी पैंंगोंग झील, डेमचौक और डी.बी.ओ. क्षेत्र में भी पीछे हटना है। जब तक वह अप्रैल 2020 की स्थिति में नहीं लौौ जाता है तब तक भारतीय सेना यथावत जमी रहेगी। ‘शत्रु हट गया, लेकिन उसकी छायाओं का डर है’। चूंकि शत्रु धूर्त एवं अविश्वसनीय है, अतः सतर्क रहने की आवश्यकता है।
– लेखक विदेश व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं।